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मेंढकों का सफाया ! फंगस महामारी के कारण मच्छरों का राज, मलेरिया का संकट गहराया

Chytrid Fungus: च्यट्रिड फंगस जलवायु परिवर्तन के कारण मेंढकों को तेजी से मार रहा है,जिससे मच्छरों की संख्या बढ़ रही है।

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Chao Xu Rapist

खत्म हो रहे मेंढक, मच्छरों की मौज। फोटो वॉशिंगटन पोस्ट, डिजाइन: पत्रिका

Chytrid Fungus: जलवायु परिवर्तन (Climate Change Impact)आज हर जीव को प्रभावित कर रहा है। कल्पना कीजिए, जंगलों में कूदते-फांदते मेंढक अचानक गायब (Frog Extinction) हो जाएं। दुनिया भर में यही हो रहा है। एक छोटा सा कवक, जिसे च्यट्रिड फंगस (Chytrid Fungus) कहते हैं, मेंढकों पर हमला कर रहा है। यह फंगस ठंडी नमी वाली जगहों पर पनपता है और मेंढकों की नाजुक त्वचा खा जाता है। नतीजा ? सांस लेना मुश्किल, बीमारी और मौत। वैज्ञानिक बताते हैं कि 40 साल पहले ऑस्ट्रेलिया में पहली बार दिखा यह खतरा अब वैश्विक आपदा बन गया है।

मेंढकों की संख्या अचानक घटी

इतिहास गवाह है। सन 1980 के दशक में दक्षिण अमेरिका के वर्षावनों में मेंढकों की संख्या अचानक घटी। शोधकर्ताओं ने पाया कि यह फंगस मानव गतिविधियों से फैली। पर्यटक, मछली पालन और व्यापार ने इसे एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक पहुंचाया। आज, 500 से ज्यादा मेंढक प्रजातियां खतरे में हैं। कोस्टा रिका जैसे देशों में 70% स्थानीय प्रजातियां लुप्त हो चुकी हैं। यह सिर्फ मेंढकों की कहानी नहीं, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र का संकट है। मेंढक कीड़े-मकोड़ों को खाते हैं, जो फसलें बचाते हैं।

मच्छर मलेरिया फैलाते हैं

अब बात मच्छरों की। मेंढक कम हों तो मच्छरों का बोलबाला हो जाता है। ये मच्छर मलेरिया फैलाते हैं, जो अफ्रीका और एशिया में लाखों जानें ले लेता है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि फंगस से प्रभावित इलाकों में मलेरिया के केस 15-20% बढ़ सकते हैं। गर्म होती है और धरती से मेघा तूफान आ रहे हैं, जो फंगस को नई जगहें दे रहे हैं। भारत जैसे देशों में मानसून की अनियमितता पहले ही समस्या बढ़ा रही है। अगर मेंढक न रहें, तो खेती और स्वास्थ्य दोनों पर असर पड़ेगा।

आखिर इसका समाधान क्या ?

वैज्ञानिक कवक-रोधी दवाओं पर काम कर रहे हैं। कुछ जगहों पर मेंढकों को आर्टिफिशियल तालाबों में बचाया जा रहा है। लेकिन बड़ा बदलाव जलवायु पर नियंत्रण से आएगा। कार्बन उत्सर्जन कम करें, जंगलों को बचाएं। सरकारें अंतरराष्ट्रीय समझौतों पर अमल करें। आम आदमी छोटे कदम उठा सकता है – प्लास्टिक कम इस्तेमाल, पेड़ लगाएं। यह संकट चेतावनी है कि प्रकृति से छेड़छाड़ का खामियाजा सबको भुगतना पड़ेगा।

भारत में भी बायो डायवर्सिटी प्रोटेक्शन बढ़ाना जरूरी

बहरहाल सन 2025 तक की रिपोर्ट्स डराती हैं। संयुक्त राष्ट्र की स्टडी कहती है कि 40% उभयचर (मेंढक जैसे जीव) विलुप्त हो सकते हैं। लेकिन उम्मीद है। ब्राजील में सफल रैस्क्यू प्रोजेक्ट चल रहे हैं। भारत में भी बायोडायवर्सिटी प्रोटेक्शन बढ़ाना जरूरी। मच्छर नियंत्रण के लिए जैविक तरीके अपनाएं। यह लड़ाई सिर्फ वैज्ञानिकों की नहीं, हम सबकी है। अगर आज कदम न उठाए, तो कल पछतावा ही हाथ लगेगा।

(वॉशिंग्टन पोस्ट का यह आलेख पत्रिका.कॉम पर दोनों समूहों के बीच विशेष अनुबंध के तहत पोस्ट किया गया है।)