सरकार द्वारा सामाजिक-आर्थिक-जाति जनगणना के जाति संबंधी आंकड़े सार्वजनिक न करने से उपजी बहस हिंदुस्तानी दिमाग की इसी बीमारी का एक नमूना है। पहली नजर में सरकार की सफाई ठीक लगती है। जनगणना के आंकड़े की छानबीन में अक्सर वक्तलग जाता है। पूरे आंकड़े जारी होने में पहले सात-आठ साल लगते थे तो अब के तकनीकी के जमाने में तीन-चार साल लगते हैं। बेहतर होता, अगर सरकार कोई दिन-तारीख बताती कि कब तक जाति की गिनती को कागज पर अंतिम रूप दे देगी, कब जातिवार आंकड़े सार्वजनिक कर दिए जाएंगे।