7 दिसंबर 2025,

रविवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

Opinion : परिवार की धुरी महिलाओं की सेहत की चिंता जरूरी

यह सच है कि परिवारों की बुनियाद महिलाएं ही होती हैं। साथ ही यह भी एक तथ्य है कि पिछले सालों में कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ी है। यों तो घरेलू महिलाओं की श्रम शक्ति को भी कमतर नहीं आंका जा सकता। लेकिन यह भी माना जाता है कि स्त्री व पुरुष दोनों अर्थाजन करे […]

2 min read
Google source verification


यह सच है कि परिवारों की बुनियाद महिलाएं ही होती हैं। साथ ही यह भी एक तथ्य है कि पिछले सालों में कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ी है। यों तो घरेलू महिलाओं की श्रम शक्ति को भी कमतर नहीं आंका जा सकता। लेकिन यह भी माना जाता है कि स्त्री व पुरुष दोनों अर्थाजन करे तो परिवार की समृद्धि बढ़ सकती है। इस होड़ में कामकाजी महिलाओं की चिंता कहीं खो जाती है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) ने इसी चिंता को ध्यान में रखते हुए निजी क्षेत्र की कंपनियों को कहा है कि वे अपने यहां महिलाकर्मियों को यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य सुविधाएं भी प्रदान करें। भारत के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो कामकाजी महिलाओं को घर और बाहर दोनों जिम्मेदारियों का निर्वाह करना पड़ता है।
कई मामलों में अर्थोपार्जन करने के बावजूद ऐसी महिलाओं को परिवार से समुचित सहयोग नहीं मिल पाता। विडम्बना यह भी है कि अपनी इच्छा से अधिकांश कामकाजी महिलाएं अपनी सेहत को लेकर भी फैसला नहीं कर पाती। इस सच के बीच यह भी कटुसत्य है कि नियोक्ताओं की ओर से भी अपने यहां कार्यरत महिलाओं की सेहत से जुड़ी चिंता आमतौर पर मातृत्व अवकाश देने तक ही सीमित रहती हैं। महिलाओं के स्वास्थ्य के कारण कामकाजी महिलाओं के समय का कितना नुकसान होता है, यह ताजा सर्वे में भी सामने आया है। इस सर्वे में यह चिंताजनक तथ्य बताया गया है कि प्रौद्योगिकी, डेटा, आपूर्तिकर्ता, मैन्यूफैक्चरिंग आदि से जुड़ी महिलाएं कंपनियों की ओर से यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य को लेकर उपेक्षा का रवैया अपना रही हैं। इस तरफ ध्यान दिया जाए तो कंपनियां 22 फीसदी तक उत्पादन और 18 फीसदी तक ज्यादा मुनाफा कमा सकती हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि पिछले वर्षों में नियोक्ताओं की तरफ से अपने कार्मिकों को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए कई ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जाने लगे हैं जिनमें कहीं न कहीं उनकी सेहत से जुड़े विषय भी होते हैं। नियमित स्वास्थ्य जांच शिविर लगाना भी इनमें शामिल है। फिर भी महिला कार्मिकों की सेहत में खास तौर से यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य की कहीं न कहीं अनदेखी होती दिखती है। जरूरत इस बात की भी है कि कार्यस्थल के साथ-साथ कामकाजी ही नहीं, तमाम महिलाओं की सेहत की चिंता घर-परिवारों में भी की जाए। आमतौर पर देखा जाता है कि जिम्मेदारियों के बोझ के चलते खुद महिलाएं भी अपनी स्वास्थ्य समस्याओं को नजरंदाज कर देती हैं। जिम्मेदारी हम सबकी है क्योंकि महिलाएं ही परिवार की धुरी होती हैं।