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आईआईटी से टूटता मोह!

Published: Jan 16, 2015 11:35:00 am

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Super Admin

चार साल आईआईटी में पढ़कर इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करना लाखों छात्रों का सपना होता…

चार साल आईआईटी में पढ़कर इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करना लाखों छात्रों का सपना होता है। लेकिन क्या अब इस सपने से मोह टूटने लगा है? हाल ही में आई एक रिपोर्ट के आंकड़ों को देखें, तो ऎसा महसूस किया जा सकता है। इस रिपोर्ट के मुताबिक 2010 में 769 छात्रों का प्रवेश लेने से इंकार कर देना आईआईटी की साख को बड़ा झटका कहा जा रहा है। हालांकि इसके बाद काउंसलिंग प्रक्रिया सुधारी गई, पर जानकार मानते हैं कि आईआईटी का क्रेज पहले से कम जरूर हो गया है।

प्रो. यशपाल, जाने-माने शिक्षाविद्
मैं इस बात को नहीं समझ पाता हूं कि हम केवल आईआईटी या ऎसे बड़े संस्थानों के पीछे ही क्यों पड़े रहते हैं? केवल आईआईटी ही पर्याप्त नहीं हैं, हमें ऎसी शिक्षा चाहिए, जो सारे पहलुऔं को समेटे। ज्ञान परिपूर्णता लिए होना चाहिए। जो लोग एंट्रेस एग्जाम कराते हैं, उनके दिमाग में आना चाहिए कि इससे बच्चे प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षा के लिए तो तैयार हो सकते हैं, लेकिन उनको अच्छी शिक्षा का मानक नहीं कहा जा सकता है। अब नए लड़के परम्परागत शिक्षा से हटकर भी सोचने लगे हैं। शिक्षा का पैटर्न बदल भी रहा है, और बदलना भी चाहिए।

आईआईटी जैसे संस्थान केवल “स्पेशलिस्ट” बना सकते हैं, जो काफी नहीं है। सरकार को सोचना चाहिए कि वह और आईआईटी बनाकर कोई बड़ा काम नहीं कर रही है। वहां छात्र “कॉम्पिटेंट” तो बन सकते हैं, पर “कम्पलीट” नहीं। शिक्षा ऎसी हो, जो छात्रों को बेहतर इंसान भी बनाए। शिक्षा में प्रशासनिक स्तर पर सुधार की काफी जरूरत है। हमारी शिक्षा में अभी उतनी आजादी नहीं है। अगर किसी छात्र की इंजीनियरिंग करते-करते दूसरे विषय में रूचि पैदा हो, तो उसमें जाने की आजादी होनी चाहिए। हमारा शिक्षा प्रशासन शुरू से ही विद्यार्थियों को अनुशासन में बांधकर रखता है। पिछले कुछ वर्षो में जितनी भी सृजनात्मकता हुई है, उन्हें करने वाले बहुत-से लोग ऎसे हैं, जिन्होंने अलग-अलग जगह अलग-अलग विषयों में काम किया है। गौरतलब है कि अनुशासन की दीवारों में ही बांधकर सृजनात्मकता नहीं पैदा की जा सकती।

हम अक्सर विदेशी संस्थानों की तारीफ करते हैं, वहां तो छात्रों को विषय के बाहर भी पढ़ने की आजादी होती है। ऎसा करनेे वाले आगे बढ़ते हैं। यह सही है कि देश की तरक्की के लिए अच्छे इंजीनियर, मैनेजर चाहिए, लेकिन उन्हें अपने विषय में ही कैद नहीं हो जाना चाहिए। सूचना व ज्ञान में फर्क करना होगा। आईआईटी जैसे बड़े संस्थानों से लेकर प्रत्येक संस्थान में ऎसे छात्र तैयार करने चाहिए, जो नए तरीके और नई सोच के साथ काम कर सकें।


अब खोने लगी है चमक
आनंद कुमार, सुपर-30 के संचालक
अब आईआईटी का “क्रेज” पहले जैसा नहीं रहा। आईआईटी का ब्रांड चमक खो रहा है, पुराना दौर खत्म हो गया है। पहले आईटी सेक्टर में तेजी थी, लेकिन अब उतनी नहीं रही। पहले आईआईटी की किसी भी ब्रांच से छात्र पढ़ लेते थे, तो भी उन्हें नौकरी मिल जाती थी। अब आर्थिक संकट आने की वजह से आईटी में नौकरियां भी घट गई हैं। दूसरा, कपिल सिब्बल ने आठ नए आईआईटी और खोल दिए हैं, कुछ नए आईआईटी के पास तो अपना भवन भी नहीं है। जिन बच्चों को पटना आईआईटी, धनबाद, जोधपुर मिलता है, तो वे एनआईटी में ही चले जातेे हैं। यह तो साफ है कि यहां पढ़ाई की गुणवत्ता पहले जैसी नहीं रही। आईआईटी अब अपनी गुणवत्ता खो रही है।

पहले भारत से बाहर जाने के लिए छात्र बहुत कम सोचते थे, पर अब तो स्नातक के लिए भी बाहर जाने लगे हैं। आईआईटी टॉप-200 की लिस्ट में भी नहीं आता है। समय रहते आईआईटी को सुधार करने चाहिए। अब और ज्यादा सीटें नहीं बढ़ाई जाएं। जितनी भी सीटें हैं, उनकी गुणवत्ता को बढ़ाना चाहिए। यहां रिसर्च कार्य अधिक कराना चाहिए। जब तक रिसर्च को मजबूत नहीं करेंगे, तो आईआईटी का नाम बड़ा नहीं होगा। अब अन्य संस्थानों से भी अब अच्छा प्लेसमेंट मिलने लगा है, वहां भी अच्छे ब्रांच हैं। नए आईआईटी में तो पर्याप्त संसाधन भी नहीं हैं। इसलिए जरूरी है कि प्रवेश से लेकर संसाधन, गुणवत्ता और प्लेसमेंट पर आईआईटी को फिर से विचार करना चाहिए और अपनी साख चमकाने की कोशिश करनी चाहिए।

सीटें तो खाली रहेंगी ही
आर. के. शिवगांवकर, निदेशक, आईआईटी, दिल्ली
खाली रहने वाली सीटों की संख्या अब कम हो गई है। हमने तीन राउंड काउंसलिंग शुरू कर दी है, जिससे अब सीटें बहुत कम खाली रहती हैं। मेरे हिसाब से करीब 100 सीटें अभी खाली होंगी। आईएसम धनबाद में खाली रह जाती हैं। आईआईटी में कई छात्र पहले प्रवेश ले लेते हैं, फिर एनआईटी जैसी संस्था में मनपंसद ब्रांच मिलने पर सेमेस्टर शुरू होने के बाद भी छोड़कर चले जाते हैं। दूसरे अच्छे संस्थान खुलने से फर्क पड़ा है। कई दफा आरक्षित कोटे के छात्र पूरे नहीं आ पाते हैं, चूंकि कोटा परिवर्तित नहीं हो सकता, इसलिए सीटें खाली तो रहेंगी ही। सीटें भरने के लिए ही तीन राउंड काउंसलिंग सिस्टम अपनाया। पर इसके बाद सेमेस्टर शुरू हो जाता है, तो फिर हम कुछ नहीं कर सकते। इसके बाद प्रवेश के लिए कोई प्रावधान नहीं हैं। लेकिन यकीन मानिए छात्रों के लिए आईआईटी पहले भी सपना था, अब भी है, उसमें कोई कमी नहीं आएगी।

फैकल्टी की कमी
आईआईटी भले ही देश की प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थाएं मानी जाती हों। लेकिन वहां भी लम्बे समय से अध्यापकों की भारी कमी चली आ रही है। हाल ही में मानव संसाधन मंत्री ने संसद में बताया कि बीटेक और एमटेक करने के बाद अधिकतर लोग बड़ी कम्पनियों में काम करने चले जाते हैं। पीएचडी नहीं करते इस कारण अध्यापक नहीं मिलते। एनआईटी का भी यही हाल है।
आईआईटी का हाल
अध्यपाक/छात्र स्वीकृत अनुपात 1:10
वास्तविक अनुपात 1:16.5
इतने शिक्षक कम 2608
एनआईटी की स्थिति
अध्यपाक/छात्र स्वीकृत अनुपात 1:12
वास्तविक अनुपात 1:17.6
इतने शिक्षक कम 3034

भारी खर्चा
सरकार आईआईटी के एक विद्यार्थी पर एक साल में 3 से 4 लाख रूपए खर्च करती है।
आईआईटी का 80 फीसद खर्च सरकार (एमएचआरडी) द्वारा दी जाती है।
आईआईटी बॉम्बे का कुल सालाना खर्च 250 करोड़ रूपए है, जिसमें 200 करोड़ सरकारी खर्च से पूरी किया जाता है। केवल 10 फीसद धन ही ट्यूशन फीस से
आ पाता है।
आईआईटी गुवाहाटी का कुल खर्च 110 करोड़ है, जिसमें केवल 15-16 करोड़ ही ट्यूशन फीस से आता है। जो कुल खर्च का केवल 15 फीसद है।
दिल्ली आईआईटी का सालाना कुल खर्च 170 करोड़ रूपए है, जिसमें से केवल 10 फीसद ही ट्यूशन फीस से आता है।
एसटी/एसी और नॉन क्रीमी लेयर-ओबीसी के विद्यार्थियों को कोई फीस नहीं लगती है।
25 हजार आईआईटी पास लोग अमरीका में बस चुके हैं वर्ष 1953 से अब तक।
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