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सम्पादकीय : स्वदेशी एआइ मॉडल का विकास आज की जरूरत

भारतजेन को भारतीय वास्तविकताओं- डेटा, भाषा और सांस्कृतिक संदर्भों के आधार पर विकसित किया जाएगा।

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कृत्रिम बुद्धिमत्ता की वैश्विक होड़ में भारत अब सिर्फ दर्शक नहीं, खिलाड़ी बनने की ओर बढ़ रहा है। आइआइटी बॉम्बे द्वारा 'भारतजेन' नामक स्वदेशी एआइ मॉडल के विकास की घोषणा इस दिशा में निर्णायक कदम है। आज जब दुनिया के बड़े एआइ मॉडल पर अमरीका और यूरोप का कब्जा है, तब भारतीय भाषा, समाज, संस्कृति और व्यवहार की जटिलताओं को समझने वाला देसी मॉडल न सिर्फ जरूरत बन चुका है बल्कि राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता का अनिवार्य हिस्सा भी।

भारतजेन को भारतीय वास्तविकताओं- डेटा, भाषा और सांस्कृतिक संदर्भों के आधार पर विकसित किया जाएगा। यह बात इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि आज की एआइ दुनिया में डेटा वही सबसे ज्यादा समझता है, जो उसके पास होता है और फिलहाल दुनिया का डिजिटल दिमाग भारतीय वास्तविकताओं से अनभिज्ञ है। आज ओपनएआइ सहित तमाम मॉडल किसी भी देश के यूजर्स को जवाब तो देते हैं, लेकिन उनकी कल्पना, तर्क और प्राथमिकताएं पश्चिमी नजरिए से संचालित होती हैं।

भारतीय भाषाओं का प्रतिनिधित्व सीमित है, ग्रामीण वास्तविकताओं की समझ कमजोर है और हमारी सामाजिक संरचना का विश्लेषण अक्सर उलझन में बदल जाता है। जब एआइ आने वाले वर्षों में शिक्षा, कृषि, उद्योग, स्वास्थ्य और शासन के फैसलों को प्रभावित करेगा, तब प्रश्न यह होगा- क्या हम दूसरों के बनाए एल्गोरिद्म से सोचेंगे या अपना तकनीकी दिमाग खुद बनाएंगे? इसी सवाल का जवाब है- भारतजेन।

एआइ की प्रगति आज किसी भी देश की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा का मूल आधार बनती जा रही है। हर क्षेत्र में एआइ सुपर-टूल बनकर उभरा है। हालांकि भारतजेन की राह में कुछ गंभीर चुनौतियां भी सामने हैं- विशाल और विविध डेटा-संग्रह यानी आधिकारिक भाषाएं, सैकड़ों बोलियां- इतने विशाल भाषाई परिदृश्य को समेटना कठिन कार्य है।टेक जाइंट भारतीय टैलेंट को आकर्षित कर रहे हैं- देश को एआइ विशेषज्ञों को प्रोत्साहित करने के लिए नीति-स्तर पर बदलाव करना चाहिए। भारतजेन को 'टेक्नोलॉजी मिशन मोड' में आगे बढ़ाना चाहिए। राष्ट्रीय एआइ डेटा रिपॉजिटरी की स्थापना करनी चाहिए जो सुरक्षित, और भारतीयता के अनुरूप हो। अब स्कूल, कॉलेज व शोध संस्थानों में एआइ प्रशिक्षण अनिवार्य होना चाहिए। भारतजेन भारतीय एआइ का पहला बड़ा कदम है, जो साबित करेगा कि तकनीक की दुनिया में भी भारत सिर्फ उपभोक्ता नहीं, निर्माता बन सकता है। वैश्विक परिदृश्य साफ है- जो डेटा व एआइ को नियंत्रित करेगा, वही भविष्य की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा को नियंत्रित करेगा।

आज की जरूरत यही है कि हर भारतीय समझे कि एआइ की लड़ाई सिर्फ मशीनों की नहीं, अपनी पहचान, भाषा और भविष्य की लड़ाई है। आइआइटी बॉम्बे की पहल यह संदेश देती है कि भारत का भविष्य सिर्फ 'मेड इन इंडिया' उत्पादों में नहीं, बल्कि 'थिंक्ड इन इंडिया' तकनीक में भी छिपा है।