धुलण्डी के दिन शहर में गांवशाही गेर निकाली जाती हैं। यह परम्परा इस बार टूट गई। प्रशासन की ओर से बादशाह की सवारी निकालने की इजाजत नहीं देने के कारण पुष्करणा समाज की ओर से गेर का झण्डा व बीरबल नहीं दिया गया। पुष्करणा समाज के गेरियाें ने प्यारा चौक स्थित विश्वकर्मा मंदिर में धूंसा का गायन किया और वहां से छोटी ब्रह़्मपुरी मंदिर में दर्शन कर लौट गए।
जोधपुरिया वास की बारी के पास पहुंचे
बादशाह की सवारी में अग्रवाल समाज का बादशाह, माहेश्वरी समाज का शहजादा व पुष्करणा समाज का बीरबल होता रहा है। बीरबल ही सबसे आगे झण्डा लेकर चलता है। यह झण्डा धुलंडी के दिन जोधपुरिया वास में अग्रवाल समाज की ओर से बीरबल के साथ पुष्करणा समाज से मांगा जाता है। इसके बाद झंडे के जोधपुरिया वास की बारी से बाहर आने पर गेर गांवशाही गेर में तब्दील होती है। इसी परम्परा के अनुसार पुष्करणा समाज के गेरिये झण्डा लेकर शाम साढ़े चार बजे जोधपुरिया वास में पहुंचे।
वहां गांवशाही गेर के संरक्षक पं. शंभुलाल शर्मा, कैलाश टवाणी व अग्रवाल समाज के जयकिशन बजाज ने बीरबल देने का कहते हुए झण्डा मांगा। पुष्करणा समाज ने उनसे बादशाह की सवारी निकालने के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि उसके लिए प्रशासन की इजाजत नहीं है। इस पर पुष्करणा समाज ने बीरबल व झण्डा देने से इनकार कर दिया और वापस लौट गए। पुष्करणा समाज की गेर के जोधपुरिया वास की बारी से बाहर नहीं आने से गांवशाही गेर भी नहीं निकल सकी। इस दौरान विधायक भीमराज भाटी, नगर परिषद के पूर्व सभापति प्रदीप हिंगड़, पुष्करणा समाज अध्यक्ष दिनेश पुरोहित, दिलीप, पारस भाटी सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे।
यह हुआ था बादशाह की सवारी को लेकर
रामनवमी की शोभायात्रा को लेकर आयोजित बैठक में बादशाह की सवारी को गुलामी का प्रतीक बताते हुए बंद करने का आह्वान किया गया था। इससे विवाद हो गया। इसके बाद सर्व हिन्दू समाज की ओर से सांवरिया सेठ के नाम से सवारी निकालने का कहा गया। वहीं सर्व समाज की ओर से बादशाह की सवारी के लिए प्रशासन से इजाजत मांगी गई। बादशाह की सवारी में अग्रवाल समाज की ओर से बादशाह देने के लिए समाज के एक पक्ष की ओर से लिखित में भी दिया गया था, लेकिन प्रशासन की ओर से बादशाह की सवारी निकालने की इजाजत नहीं दी गई।
Published on:
26 Mar 2024 11:40 am