‘आखिरी चक्रवात’ एक जून को सक्रिय रहेगा। तमाम चक्रवातों का असर ही बताएगा कि जो आंधी-तूफान आने वाला है उसमें बरगदों की ‘जड़ें हिलेंगी’ या मजबूती से डटी रहेंगी। वैसे तूफान में कई ‘अच्छे-अच्छों’ के ‘टीन-टप्पर’ भी उड़ जाएंगे। लेकिन ‘कुर्सी’ जहां है, वहीं रहेगी। इसीलिए कुर्सी की फिक्र सबको होने लगी है। ..कुर्सी भी कोई मामूली नहीं बल्कि खास। …हर कोई लम्बे समय से इस कुर्सी पर ‘ध्यान’ लगाए बैठा है। उधर से किसी ने कहा- कुर्सी तो पहले भी हमारी थी। पर दस बरस पहले ऐसी ‘झाड़—फूंक’ हो गई कि ‘चारों पाए चित्त’ हो गए। …तब से बस जतन ही जारी है। अब कुछ ‘मनसबदारों’ के कारण हौसला बढ़ा है और पिछले चार-पांच साल में कुछ ‘नाते—रिश्तेदारी’ भी बढ़ाई है।
शायद, इस बार कुर्सी पर बैठने का मौका मिल जाए। …पर वे तो निश्चिंत होकर ‘ध्यान’ में चले गए। अब किस- किस का ध्यान रखोगे। ध्यान करने वाले का या फिर उन मशीनों का जिनसे नतीजों की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। …सच तो यह है कि जहां देना था वहां ध्यान दिया ही नहीं। बस इतना ही कहते रहे ‘देवतुल्यों’ को कि हमारा ध्यान रखना। देवतुल्य भी जानते हैं कि उनकी बारी पांच साल में एक बार ही आती है। कुर्सी की फिक्र में तुमने ज्यादा कुछ नहीं किया, सिर्फ पब्लिक का ‘ध्यान बंटाने’ में ही आगे रहे। …पब्लिक के सब ध्यान में हैं। इसलिए अब तो चक्रवातों का असर ही बताएगा कि किसका ध्यान सही था।
— हरीश पाराशर