
-चंद्र भूषण
पिछले एक दशक से अधिक समय से दिल्ली में वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए कई तरह के प्रयोग किए गए हैं जैसे ‘ऑड-ईवन स्कीम’, स्मॉग टावर, वाटर कैनन, पौधरोपण, ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (जो सर्दियों में उद्योग, निर्माण और वाहनों पर प्रतिबंध लगाता है), और अब क्लाउड सीडिंग। इन प्रयासों के बावजूद शहर की हवा आज भी जहरीली बनी हुई है। मूल कारण स्पष्ट है- ये प्रतिक्रियात्मक कदम प्रदूषण की जड़ तक नहीं पहुंच रहे हैं?
दिल्ली, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) का सिर्फ 2.7 प्रतिशत हिस्सा है, दुनिया के सबसे अधिक शहरीकृत, औद्योगीकृत और कृषि-प्रधान क्षेत्रों के केंद्र में स्थित है। इसलिए इसकी हवा पड़ोसी जिलों से आने वाले प्रदूषण से अत्यधिक प्रभावित होती है। अध्ययनों से पता चलता है कि दिल्ली के वायु प्रदूषण का केवल 30 से 50 प्रतिशत हिस्सा शहर के भीतर से आता है, जबकि शेष 50 से 70 प्रतिशत बाहर से आता है। इसका मतलब है कि प्रदूषण कम करने के लिए एक क्षेत्रीय दृष्टिकोण अत्यंत आवश्यक है।
इसके अलावा, दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के मुख्य स्रोत खाना पकाने, गर्मी देने और सूक्ष्म व लघु उद्योगों में बायोमास का इस्तेमाल तथा आसपास के राज्यों में कृषि अवशेष जलाना है। ये गतिविधियां कुल पीएम (पार्टिकुलेट मैटर) 2.5 प्रदूषण का 50 प्रतिशत से अधिक योगदान देती हैं लगभग 30 प्रतिशत प्रदूषण कोयला और अन्य जीवाश्म ईंधन पर निर्भर उद्योगों और बिजली संयंत्रों से आता है। यानी दिल्ली-एनसीआर के पीएम 2.5 प्रदूषण का 80 प्रतिशत से अधिक हिस्सा ठोस ईंधनों- विशेषकर बायोमास और कोयले से उत्पन्न होता है, जबकि वाहनों की हिस्सेदारी लगभग 10 प्रतिशत है। यदि दिल्ली वास्तव में हवा सुधारने को लेकर गंभीर है, तो इसे अप्रभावी और ऊपरी उपायों पर निर्भर रहना बंद करना होगा। ये त्वरित उपाय वास्तविक समस्या को हल किए बिना अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाते हैं। असली समाधान केंद्र सरकार और दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के बीच सहयोग से ही संभव है- जो प्रदूषण को उसकी जड़ों पर नियंत्रित करे। इस सहयोगी प्रयास को एक नए शासन ढांचे और संस्था के माध्यम से लागू किया जा सकता है, जो संयुक्त रूप से क्लीन एयर एक्शन प्लान लागू करे। इसके लिए राज्यों को साझा हित के लिए कुछ अधिकार त्यागने होंगे। यह इस तरह संभव है - केंद्र सरकार को दिल्ली और इसके आसपास के इलाकों को एक ‘एयर पॉल्यूशन कंट्रोल जोन’ घोषित करना चाहिए। इस जोन में वायु प्रदूषण से संबंधित सभी कदम समन्वित रूप से लागू किए जाने चाहिए। आदर्श रूप से यह जोन पूरे एयरशेड को कवर करे, जो दिल्ली के आसपास लगभग 300 किमी तक फैला है। लेकिन मौजूदा संस्थागत ढांचे को देखते हुए इस जोन में दिल्ली-एनसीआर और उत्तर प्रदेश के चार अतिरिक्त जिले- अलीगढ़, हाथरस, मथुरा और आगरा शामिल किए जा सकते हैं। यह लगभग 150 किमी के दायरे में 8 करोड़ की आबादी को कवर करेगा। हालांकि इसमें पंजाब और हरियाणा के वे प्रमुख कृषि क्षेत्र शामिल नहीं हैं, जहां पराली जलाना आम है, लेकिन इस मुद्दे को अवशेष प्रबंधन के विशेष कार्यक्रमों से संबोधित किया जा सकता है।
एक समन्वित स्वच्छ वायु कार्ययोजना की निगरानी और क्रियान्वयन के लिए एक नई सशक्त एजेंसी का गठन किया जाना चाहिए। इस एजेंसी में केंद्र और राज्य सरकारों दोनों के प्रतिनिधि निर्णयकारी स्तर पर शामिल हों। इसे पर्याप्त अधिकार देने के लिए एक वरिष्ठ सचिव-स्तरीय कार्यरत केंद्रीय अधिकारी को इसका प्रमुख बनाया जाना चाहिए। एजेंसी के जिला कार्यालय हों, अपनी तकनीकी और प्रशासनिक टीम हो और यह इस जोन में वायु प्रदूषण नियंत्रण की नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करे- अन्य केंद्रीय और राज्य एजेंसियों के ऊपर अधिकार रखते हुए।
ऐसी संस्थाएं दुनिया में पहले से मौजूद है- जैसे 1967 में स्थापित कैलिफोर्निया एयर रिसोर्सेज बोर्ड, जिसने लॉस एंजिल्स जैसे शहरों में प्रदूषण नियंत्रित किया। चीन में भी बीजिंग-टियांजिन-हेबेई क्षेत्रीय समन्वय परिषद है। दिल्ली और पूरे भारत की वायु गुणवत्ता में सुधार तब तक संभव नहीं जब तक कि स्वच्छ ऊर्जा की ओर तीव्र संक्रमण, कृषि अवशेष जलाने में कमी और धूल नियंत्रण के लिए ठोस योजना न बने। आगामी पांच वर्षों में वायु गुणवत्ता में महत्वपूर्ण सुधार लाने के लिए उच्च-प्रभाव वाली रणनीतियां अपनानी होंगी। जैसे-
स्वच्छ हीटिंग ईंधन : भारत में 90 प्रतिशत से अधिक घर सर्दियों में गर्मी के लिए बायोमास और ठोस ईंधन पर निर्भर रहते हैं, जिससे दिसंबर-जनवरी में भारी प्रदूषण बढ़ता है। चीन द्वारा अपनाई गई एक प्रमुख नीति राष्ट्रीय ‘क्लीन हीटिंग फ्यूल नीति’ थी। जबकि भारत में भी ऐसी दीर्घकालिक नीति विकसित करने की जरूरत है, लेकिन अल्पकाल में दिल्ली सरकार सिर्फ बिजली आधारित हीटिंग सुनिश्चित कर सकती है और खुले में जलाने पर सख्त रोक लगा सकती है।
पराली जलाना खत्म करना: अक्टूबर-नवंबर में प्रदूषण के चरम स्तर का मुख्य कारण पराली जलाना है। इसे खत्म करना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों रणनीतियां जरूरी हैं। दीर्घकाल में, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में धान-गेहूं आधारित गहन कृषि से विविध फसलों की ओर परिवर्तन आवश्यक है। अल्पकाल में, तकनीक और प्रोत्साहन बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। सबसे सरल तकनीकी समाधान यह है कि कंबाइन हार्वेस्टर को संशोधित किया जाए ताकि वे जमीन के और निकट कटाई करें और बैलर के साथ अवशेष इकठ्ठा करें। यह अवशेष उद्योगों को बेचा जा सकता है।
उद्योगों में ऊर्जा संक्रमण: बिजली संयंत्र और उद्योग दिल्ली-एनसीआर के पीएम 2.5 उत्सर्जन का लगभग एक-तिहाई हिस्सा हैं। इन उत्सर्जनों को कम करने के लिए तकनीकी उन्नयन और कड़ाई से अनुपालन दोनों आवश्यक हैं। बड़े उद्योगों में सख्त मानकों का पालन अनिवार्य किया जाना चाहिए। पुरानी थर्मल पावर प्लांट बंद करना और 2015 के उत्सर्जन मानकों को लागू करना अत्यंत जरूरी है, जो अब तक पूरी तरह लागू नहीं हुए है।
Updated on:
09 Dec 2025 07:16 pm
Published on:
09 Dec 2025 07:14 pm
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