
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले ऐसी योजनाओं की घोषणा हो रही है, जो महिलाओं को संबल देंगी। (फोटो : ANI)
मध्य प्रदेश के 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले शिवराज सिंह चौहान सरकार ने 'लाडली बहना योजना' शुरू की, जिसने पूरे चुनावी नक्शे को बदल दिया। 'लड़की-बहिन योजना' के नाम पर ऐसा ही फॉर्मूला महाराष्ट्र में बीजेपी के काम आया। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की 'लक्ष्मी भंडार' हो या झारखंड में हेमंत सोरेन की 'मइया सम्मान योजना'… इन कैश ट्रांसफर स्कीमों ने हर दल को फायदा पहुंचाया है। लेकिन अब ट्रेंड कुछ बदल रहा है। जी हां, बिहार में अब एनडीए के घटक बीजेपी और जदयू ने नया दांव खेला है। जानकार बताते हैं कि यह दांव काम कर गया तो कैश ट्रांसफर योजना से कहीं ज्यादा मारक बन सकता है। इन योजनाओं का नाम है जीविका पहल और मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना।
राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर आशुतोष मिश्रा बताते हैं कि जीविका और कैश ट्रांसफर योजनाओं में बड़ा अंतर है। वह यह कि जीविका पहल केवल पैसा देने तक सीमित नहीं है। यह महिलाओं को साझेदार बनाती है और उन्हें सामाजिक फैसलों में बड़ा रोल देती है। आसान कर्ज और प्रशिक्षण के जरिए यह महिलाओं को आर्थिक आजादी और आत्म-सम्मान देती है। आज करीब 1.4 करोड़ महिलाएं जीविका नेटवर्क से जुड़ी हैं। वहीं नकद राशि या कैश ट्रांसफर सीधे महिलाओं के बैंक खातों में डालना या पेंशन देना, उनकी जिंदगी में स्वतंत्रता और गरिमा लेकर आते हैं लेकिन सीमित समय के लिए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस महीने की शुरुआत में बिहार राज्य जीविका निधि शाखा सहकारी संघ लिमिटेड लॉन्च किया था। इसका मकसद जीविका से जुड़ी महिलाओं को कम ब्याज दरों पर फंड उपलब्ध कराना है। इसके तहत प्रधानमंत्री ने 105 करोड़ रुपये इस योजना में ट्रांसफर किए। इस योजना का महत्व समझने के लिए हमें लगभग दो दशक पीछे जाना होगा। 2006 में नीतीश कुमार सरकार ने विश्व बैंक के साथ मिलकर जीविका योजना शुरू की थी। इसका उद्देश्य बिहार की ग्रामीण महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाना था। इसके तहत महिलाओं के स्वयं सहायता समूह बनाए गए, जिससे आर्थिक निर्भरता, कौशल विकास और रोजगार के मौके बढ़े।
प्रो. मिश्रा बताते हैं कि जीविका की कहानी उन महिलाओं की है, जो झोपड़ियों में इकट्ठा होकर नोटबुक संभालती हैं और धीरे-धीरे आत्मनिर्भर बनने की कला सीखती हैं। जीविका ने समय के साथ ग्रामीण घरों को स्वरोजगार और कुशल मजदूरी के मौके दिए हैं। उन्हें सामाजिक फैसले लेने में आत्मनिर्भर बनाया, जिससे दहेज हत्या और घरेलू हिंसा की घटनाओं पर बड़े पैमाने पर अंकुश लग पाया है।
जीविका पहल की तरह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना शुरू की। इसमें महिलाओं को 10,000 रुपये सीधे उनके बैंक खाते में मिलते हैं, जिससे वे रोजगार शुरू कर सकें। इसमें व्यापार के विस्तार के लिए 2 लाख रुपये तक की मदद सरकार दे रही है। इस योजना का मकसद भी महिलाओं की दूसरों पर निर्भरता खत्म करना है।
राजनीतिक विश्लेषक ओपी अश्क बताते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बिहार में शराबबंदी लागू करने का फैसला सबसे बड़ा गेम चेंजर रहा है। इस फैसले से सरकार को भले ही राजस्व का भारी नुकसान हुआ। लेकिन ग्रामीण और गरीब महिलाओं ने इसे पसंद किया। क्योंकि इससे उनके घरों में घरेलू हिंसा कम हुई, परिवार की आर्थिक स्थिति सुधरी और उनका जीवन सुरक्षित बना। नीतीश कुमार के इस फैसले ने महिलाओं का भरोसा और समर्थन हासिल किया, जो चुनावी नतीजों में साफ दिखाई दिया।
साइंटिफिक जर्नल लांसेट की रिपोर्ट बताती है कि 2016 में शराबबंदी लागू होने के बाद महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा में कमी आई थी। उससे पहले ऐसे मामलों की संख्या 21 लाख से अधिक थी। रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं के खिलाफ भावनात्मक हिंसा में 4.6 प्रतिशत की गिरावट आई जबकि यौन हिंसा में 3.6 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। साथ ही शराब पीने के मामले 24 लाख तक घट गए। पाबंदी से पहले बिहार में पुरुषों का शराब पीना 9.7 प्रतिशत से बढ़कर 15 प्रतिशत हो गया था।
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Updated on:
09 Sept 2025 02:26 pm
Published on:
09 Sept 2025 02:19 pm
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