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परीक्षा है या मजाक!

प्रतिभाशाली लोग तो बगले झांकते रह जाएं और
पैसे देकर पेपर खरीदने वाले डॉक्टर, इंजीनियर और अफसरों जैसे उच्च पदों
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Mar 31, 2015 / 11:25 pm

शंकर शर्मा

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देश में होने वाली प्रतिष्ठित प्रतियोगी परीक्षाओं का मजाक बनना गंभीर बात है। किसी भी राज्य पर नजर डाली जाए तो परीक्षाओं के पर्चो का लीक होना, संगठित गिरोहों द्वारा नकल कराया जाना तथा फर्जी परीक्षार्थियों को बिठाने की घटनाएं आम हो चली हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं में इस तरह के हथकंडों का सीमित व्यवसाय में बदलना उन करोड़ों प्रतिभाशाली छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है, जो ईमानदारी और मेहनत के भरोसे कुछ बनना चाहते हैं।

प्रतियोगी परीक्षाएं डॉक्टर के लिए हों, इंजीनियरिंग, सिविल सेवा के लिए अथवा शिक्षक-कर्मचारी वर्ग की, हर जगह धांधली का खुला खेल देखने को मिलता है। उत्तर प्रदेश प्रांतीय लोक सेवा आयोग की प्रारम्भिक परीक्षा का रद्द होना इस बात की पुष्टि करता है कि उन परीक्षाओं पर भरोसा किया जाए तो कैसे और क्यों? उत्तर प्रदेश में प्रारम्भिक परीक्षा का पेपर परीक्षा से पहले बाजार में आ जाने के पीछे क्या वजहें रहीं, जांच के बाद सामने आएगा। लेकिन माना जा सकता है कि कहीं ना कहीं बड़ी भूल तो हुई ही है। राजस्थान लोक सेवा आयोग में परीक्षाओं के नाम पर पिछले साल हुआ गोरखधंधा किसी से छिपा नहीं।

आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष की विश्वसनीयता पर तमाम सवाल खड़े हुए। सूचना तकनीक के इस दौर में प्रतियोगी परीक्षाओं का सफलतापूर्वक संचालित होना बड़ी समस्या जरूर हो सकती है लेकिन असंभव नहीं। पेपर लीक होने के अनेक तरीके हैं। प्रिंटिंग प्रेस से लीक हो सकते हैं। प्रश्नपत्रों की सुरक्षा में लगे कर्मचारी लीक कर सकते हैं अथवा परीक्षा केन्द्रों से भी लीक हो सकते हैं। सवाल यही अहम है कि आए दिन पेपर लीक होने के बावजूद ऎसा तंत्र क्यों नहीं बन पा रहा जो इसे रोक सके। पेपर लीक का पता चल जाता है तो परीक्षा रद्द हो जाती है लेकिन कारण पता ही नहीं चले तो क्या माना जाए? प्रतिभाशाली लोग बगले झांकते रह जाएं और पैसे देकर पेपर खरीदने वाले डॉक्टर, इंजीनियर और अफसरों के पदों पर तैनात हो जाएं।

कौन जानता है कि पेपर खरीदने वाले कितने लोग परीक्षाएं पास करके देश की “सेवा” कर रहे हों। ऎसे नाकाबिल लोगों से देश के उत्थान की उम्मीद कैसे की जा सकती है? केन्द्र सरकार तमाम मुद्दों पर राज्यों के साथ मिल-बैठकर चर्चा करती है और समाधान निकालने के प्रयास करती है।

प्रतियोगी परीक्षाओं के पर्चे लीक होना अथवा संगठित गिरोहों द्वारा नकल कराने की गंभीरता को देखते हुए केन्द्र सरकार को विभिन्न भर्ती परीक्षा बोर्ड के अधिकारियों और पुलिस के साथ मिलकर विचार करना चाहिए। पेपर लीक करने और नकल कराने जैसे मामलों में पकड़े गए लोगों के खिलाफ कानून और कड़े करने होंगे। यदि नई तकनीक में कोई समाधान नहीं तो आजमाई हुई पुरानी व्यवस्था फिर लागू की जा सकती है लेकिन परीक्षाओं पर लगने वाले कलंक को तो रोकना ही पड़ेगा।

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