सरकार का कहना है कि विकास कार्यों के लिए खनन गतिविधियां जरूरी हैं। लेकिन सवाल यह है कि अवैध खनन क्यों होने दिया जा रहा है और इससे किसका फायदा हो रहा है? प्रशासन क्या कर रहा है? अवैध खनन से न सिर्फ सरकार को राजस्व का नुकसान होता है बल्कि प्राकृतिक संसाधनों का भी दुरुपयोग होता है। विकास के बजाय ये विनाश के कारक बन रहे हैं। अवैध तरीके से होने वाले खनन या क्रशर के कार्यों में सुरक्षा मानकों का भी पालन नहीं होता है। इससे कामगारों के साथ ही आसपास रहने वालों के लिए भी खतरा बना रहता है। प्रदूषण की समस्या भी होती है।
अवैध खनन में सुरक्षा मानकों का किस तरह उल्लंघन होता है, यह शिवमोग्गा हादसे से सामने आ चुका है। इतने बड़े पैमाने पर विस्फोटक सामग्री कैसे रखी गई थी? वैध लाइसेंस के बिना क्रशर चलने के बावजूद प्रशासन ने कार्रवाई क्यों नहीं की? ये हालत तब है जब राज्य में अवैध खनन बड़ा राजनीतिक मुद्दा रहा है। दरअसल, प्रशासनिक व्यवस्था आजकल जिस ढर्रे पर चल रही है उसमें हादसों के बाद ही सरकार की तंद्रा टूटती है और प्रशासन भी तभी सक्रिय होता है। लेकिन, कुछ ही दिनों में सब कुछ पहले जैसा हो जाता है। सरकार ऐसे हादसों के बाद मुआवजे और जांच की घोषणा कर देती है। जांच के बाद दोषियों पर कार्रवाई और किसी को नहीं बख्शने की बातें कही जाती हैं। लेकिन, जांच रिपोर्ट आने तक मामला ठंडा पड़ चुका होता है और कार्रवाई महज रस्मअदायगी बनकर रह जाती है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार जांच अंजाम तक पहुंचेगी और सरकार अवैध खनन और क्रशर गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए ठोस कदम उठाएगी। विस्फोटक सामग्री भंडारण सहित अन्य सुरक्षा मानकों को भी सख्ती से लागू कराया जाएगा ताकि भविष्य में इस तरह के हादसों को टाला जा सके। खनन सुरक्षा मानकों को लेकर नए दिशा-निर्देश भी बिना किसी देरी के जारी किए जाने चाहिए। साथ ही खनन से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान की भरपाई के लिए भी अविलंब कदम उठाने की जरूरत है। खनन वाले क्षेत्रों में एकत्रित कोष का भी नियमों के अनुसार उपयोग किया जाना चाहिए। इस कोष में जमा राशि का उपयोग संबंधित क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण संबंधी कार्यों में किया जाना चाहिए। इसके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए ठोस योजना भी बनाई जानी चाहिए।