बादशाह की सवारी में अग्रवाल समाज का बादशाह, माहेश्वरी समाज का शहजादा व पुष्करणा समाज का बीरबल होता रहा है। बीरबल ही सबसे आगे झण्डा लेकर चलता है। यह झण्डा धुलंडी के दिन जोधपुरिया वास में अग्रवाल समाज की ओर से बीरबल के साथ पुष्करणा समाज से मांगा जाता है। इसके बाद झंडे के जोधपुरिया वास की बारी से बाहर आने पर गेर गांवशाही गेर में तब्दील होती है। इसी परम्परा के अनुसार पुष्करणा समाज के गेरिये झण्डा लेकर शाम साढ़े चार बजे जोधपुरिया वास में पहुंचे।
रामनवमी की शोभायात्रा को लेकर आयोजित बैठक में बादशाह की सवारी को गुलामी का प्रतीक बताते हुए बंद करने का आह्वान किया गया था। इससे विवाद हो गया। इसके बाद सर्व हिन्दू समाज की ओर से सांवरिया सेठ के नाम से सवारी निकालने का कहा गया। वहीं सर्व समाज की ओर से बादशाह की सवारी के लिए प्रशासन से इजाजत मांगी गई। बादशाह की सवारी में अग्रवाल समाज की ओर से बादशाह देने के लिए समाज के एक पक्ष की ओर से लिखित में भी दिया गया था, लेकिन प्रशासन की ओर से बादशाह की सवारी निकालने की इजाजत नहीं दी गई।