
भगवान श्रीकृष्ण कहलाये रणछोड़, उसी का प्रतीक है ये मंदिर
Krishna Janmashtami 2019 भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। जन्मोतस्व के मौके पर अनेकों कथाओं और लीलाओं का मंचन किया जाता है। वैसे तो भगवान श्रीकृष्ण ( Lord Krishna ) के कई नाम हैं, उनमें एक नाम रणछोड़ ( ranchhod ) भी है। भगवान श्रीकृष्ण का रणछोड़ नाम कैसे पड़ा, इसके पीछे भी एक रोचक कथा है।
द्वारका में द्वारिकाधीश मंदिर के अलावा श्रीकृष्ण का एक और मंदिर है, जो उनसे जुड़ी एक रोचक कथा का प्रतीक माना जाता है। इस मंदिर का नाम रणछोड़ जी महाराज का मंदिर है। जन्माष्टमी के मौके पर आज हम रणछोड़ नाम के पीछे का कारण बताने जा रहे हैं।
भगवान श्रीकृष्ण क्यों कहलाये रणछोड़
हम सभी जानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अत्याचारी कंस को मारने के लिए हुआ था। कंस कृष्ण जी का मामा था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, कंस के मरने के बाद उसके ससुर जरासंध ने भगवान श्रीकृष्ण को युद्ध को ललकारा लेकिन भगवान कृष्ण जानते थे कि मथुरा में उसका मुकाबला करने में समझदारी नहीं है! इसके बाद वे भाई बलराम और प्रजजनों के साथ मथुरा छोड़ देने का निर्णय लिया और द्वारका की ओर बढ़ गए।
मैदान छोड़कर भगवान श्रीकृष्ण को भागते हुए देखकर जरासंध ने उन्हें रणछोड़ नाम दे दिया। रणछोड़ का मतलब होता है युद्ध का मैदान छोड़कर भाग जाना। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण भाई बलराम के साथ प्रवर्शत पर्वत पर आराम करने लगे। इस पर्वत पर हमेशा वर्षा होती रहती थी। तब जरासंध ने अपने सैनिकों इस पर्वत को आग लगाने का आदेश दे दिया। तब भगवान श्री कृष्ण ने 44 फुट ऊंचे स्थान से कूद कर द्वारका में प्रवेश कर गए और वहां नई नगरी बनाई। तब ही से उस स्थान को रणछोड़ जी महाराज के नाम से जाना गया। इसी स्थान पर रणछोड़ जी महाराज के मंदिर का निर्माण हुआ।
द्वारका का सबसे बड़ा मंदिर
यहां पर गोमती के दक्षिण में पांच कुएं है। यहां आने वाले श्रद्धालु सबसे पहले निष्पाप कुंड में स्नान करने के बाद इन पांच कुओं के पानी से कुल्ला करते हैं, उसके बाद रणछोड़ जी महाराज के मंदिर में प्रवेश करते हैं। रणछोड़ जी का मंदिर द्वारका का सबसे बड़ा और सबसे सुंदर मंदिर माना जाता है। रण का मैदान छोड़ने के कारण यहां भगवान कृष्ण को रणछोड़ कहते हैं।
मंदिर में प्रवेश करने पर सामने ही कृष्ण जी की भव्य मूर्ती है, जो चांदी के सिंहासन पर विराजमान है। यह मूर्ती काले पत्थर से बना हुआ है, जिसमें भगवान की आंखे हीरे-मोती से बनी है। यहां पर भगवान की मूर्ती ने सोने की 11 मालाएं गले में पहनी हुईं हैं और पीले वस्त्र धारण किये हुए हैं
मूर्ती के चार हाथ है, जिनमें से एक में शंख, दूसरे में सुदर्शन चक्र, तीसरे में गदा और चौथे में कमल का फूल है। रणछोड़ जी के सिर पर सोने का मुकुट सजा है। मंदिर में आने वाले भगवान की परिक्रमा करते हैं और उन पर फूल और तुलसी दल अर्पित करते हैं। सात मंजिल के इस मंदिर की पहली मंजिल पर अंबादेवी की मूर्ति स्थापित है। यह मंदिर 140 फुट ऊंचा है।
रणछोड़ जी का परिक्रमा करना अनिवार्य है
यहां आने वाले श्रद्धालु रणछोड़ जी महाराज का दर्शन करने के बाद मंदिर की परिक्रमा करते हैं। मान्यता है कि परिक्रमा के बिना भगवान के दर्शन का पूरा फल प्राप्त नहीं होता है। यह मंदिर दोहरी दीवारों से बना है। दोनों दीवारों के बीच एक पतला सा रास्ता या गलियारा छोड़ा गया है। इसी रास्ते से श्रद्धालु मंदिर की परिक्रमा करते हैं।
Published on:
20 Aug 2019 01:21 pm
बड़ी खबरें
View Allतीर्थ यात्रा
धर्म/ज्योतिष
ट्रेंडिंग
