scriptआधी आबादी: वैचारिक शक्ति के मामले में पुरुषों से कमजोर नहीं हैं महिलाएं | Women are not weaker than men in terms of ideological power | Patrika News
ओपिनियन

आधी आबादी: वैचारिक शक्ति के मामले में पुरुषों से कमजोर नहीं हैं महिलाएं

नारी के प्रति समाज की सोच को बदलना होगा ।

Apr 19, 2021 / 09:49 am

विकास गुप्ता

आधी आबादी: वैचारिक शक्ति के मामले में पुरुषों से कमजोर नहीं हैं महिलाएं

आधी आबादी: वैचारिक शक्ति के मामले में पुरुषों से कमजोर नहीं हैं महिलाएं

ज्योति सिडाना, समाजशास्त्री

प्रसिद्ध नारीवादी वर्जिनिया वुल्फ ने अपनी एक चर्चित पुस्तक में लिखा था कि महिला का अपना खुद का कमरा/ स्पेस होना चाहिए, जहां वह स्वयं को इतना स्वतंत्र अनुभव करे कि वह खुद को काल्पनिक एवं गैर-काल्पनिक (फिक्शन एवं नॉन-फिक्शन) दोनों रूपों में देख सके। जिस तरह काल्पनिक लेखन करते समय हम स्वतंत्र होकर जो मन में आता है वह लिखते हैं और अपनी कल्पनाओं को उड़ान देते हैं, ठीक उसी प्रकार निजी स्पेस में महिला को बिना किसी भय के हर स्तर की उड़ान भरने की स्वतंत्रता प्राप्त करनी चाहिए, ताकि उसकी सूक्ष्म और वृहद् स्तर की बौद्धिकता प्रतिबिंबित हो सके। वुल्फ तर्क देती हैं कि महिलाओं की कथा साहित्य लेखन में कम उपस्थिति का कारण उनमे प्रतिभा की अनुपस्थिति की बजाय अवसर की कमी का परिणाम है।

महिलाओं को सिर्फ शरीर के रूप में ही देखा जाता है। इसी वजह से महिलाओं के खिलाफ हिंसा और अपराध की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है। उसके पास ज्ञान, अर्थतंत्र, शक्ति, विचार और राजनीतिक समझ भी है, लेकिन इसकी हमेशा से उपेक्षा की जाती रही है। समाज में अनगिनत ऐसे उदाहरण हैं, जो यह सिद्ध करते हैं कि महिलाओं की इन सभी क्षेत्रों में सक्रिय सहभागिता रही है। मुश्किल यह है कि समाज उसके शरीर को केंद्र में रखकर इन सभी प्रक्रियाओं में उसकी सहभागिता और योगदान को हाशिए पर धकेल देता है। ऐसा नहीं है कि प्राचीनकाल से अब तक महिलाओं की स्थिति में कोई सकारात्मक बदलाव नहीं आया हो, परन्तु यह भी सच है कि महिलाओं के प्रति पुरुष समाज की मानसिकता में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया।

एक समतामूलक और लैंगिक विभेद मुक्त समाज के निर्माण के लिए आवश्यक है कि किसी एक जेंडर का किसी दूसरे जेंडर पर प्रभुत्व स्थापित न हो। दोनों में कोई एक दूसरे से श्रेष्ठ या अधीनस्थ नहीं है, अपितु समान है। महिलाओं के प्रति समाज की सोच को बदलना होगा। महिलाओं की प्रतिभा को कम करके आंकना, उन्हें परिवार तक सीमित रखने का तर्क देना, उन्हें केवल शरीर के रूप में स्वीकारना, यह मानना कि उनमें निर्णय लेने की क्षमता का अभाव होता है, कुछ ऐसे पक्ष हैं जो उन्हें भय मुक्त होकर अपनी अस्मिता को स्थापित करने से रोकते हैं। इसलिए उसे एक सुरक्षित समाज बनाने के लिए इन सब बाधाओं को समाप्त कर सशक्तीकरण का रास्ता तलाशना है।

Home / Prime / Opinion / आधी आबादी: वैचारिक शक्ति के मामले में पुरुषों से कमजोर नहीं हैं महिलाएं

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो