ऐसा नहीं है कि देश में मलाणा ही ऐसी समझदारी दिखाने वाला एकमात्र गांव है। देश के कई गांवों में लोगों ने समझदारी दिखाई है, जिसकी वजह से वे कोरोना से बचे हुए हैं। इन गांवों में रहने वाले लोगों के पास बेशक बड़ी-बड़ी डिग्रियां नहीं होंगी, लेकिन उनमें हालात से निपटने की समझ बाकी लोगों से अधिक नजर आई। लापरवाही बरतने का नतीजा देश भुगत रहा है। पहली लहर के कमजोर पड़ते ही तमाम सरकारों से लेकर प्रशासन भी सतर्कता को भुलाने लगा था। राजनीतिक दल चुनावी रैलियों में व्यस्त हो चले थे, तो आम जनता शादी-ब्याह और सैर-सपाटे को तवज्जो देने लगी थी। लगने लगा था कि मानो हमने कोरोना महामारी पर जीत पा ली हो, लेकिन उस दौर में भी मलाणा गांव दुनिया से दूरी बनाए रखने के अपने फैसले पर अडिग रहा। चौदह महीने दुनिया से अलग रहना आसान नहीं था, लेकिन लगता है कि वहां के लोग शायद दुनिया के दर्द और परेशानी को बाकी लोगों से अधिक समझ रहे थे।
महामारी के इस महासंकट में मलाणा का मामला हमारे लिए सिर्फ एक खबर नहीं होनी चाहिए। मलाणा के तीन हजार लोगों ने जिस तरह का आत्मानुशासन दिखाया, वह अनुकरणीय है। मलाणा के लोगों ने बीमार होकर इलाज कराने का जोखिम उठाने की बजाय अपने कायदों पर अडिग रहना बेहतर समझा। कोरोना अभी गया नहीं है। हमारे आस-पास ही मौजूद है। हमें अगर इससे बचना है, तो मलाणा गांव से कुछ बातें सीखनी भी चाहिए और दूसरों को सिखानी भी चाहिए। वैज्ञानिक कोरोना की तीसरी लहर की चेतावनी दे रहे हैं। मतलब साफ है कि कोरोना का संकट दुनिया से अभी टला नहीं है। टीकाकरण के काम में लंबा समय लगने के आसार हैं। ऐसे में मलाणा गांव के लोगों का आत्मानुशासन ही हमें कोरोना के खिलाफ लड़ाई में जीत दिला सकता है।