करीब पौने तीन लाख की आबादी के शहर में सीवरेज लाइन बिछाने का पहला चरण 2009 में शुरू हुआ था। एक दशक से लाइनें बिछाने का ही काम ही चल रहा है। कब पूरा होगा, इसका जवाब जिम्मेदारों के पास अब भी नहीं है। सीवरेज के कारण सडक़ें पहले से ही खुदी पड़ी थी, 2015 में पाइप लाइन का एक प्रोजेक्ट और शुरू हो गया। सवाल यह है कि सरकार और स्थानीय निकाय की मॉनिटरिंग इतनी लचर क्यों है? काम में गति लाने के लिए कंपनी की नकेल क्यों नहीं कसी जा रही? जहां काफी समय पहले लाइनें बिछा दी गई वहां सडक़ें दुरुस्त करने में क्यों ढिलाई बरती जा रही है? एेसे ही अनगिनत सवाल शहरवासियों के मन-मस्तिष्क पर रोजाना उमड़ रहे हैं। यह बात सही है कि निर्माण के काम चलेंगे तो कुछ मुश्किलें आएंगी ही, लेकिन उसका भी कोई छोर तो होना चाहिए।
विधायक और जनप्रतिनिधि भी सीवरेज और सडक़ों के हालात पर कई बार सवाल उठा चुके। इसके बावजूद हालात जस के तस है। इस साल हुई बारिश ने शहरवासियों के जख्मों को और कुरेदा है। अब शायद ही कोई सडक़ साबूत बची हो। मुख्य सडक़ों पर बड़े-बड़े गड्ढ़े पड़े हैं। वाहन चालक आए दिन दुर्घटनाओं का शिकार हो रहे। यहां के प्रशासक कई बार फटकार लगा चुके, इसके बावजूद निकाय अधिकारी बेशर्म बने हुए हैं। अब शहरवासियों के सिर से पानी गुजर चुका। परिस्थितियां विस्फोटक बनें, इससे पहले ही सरकार को कोई ठोस कदम उठाना चाहिए। सीवरेज कंपनी को कठोर शब्दों में ताकीद करने की भी जरूरत है। ज्यादा खस्ताहाल इलाकों में पहले काम शुरू किया जाना चाहिए। सुधार होने तक सरकार को सीधी मॉनिटरिंग करनी चाहिए। कहीं एेसा न हो कि दीपोत्सव की खुशियां खस्ताहाल सडक़ों पर ही मनानी पड़े। लेकिन इसका ठीकरा सरकार के माथे पर ही फूटेगा।