
- राज कुमार सिंह, वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक
संसद से सड़क तक सत्तापक्ष और विपक्ष में टकराव तो साफ दिख रहा है, पर कांग्रेस की आंतरिक राजनीति में भी सब कुछ सामान्य नहीं है। 'वंदे मातरम्' पर संसद में चर्चा के बाद राजनीतिक गलियारों में राहुल-प्रियंका की चर्चाएं चल पड़ी हैं। सदन के नेता के नाते प्रधानमंत्री ने 'वंदे मातरम्' पर चर्चा की शुरुआत की। अपेक्षा थी कि नेता प्रतिपक्ष के नाते राहुल गांधी बोलेंगे, पर कांग्रेस की ओर से मोर्चा संभाला प्रियंका ने। इसका कारण तो कांग्रेस ही जानती होगी, पर मोदी की भाषण कला की प्रशंसा करते हुए भी प्रियंका हास-परिहास के बीच ही तर्कों और तथ्यों के साथ सत्तापक्ष पर कटाक्षों से सदन को प्रभावित करने में सफल दिखीं। सत्तापक्ष और अध्यक्ष ओम बिड़ला की ओर से ज्यादा रोक-टोक भी नहीं हुई। राहुल गांधी भी बोले, मगर चुनाव सुधार पर चर्चा में। राहुल के भाषण में न तो नए तथ्य-तर्क दिखे और न ही प्रियंका की तरह आक्रामक हुए बिना सत्तापक्ष को कठघरे में खड़ा करने की कला।
'वंदे मातरम्' में काट-छांट का आरोप लगाते हुए मोदी ने नेहरू द्वारा नेताजी सुभाष चंद बोस को लिखे पत्र के चुनिंदा अंश का उल्लेख किया था, जबकि प्रियंका ने कांग्रेस की सोच स्पष्ट करने वाले सभी अंशों का उल्लेख करते हुए उससे पहले नेताजी द्वारा नेहरू को लिखे गए पत्र और रवींद्र नाथ टैगोर के भी इस बाबत पत्र के अंश सुनाए। उसके बाद खुद कांग्रेस के अंदर राहुल से तुलना करते हुए प्रियंका को बड़ी राजनीतिक भूमिका देने की चर्चाएं फिर जोर पकडऩे लगी हैं। 'टीम राहुल' और 'टीम प्रियंका' में कथित टकराव की चर्चाओं को हवा देने में भाजपा के राजनीतिक निहितार्थ हो सकते हैं, पर इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि दोनों की अपनी-अपनी टीम है और देश-प्रदेश में अपने-अपने पसंदीदा नेता भी।
नवजोत सिंह सिद्धू पंजाब में प्रियंका की पसंद माने जाते हैं, जिनकी महत्वाकांक्षाओं के चलते 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सत्ता से बेआबरू विदाई हुई। पहले सुनील जाखड़ को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटना पड़ा और फिर कैप्टन अमरेंद्र सिंह को मुख्यमंत्री पद से। अब ये दोनों भाजपा के नेता हैं। मुख्यमंत्री बनने के लिए 500 करोड़ रुपए के सूटकेस की जरूरत होने का खुलासा करते हुए भी सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर ने बताया कि उनके पति के पार्टी और प्रियंका से भावनात्मक रिश्ते हैं। पूर्व मंत्री नवजोत कौर को कांग्रेस ने निलंबित कर दिया है। माना जाता है कि राहुल को उत्तराधिकारी बनाने तथा पार्टी में दो सत्ता केंद्रों से बचने के मकसद से ही सोनिया गांधी ने प्रियंका को परदे के पीछे की भूमिका में रखा। वे मां सोनिया और भाई राहुल के चुनाव क्षेत्रों में प्रचार व प्रबंधन संभालती रहीं। प्रियंका को राष्ट्रीय महासचिव और यूपी प्रभारी बनने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा। 'इंडिया' गठबंधन में सहयोगी दलों के साथ भी कांग्रेस के रिश्ते सहज नहीं। खरगे राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, पर अहम फैसले राहुल ले रहे हैं। हरियाणा में पिछले नेता प्रतिपक्ष को ही पुन: चुनने में पूरा साल लग गया। लगता है कि मां सोनिया की कांग्रेस को राहुल अपना नहीं पा रहे और अपनी पसंद की कांग्रेस बनाने का साहस नहीं जुटा पा रहे। परिणाम नेताओं के पलायन के रूप में भी सामने आ रहा है। पदयात्रा से राहुल की छवि बेहतर हुई, लेकिन संगठनात्मक कमजोरी के चलते उसका ज्यादा चुनावी लाभ मिला नहीं। राहुल की छवि सीधे मोदी पर तल्ख हमले करते हुए टकराव की राजनीति करने वाले नेता की बन गई है। उनकी राजनीति और मुद्दों में निरंतरता का अभाव भी है। बीच-बीच में राहुल के विदेश चले जाने से भाजपा को उनकी अगंभीर राजनेता की छवि बनाने का मौका भी मिल रहा है। वरिष्ठ नेताओं के लिए भी राहुल से मुलाकात आसान नहीं। इसका असर कांग्रेसियों में पार्टी व अपने भविष्य की चिंता के रूप में सामने आ रहा है। प्रियंका में उन्हें बेहतर संभावनाएं दिखती हैं।
इंदिरा गांधी की झलक के अलावा राजनीतिक समझ, संवाद और प्रभावी भाषण शैली में प्रियंका बेहतर मानी जाती हैं। प्रियंका के सत्र की समाप्ति पर स्पीकर की चाय पार्टी में शामिल होने और प्रधानमंत्री समेत सभी से हास-परिहास के साथ चर्चा को भी छवि निर्माण की कवायद माना जा रहा है। प्रियंका का एक ही नकारात्मक पहलू है- पति रॉबर्ट वाड्रा के विरुद्ध दर्ज मुकदमे। उसके चलते वह सरकार के विरोध में कितनी दूर तक जा पाएंगी- यह सवाल कांग्रेस में भी पूछा जा रहा है। बेशक प्रियंका की भूमिका का फैसला सोनिया ही करेंगी। वह कब और क्या होगी- यह देखना दिलचस्प होगा।
Published on:
25 Dec 2025 12:43 pm
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