नई दिल्लीPublished: Dec 30, 2021 12:12:22 pm
Patrika Desk
लोकतंत्र के मंदिर में चुनकर जाने वाले जनप्रतिनिधियों के मुंह से लेकर शिक्षा के मंदिर तक में जब भ्रष्टाचार और जात-पात को बढ़ावा देने वाली बातें देखने-सुनने को मिलें तो इससे शर्मनाक क्या हो सकता है। भ्रष्टाचार व छुआछूत सामाजिक दंश बनते जा रहे हैं। शिक्षक हों या नेता, समाज में इन्हें प्रतिष्ठा तब ही मिलती है जब वे चाल, चरित्र और चेहरे को लेकर दोहरा रवैया नहीं रखें।
हम नई पीढ़ी को क्या संदेश देना चाह रहे हैं? लोकतंत्र के मंदिर में चुनकर जाने वाले जनप्रतिनिधियों के मुंह से लेकर शिक्षा के मंदिर तक में जब भ्रष्टाचार और जात-पात को बढ़ावा देने वाली बातें देखने-सुनने को मिलें तो यह सवाल उठना लाजिमी है। पहला उदाहरण मध्यप्रदेश के रीवा से भाजपा सांसद जनार्दन मिश्रा का है जो पंचायतों में पन्द्रह लाख रुपए तक के भ्रष्टाचार को जायज बताते हैं। इतना ही नहीं, वे इसका गणित भी समझाते हैं कि सरपंच चुनाव में सात लाख रुपए खर्च होते हैं। पहले तो सरपंच यह राशि वसूलता है और फिर इतनी ही राशि आगे चुनाव के लिए रखता है। बचे एक लाख अतिरिक्त खर्च के लिए रखता है।