scriptLokshabha Elections 2024: उत्तर-निरुत्तर | Patrika Group Editor In Chief Gulab Kothari Special Article 12 May Uttar-Niruttar | Patrika News
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Lokshabha Elections 2024: उत्तर-निरुत्तर

प्रत्येक देश की सभ्यता समय के साथ बदलती है। समय स्वयं भी परिवर्तनशील है। उत्तर प्रदेश की यात्रा में पानी की सतह पर अशांति है और भीतर-नीचे शांति है।

जयपुरMay 12, 2024 / 10:16 am

Gulab Kothari

गुलाब कोठारी

प्रत्येक देश की सभ्यता समय के साथ बदलती है। समय स्वयं भी परिवर्तनशील है। उत्तर प्रदेश की यात्रा में पानी की सतह पर अशांति है और भीतर-नीचे शांति है। लोकसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दों से दूर नई पीढ़ी के भविष्य को ध्यान में रखकर मतदान किया जाता है। अत: दृष्टि-क्षमता-इच्छाशक्ति जैसे प्रश्न महत्वपूर्ण हो जाते हैं। आज चुनाव, व्यापार बनता जा रहा है। छोटे दल राष्ट्रीय स्तर पर न तो प्रभावी हो पाते हैं, न ही स्वार्थ से ऊपर ही उठ सकते हैं। बड़ा दल केवल एक ही है-भाजपा। कांग्रेस केवल एकसूत्री कार्यक्रम में व्यस्त है- राहुल गांधी को रायबरेली से जिताना है। भले ही पूरे प्रदेश में कांग्रेस हार जाए। मैं एक बात नहीं समझ पाया कि क्या कांग्रेस, राहुल को शक्तिशाली उम्मीदवार नहीं मानती? क्योंकि प्रियंका को लगता है कि वह रायबरेली-अमेठी में नहीं बैठेंगी तो राहुल हार जाएंगें? क्यों देशभर के सारे नेता अपने-अपने प्रदेश से राहुल की सहायता के लिए रायबरेली पहुंच रहे हैं? राहुल गांधी इतने कमजोर हैं? तब शेष उम्मीदवारों को तो जीतने की आस ही छोड़ देनी चाहिए।
क्या मतदाता के मन का फैसला भी पार्टियां ही कर लेंगी? मतदाता की आज कितनी श्रेणियां हो गई अथवा बना दी गई। देश का शिक्षित वर्ग केवल तर्क के आधार पर ही चुनाव चर्चा करता है। विदेशी चिन्तन के दबाव में भारत के सांस्कृतिक धरातल से वह अनभिज्ञ है। किसी भी चुनाव में उसका चिन्तन अक्षरश: खरा नहीं उतरता। वह आज भी बेरोजगारी, महंगाई, आरक्षण जैसे सदाबहार मुद्दों पर ही अटका है। रोज मीडिया को फॉलो करता है। उसका स्वयं का कोई निष्कर्ष नहीं निकलता। जो भारतीय है, वह गंभीर है, जीवन से जुड़ा है। वह मीडिया और नेताओं के भाषणों पर चिन्तन नहीं करता, जितना कि पिछले पांच साल के जीवन को केन्द्र में रखता है। वह चुनाव से महिनों पहले तय कर चुका होता है कि उसे क्या करना है।
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क्या मतदाता को नहीं दिखाई देता कि समाजवादी पार्टी पिछले चुनाव में कांग्रेस के विरुद्ध थी, आज गठबंधन में है। पूरी कांग्रेस पार्टी विधानसभा में साफ हो गई थी। अब केवल एक सीट को बचाकर उत्सव मनाना चाहती है। सपा में यादवों, कांग्रेस में मुसलमानों का ध्रुवीकरण पहले भी कुछ नहीं कर पाया था। दोनों दलों ने नया क्या किया जो जनता पारितोषिक देगी।
चुनाव में मुख्य रूप से तीन मुद्दे चर्चा में हैं अथवा लाए जाते हैं- आरक्षण, संविधान संशोधन और जातीय गणना। आज तो राहुल गांधी, अखिलेश यादव, संजय सिंह जैसे नेताओं ने ये ही मशालें उठा रखी हैं। शुक्रवार को कन्नौज, कानपुर, लखनऊ में इनको देश सुन चुका है। राहुल गांधी ने राष्ट्रीय संविधान सम्मेलन में कहा कि भाजपा आरक्षण समाप्त करना चाहती है।

मतदाता जानता है

संविधान के विरुद्ध जातीय गणना का मुद्दा कितना वैध होगा, कितना देश की अखण्डता और एकता की रक्षा कर पाएगा, इस पर तो अब नई पीढ़ी को चिन्तन करना चाहिए। महंगाई-बेरोजगारी तो चुनावों के परम्परागत मुद्दे बन गए।
संपूर्ण प्रदेश के विभिन्न दलों के नेताओं ने इन्हीं मुद्दों को संवाद के केन्द्र में एक समान रखा। कुछ ने केन्द्र के सीबीआइ-ईडी जैसी एजेंसियों के दुरुपयोग की, डराने-धमकाने की भी चर्चा की। लगभग सभी विपक्षी नेताओं ने भाजपा की कार्यशैली के विरुद्ध असंतोष जताया पर किसी नेता ने यह नहीं कहा कि यदि उनका दल सत्ता में आया तो क्या करेगा। विकास की तो कहीं चर्चा तक नहीं हुई। इसका अर्थ क्या यह नहीं है कि चुनाव का केन्द्र केवल भाजपा ही है। भाजपा को लाना है या नहीं लाना है। नहीं आई तब देश को क्या लाभ होगा।
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यह भारत का भाग्य है या दुर्भाग्य, कि इतने बड़े देश की सत्ता खण्ड-खण्ड हो गई थी। प्रांतीय सरकारों ने अपने वर्चस्व और जनसहयोग का दुरुपयोग ही किया। सभी क्षेत्रीय दल आज कठघरे में दिखाई पड़ रहे हैं। हर एक दल अपराध-भ्रष्टाचार-सत्तान्धता का पर्याय रह चुका है। आज किस मुंह से मतदाता को रिझाए?
ज्यादातर खोखले हैं। क्या मतदाता उनके शासन को कभी भूल पाएगा? उनके शासन को पुन: आमंत्रित करेगा? इसीलिए देश, कांग्रेस की ओर देखता है और कांग्रेस एक ही स्तंभ राहुल पर टिकी है। वे जीते-हारे, क्या अन्तर पड़ जाएगा।
पं.दीनदयाल उपाध्याय ने अपनी ‘पॉलिटिकल डायरी’ में लिखा था- ‘कोई बुरा प्रत्याशी केवल इसलिए आपका मत पाने का दावा नहीं कर सकता कि वह किसी अच्छे दल की ओर से खड़ा है। बुरा-बुरा ही है। वह किसी का हित नहीं कर सकता। दल के हाईकमान ने ऐसे व्यक्ति को टिकट देते समय पक्षपात किया होगा। निर्णय में कोई भूल भी हो सकती है। इसे सुधारना उत्तरदायी मतदाता का कर्तव्य है।’ यही चुनाव का अर्थ है।
इसी निर्णय की भूल भी जानबूझकर की जाती है। हानि भी उठानी पड़ती है। मायावती का अपने भतीजे को पार्टी पद से बर्खास्त करना, प्रमुख सीटों से तीन-तीन बार प्रत्याशी बदलना जोरों से चर्चा में है। इसका अर्थ लगाया जाने लगा है कि मायावती ने भाजपा से कोई गुप्त समझौता कर लिया है। एक चर्चा यह भी है कि मायावती स्वयं ही इंडिया गठबंधन में जा रहीं हैं।
भाजपा और अन्य दलों में एक बड़ी चर्चा इस बात को लेकर भी है कि भाजपा के होर्डिंग्स-पोस्टरों में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को बाहर रखा गया है। चुनाव केवल ‘मोदी की गारंटी’ पर लड़ा जा रहा है। अर्थ यह लगाया जा रहा है कि जो स्थिति राजस्थान में वसुंधरा राजे की, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह की हुई है, क्या वही योगी जी की प्रतीक्षा नहीं कर रही।
कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश के चुनाव में कोई मुद्दा ही नहीं है, कोई नया कार्यक्रम-सपना चर्चा में नहीं है। केवल जातियों को तोड़कर बिखेर दिया जाए, आरक्षण हटने का डर पैदा किया जाए। कौन कह रहे हैं, उनको भी मतदाता जानता है। यदि युवा मतदाता को भविष्य के प्रति आश्वस्त नहीं किया तो विपक्ष कुछ और कम ही होता दिखाई दे रहा है। कोई दल आज की तरह सुरक्षित और अपराधमुक्त प्रदेश देने की स्थिति में तो नहीं है।

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