विश्व महासागर दिवस: 8 जून पृथ्वी पर जीवन का मूलभूत आधार हैं महासागर
शैलेंद्र यशवंत
पर्यावरणीय विषयों के जानकार और सामाजिक कार्यकर्ता
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पृथ्वी की सतह का 70 प्रतिशत हिस्सा महासागरों से आच्छादित है, फिर भी हम मानवता के अस्तित्व में इसकी भूमिका के बारे में बहुत कम सोचते हैं। महासागर जीवन का मूलभूत आधार हैं। यह हमारी आवश्यकता की आधी ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं और कुल उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड का एक चौथाई हिस्सा अवशोषित कर लेते हैं। इसके अलावा इस उत्सर्जन के साथ पैदा होने वाली गर्मी का 90 प्रतिशत अंश भी। इसके चलते महासागर दुनिया के सबसे बड़े कार्बन सिंक बन गए हैं। महासागर एक प्रकार से इस ग्रह के एयरकंडीशनर हैं, जो अतिरिक्त गर्मी को सोख लेते हैं। ये हमारी जलवायु और मौसम का नियमन करते हैं और जैव विविधता का सबसे बड़ा भंडार है। इसके संसाधन विश्व भर में समुदाय, समृद्धि एवं मानव स्वास्थ्य को बनाए रखते हैं। महासागर विविध प्रकार के प्राकृतिक आवास, प्रजातियों, पारिस्थितिकीय सेवाओं के अस्तित्व में सहायक हैं, जिन पर मानवता निर्भर है।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, महासागर हमारी जैवविविधता के सबसे बड़े अंश का घर हैं और दुनिया के 3 अरब लोग आजीविका के लिए सागरों-महासागरों पर ही निर्भर हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, करीब 20 करोड़ लोगों को समुद्र से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रोजगार मिला हुआ है। प्राचीन काल से ही 90 प्रतिशत वैश्विक व्यापार समुद्री मार्गों से ही हो रहा है। हमें समुद्र का परम मित्र होना चाहिए। पर फिलहाल मानवता ही इसकी सबसे बड़ी शत्रु है। जैव विविधता अत्यधिक मछली पकडऩे, अति दोहन और अम्लीकरण के हमले झेल रही है। एक तिहाई से अधिक मछलियों की पैदावार अरक्षणीय स्तर पर हो रही है, और हम तटीय जल को रसायनों, प्लास्टिक व मानव अपशिष्ट से प्रदूषित कर रहे हैं। 2010 में समुद्र तल में कचरे का बहुत बड़ा ढेर मिला था। 5० लाख वर्ग किलोमीटर में फैले इस कचरे के ढेर को ‘हिन्द महासागर कचरा भंडार’ (इंडियन ओशन गारबेज पैच) कहा जाता है। यह दरअसल प्लास्टिक कचरा है जो मोजाम्बिक चैनल से होते हुए ऑस्ट्रेलिया से अफ्रीका तक प्रवाहित होता है और फिर छह सालों में ऑस्ट्रेलिया लौट जाता है।
मानव गतिविधियों के चलते हो रहा कार्बन उत्सर्जन ओशन वार्मिंग, अम्लीकरण और ऑक्सीजन के घटने की वजह है। समुद्री पारिस्थितिकी में पोषक तत्व बढऩे से तटीय जल में पौधे और हानिकारक शैवाल भारी मात्रा में हो जाने को यूट्रोफिकेशन कहते हैं। इस प्रक्रिया के साथ-साथ प्रदूषण के चलते तटीय जल की गुणवत्ता गिरती जा रही है। मछलियों की 90 प्रतिशत आबादी घट गई है और करीब आधी मूंगे की चट्टानें नष्ट हो गई हैं। इन्हें जितनी मात्रा में समुद्रों से बाहर निकाला जा रहा है, उतनी मात्रा में ये फिर से नहीं पनप रहे हैं। विश्व के समुद्रों में तापमान ने नए रेकॉर्ड बनाए हैं। एक माह से जारी इस ‘अप्रत्याशित’ वृद्धि के चलते वैज्ञानिकों को कहना पड़ा है कि पृथ्वी जलवायु संकट के उन हालात का सामना कर रही है, जो पहले कभी नहीं देखे गए। ओशन वार्मिंग के चलते तूफानों में तेजी आ सकती है, ध्रुवीय बर्फ पिघल सकती हैं, जिससे समुद्र जलस्तर बढ़ जाता है। समुद्री ‘गर्म लहरों’ से समुद्री वनस्पति व जीव-जंतुओं पर नकारात्मक असर पड़ता है।
गर्म होते समुद्र कई कारणों से चिंता की वजह हैं। समुद्री जल उच्च तापमान पर अधिक जगह घेरता है, समुद्र जलस्तर बढ़ जाता है और ध्रुवीय बर्फ पिघलने लगती है। उच्च तापमान समुद्री पारिस्थितिकी के लिए भयावह साबित हो सकता है। कुछ वैज्ञानिकों को आशंका है कि तीव्र गति से होती वार्मिंग का एक संकेत यह भी हो सकता है कि जलवायु संकट अनुमान से अधिक तेजी से बढ़ रहा है। हालिया दशकों में समुद्र जलवायु संकट के लिए वैश्विक बफर साबित हुए हैं द्ग वातावरण की कार्बन डाइऑक्साइड सोख कर, समुद्री गर्मी का 90 फीसदी हिस्सा संग्रहित कर और जमीन पर गर्मी का असर कम करके। कुछ वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि इन अधिकताओं को अवशोषित करने की सागरों-महासागरों की क्षमता की सीमाओं का उल्लंघन तो नहीं हो रहा।
चूंकि समुद्र का दो तिहाई हिस्सा किसी भी राज्य के राष्ट्रीय न्यायाधिकार क्षेत्र में नहीं आता, इसलिए ऐसी नीति बनाना मुश्किल हो गया है जो समुद्री जल का संरक्षण और प्रबंधन इस प्रकार करे कि इसका लाभ सभी को मिले। हालांकि 8 जून को मनाया जाने वाला विश्व महासागर दिवस इस वर्ष हाल ही में हुए दो सफल समुद्र संरक्षण समझौतों के प्रकाश में मनाया जा रहा है। ये हैं-अंतरराष्ट्रीय जल में दुनिया की जैवविविधता की रक्षा के लिए एक उच्च समुद्र संधि समझौता, और वैश्विक नेताओं द्वारा 2030 तक हमारी भूमि, जल और महासागरों के 30 फीसदी के संरक्षण के लिए प्रतिबद्धता। जहां 30-30 संधि का लक्ष्य उच्च स्तरीय सुरक्षित नेटवर्क के जरिए 2030 तक कम से कम एक तिहाई समुद्र की रक्षा करना है, वहीं उच्च समुद्र संधि, जो कि राष्ट्रीय न्यायाधिकार क्षेत्र से आगे जैवविविधता संधि (बीबीएनजे) है, अंतरराष्ट्रीय वैध फ्रेमवर्क प्रदान करती है, जिसके तहत बड़े समुद्री क्षेत्रों से संबद्ध मानव गतिविधियां संचालित होती हैं। इसमें समुद्री संरक्षित क्षेत्र बनाना और समुद्री आनुवांशिक संसाधनों तक पहुंच व लाभ में साझेदारी भी शामिल है।