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सुशासन: कोविड नियंत्रण में विकेंद्रीकरण मददगार, आगे भी रहे यह जारी

Good Governance: स्थानीय स्तर पर शक्तियों का हस्तांतरण हमें मजबूत बनाता है और हमें बेहतर प्रतिक्रिया देने में मदद करता है। जरूरत इस बात की है कि विकेंद्रीकरण केवल संकट में ही न पैदा हो, सामान्य समय में भी सत्ता को केंद्रीकृत करने की लालसा को दूर किया जाए। विकेंद्रीकरण न केवल हमें संकट से बेहतर तरीके से निपटने और सेवाएं प्रदान करने में मदद करेगा बल्कि हमें अपने लोकतंत्र को मजबूत करने में भी मदद करेगा।

Jan 22, 2022 / 09:37 am

Patrika Desk

सुशासन: कोविड नियंत्रण में विकेंद्रीकरण मददगार

सुशासन: कोविड नियंत्रण में विकेंद्रीकरण मददगार

चिन्मय दांडेकर
(पब्लिक पॉलिसी एवं राजनीतिक विश्लेषक)

वर्ष 2020 की शुरुआत में घातक कोरोना वायरस ने भारत को अपनी चपेट में ले लिया। बहुत कम जानकारी और स्पष्टता के आधार पर एक अज्ञात वायरस से लडऩे की चुनौती ने भारत को 24 मार्च 2020 से ‘वन मॉडल फिट्स ऑल’ देशव्यापी लॉकडाउन में धकेल दिया। तीसरी लहर के तेजी से फैलने के साथ यह महत्त्वपूर्ण है कि हम आत्मनिरीक्षण करें। जनाग्रह सेंटर फॉर सिटिजनशिप एंड डेमोक्रेसी द्वारा देश भर के शहर प्रमुखों के परामर्श से कोविड की पहली और दूसरी लहरों की प्रतिक्रियाओं का तुलनात्मक विश्लेषण करने के लिए एक अध्ययन किया गया था। जब दूसरी लहर पहली लहर की तुलना में बहुत अधिक गंभीर थी, तो हमने केंद्रीकृत लॉकडाउन का मॉडल क्यों नहीं अपनाया? राज्य और स्थानीयकृत लॉकडाउन पर अधिक ध्यान क्यों दिया गया? शायद इसलिए कि हम एक समाज के रूप में विकसित हुए और हम स्वास्थ्य आपात स्थितियों से निपटने के तरीके के बारे में शिक्षित हुए। अपनी गलतियों से सीखा, विफलताओं का सामना किया और ऐसे मॉडल बनाए, जिन्हें दोहराया जा सकता था।
विभिन्न स्तरों पर सरकारें समझ चुकी हैं कि इस वायरस से निपटने का सबसे अच्छा तरीका स्थानीयकृत, विकेन्द्रीकृत प्रतिक्रियाएं हैं, जिनमें सरकारें नागरिकों से बेहतर तरीके से जुड़ी होती हैं। मई 2020 में, जब मुंबई के नए कमिश्नर ने कार्यभार संभाला, उन्होंने सबसे पहले केंद्रीकृत नियंत्रण कक्ष को खारिज कर मुंबई के 24 वार्डों में एक-एक वार्ड वॉर रूम स्थापित करने का निर्णय लिया।

हर मरीज को बुलाना, होम आइसोलेट करना और जरूरत के हिसाब से बेड आवंटित करना आसान हो गया। घनी आबादी वाली झुग्गी बस्ती ‘धारावी’ में ‘वायरस का पीछा करो’ जैसी मुंबई की नीतियों को वैश्विक प्रशंसा मिली है और फिलीपींस जैसे देशों द्वारा इसे लागू किया गया है।

बेंगलूरुऔर चेन्नई ने जोनल स्तर पर ट्राइएज रोगियों के लिए समान दृष्टिकोण का इस्तेमाल किया, जिससे अच्छा लाभांश प्राप्त हुआ। सूरत में पहले से मौजूद 700 निगरानी कर्मियों के अलावा 2800 से अधिक कर्मचारी कार्यरत थे, जो एक साथ पूरे शहर को 4-5 दिनों के चक्र में कवर कर सकते थे और रोगियों को एक विकेन्द्रीकृत मोबाइल चिकित्सा से जोडऩे में उपयोगी थे।

इस वैन को धन्वंतरि क्लीनिक कहा जाता है। कटक ने शहर के 59 वार्डों को 12 क्षेत्रों में विभाजित किया, जिनमें प्रत्येक क्षेत्र में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 4-5 वार्ड हैं। इनमें से प्रत्येक जोन में रैपिड रिस्पांस टीमों को रखा गया, जिससे जुड़े लोग घर का दौरा करेंगे, आइसोलेशन किट वितरित करेंगे, वेबिनार करेंगे और वाट्सएप पर मरीजों के संपर्क में रहेंगे।

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जब स्वास्थ्य प्रणाली, राज्य की क्षमताएं संघर्ष कर रही थीं, हमारे नागरिक शामिल हो गए और स्थानीय सरकारों के साथ जुड़ गए। बेंगलूरु में, स्वयंसेवकों ने बीएलकेयर्स नामक एक पोर्टल के माध्यम से भाग लिया। चेन्नई में ‘फ्रेंड्स ऑफ कोविड सिटीजन अंडर सर्विलांस’ (फोकस) नामक स्वयंसेवकों के एक समूह ने होम आइसोलेशन में रखे गए लोगों की सहायता की।

सूरत में नगरपालिका प्रशासन ने विभिन्न सामुदायिक कोविड-देखभाल केंद्रों और हीरा और कपड़ा व्यापारियों की सुरक्षा कवच समितियों की मदद ली, जिन्होंने आइसोलेशन, भोजन, चिकित्सा उपचार, ऑक्सीजन संयंत्र स्थापित करने आदि में मदद की। कटक में प्रशासन ने मिशन के दौरान कानून और व्यवस्था की निगरानी और बनाए रखने के लिए पारंपरिक शाही समितियों और दुर्गा पूजा समितियों की सक्रिय मदद ली।

प्रभावशाली स्वयंसेवकों ने आवश्यक चीजों की व्यवस्था करने, भोजन पकाने और जागरूकता फैलाने में मदद की। उत्तर पूर्व के राज्यों में, यंग मिजो एसोसिएशन, रियांग समुदाय (नागा होहोस, मीरा पाइबास जैसे सामाजिक-जातीय संबंधों पर स्थापित) जैसे समूहों ने स्थानीय कार्य टीमों की कमान संभाली।

प्लेग से निपटने के लिए सूरत ने 1994-95 में ‘सिक्स बाइ सिक्स बाइ सिक्स’ नामक एक प्रणाली शुरू की थी, जिसमें शहर को छह डिवीजनों में विभाजित किया गया था और प्रत्येक डिवीजन में योजना निदेशक को एक नगरपालिका आयुक्त की शक्तियां सौंपी गई थीं। निर्णय लेने के लिए, एक मजबूत विकेन्द्रीकृत रोग निगरानी प्रणाली भी स्थापित की गई थी, जो कोविड के दौरान उपयोगी थी।

केरल अपनी मजबूत स्वास्थ्य प्रणाली और विकेंद्रीकृत संरचनाओं के लिए जाना जाता है। इन दोनों ने महामारी के प्रबंधन में लाभदायक भूमिका अदा की है। केरल की प्रतिक्रिया का नेतृत्व नगर निगमों और उसके स्वास्थ्य केंद्रों, जिला स्तर के नियंत्रण कक्षों और जोखिम निगरानी तंत्र द्वारा किया गया था, यहां तक कि डब्ल्यूएचओ से भी प्रशंसा प्राप्त हुई थी।

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इसी तरह ओडिशा ने 2019 में वार्ड स्तर की संरचनाओं को संस्थागत रूप दिया था, जिसने अपनी सिद्ध उपयोगिता के कारण महामारी के दौरान वैधता और सार्वजनिक विश्वास विकसित किया था, बेंगलूरु जैसे शहरों में हर वार्ड में सक्रिय वार्ड समितियां हैं, जो निगरानी और संसाधनों के समन्वय में सक्रिय थीं। इन शहरों ने साबित कर दिया है कि कैसे संरचनाओं को सुव्यवस्थित करने और प्रक्रियाओं को संस्थागत बनाने से अधिक लाभांश पैदा होता है।

साफ है कि सरकारें महामारी के दौरान एक समरूप, केंद्रीकृत प्रतिक्रिया से विकेंद्रीकृत, स्थानीयकृत मॉडल की ओर बढ़ी हैं। इससे हमें पता चलता है कि नागरिक और सरकारें एक साथ प्रभावी ढंग से काम कर सकती हैं। स्थानीय स्तर पर शक्तियों का हस्तांतरण हमें मजबूत बनाता है और हमें बेहतर प्रतिक्रिया देने में मदद करता है.

जरूरत इस बात की है कि विकेंद्रीकरण केवल संकट में ही न पैदा हो, सामान्य समय में भी सत्ता को केंद्रीकृत करने की लालसा को दूर किया जाए। विकेंद्रीकरण न केवल हमें संकट से बेहतर तरीके से निपटने और सेवाएं प्रदान करने में मदद करेगा बल्कि हमें अपने लोकतंत्र को मजबूत करने में भी मदद करेगा।

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