
सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरावली पहाडिय़ों की एकरूप नई परिभाषा को स्वीकार किए जाने के बाद उठे चौतरफा विरोध के बीच केंद्र सरकार ने भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (आइसीएफआरई) को खनन प्रतिबंधों के दायरे में आने वाले क्षेत्रों की पहचान करने और संबंधित राज्यों को किसी भी नए खनन पट्टे की अनुमति न देने के निर्देश दिए हैं।ये निर्देश 20 नवंबर के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालना में ही जारी किए गए हैं, लेकिन इससे यह भी स्पष्ट होता है कि अब 'सियासी डैमेज कंट्रोल' के अंतर्गत सार्वजनिक असंतोष को देखते हुए मुद्दे पर स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश की जा रही है। आइसीएफआरई को उन सभी क्षेत्रों की पहचान करने को कहा गया है, जहां पहले से खनन पर प्रतिबंध है या जहां नए प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है, ताकि उन्हें संरक्षण दिया जा सके।
यह कदम विरोध प्रदर्शनों को शांत करने का प्रयास ही माना जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट में सरकार के रुख में कोई ठोस बदलाव दिखाई नहीं देता। यह अपेक्षा की जा सकती थी कि राज्य सरकारों द्वारा 'नए राजस्व अवसर' तलाशने के नाम पर अरावली की परिभाषा में किए गए बदलावों का केंद्र सरकार कड़ा विरोध करती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बल्कि कहा गया कि नई परिभाषा से अरावली का केवल 0.19 फीसदी क्षेत्र ही प्रभावित होगा। लगभग 1.44 लाख वर्ग किलोमीटर में फैली अरावली शृंखला में 0.19 फीसदी का अर्थ करीब 274 वर्ग किलोमीटर, यानी 27 हजार हेक्टेयर या 67 हजार एकड़ से अधिक भूभाग होता है। वर्तमान में भी अरावली के महज 0.2 फीसदी भूभाग में वैध खनन की अनुमति है। सरकार ने एक तरह से वर्तमान अवस्था को ही दोहरा दिया है। वैसे भी आंकड़े अक्सर कागजों पर ही अच्छे लगते हैं। इसकी आड़ में जमीन पर कितना अवैध खनन बढ़ेगा, इसका कोई भरोसेमंद आकलन कभी सामने नहीं आ पाएगा। खनन क्षेत्र एक सुव्यवस्थित और निगरानी योग्य ब्लॉक के रूप में नहीं, बल्कि तीन राज्यों के अलग-अलग जिलों में पहाड़ी ढलानों और घाटियों में बिखरा हुआ होगा। इसका सीधा लाभ, हमेशा की तरह, ताकतवर खनन लॉबी को ही मिलेगा।
पूरे विवाद को केवल वैध और अवैध खनन की बहस तक सीमित कर देना भी काफी नहीं। अरावली की 100 मीटर वाली नई परिभाषा को मान लेने के बाद भले ही एमपीएसएम में खनन का दायरा सीमित कर दिया जाए, लेकिन क्या इससे इस प्राचीन पर्वतमाला को निर्माण गतिविधियों से कोई खतरा नहीं रहेगा? जगजाहिर है कि एनसीआर क्षेत्र, खासकर फरीदाबाद और गुरुग्राम में अरावली के लिए खनन से भी बड़ा खतरा रियल एस्टेट गतिविधियों से है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर बहस के दौरान ही कई रियल एस्टेट कंपनियों ने अरावली के आसपास नए प्रोजेक्ट घोषित कर दिए हैं। ऐसा न हो कि खनन का मुद्दा ध्यान भटकाने का साधन बन जाए और लाभ कोई और उठा ले।
Published on:
26 Dec 2025 01:20 pm
बड़ी खबरें
View Allओपिनियन
ट्रेंडिंग
