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अधूरी प्रेम कहानी का गवाह है यह देवी मंदिर, राजा विक्रमादित्य ने की थी यहां आत्महत्या की कोशिश

अधूरी प्रेम कहानी से जुड़ा है इस देवी मंदिर का इतिहास, कभी राजा विक्रमादित्य ने की थी यहां सुसाइड की कोशिश

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भारतवर्ष में देवी मां के कई मंदिरें है। सभी मंदिरों के अलग-अलग कथाएं और कहानियां प्रचलित हैं। आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में जानकर आप हैरान हो जाएंगे। जी हां, यह मंदिर छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ में ऊंचे पहाड़ पर स्थित है।

इस देवी मंदिर को माता बमलेश्वरी मंदिर के नाम से जाना जाता है। नवरात्रि पर यहां काफी भीड़ लगती है। देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां पहुंचते और मां का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। बताया जाता है कि यह मंदिर लगभग 2 हजार साल पुराना है। इस मंदिर का इतिहास अधूरी प्रेम कहानी जुड़ा हुआ है। कहा तो ये भी जाता है कि एक बार उज्जैन नगरी के राजा विक्रमादित्य ने यहां सुसाइड करने जा रहे थे।

बताया जाता है कि यह नगरी कभी कामाख्या नगरी में था। यहां के राजा वीरसेन का कोई पुत्र नहीं हुआ तो वे मां दुर्गा और शिव की उपासना की। इसके बाद मां दुर्गा और भगवान शिव की कृपा से एक पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम उन्होंने मदनसेन रखा। कहा जाता है कि राजा वीरसेन ने ही इस मंदिर का निर्माण करवाया था।

मान्यता है कि इस मंदिर में जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से मां की उपासना करता है, उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मंदिर तो राजा वीरसेन ने बनवा दिया लेकिन एक प्रेम कहानी के चलते यहां मां जागृत रूप में प्रतिष्ठित हो गईं।

अधूरी प्रेम कहानी

बताया जाता है कि वीरसेन के बाद कामाख्या नगरी की गद्दी माधवसेन और उनके बाद इनके पुत्र कामसेन ने संभाली। कामसेन राजा विक्रमादित्य के समकालीन थे। बताया जाता है कि कामसेन के दरबार में कामकंदला नाम की एक नर्तकी थी, जिस पर संगीतज्ञ माधवनल मोहित हो गए और बाद में दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगे।

बताया जाता है कि कामसेन का पुत्र मदनादित्य की नजर कामकंदला थी। जब उसे इस बात की जानकारी मिली कि कामकंदला माधवनल से प्यार करती है तो उसे बंदी बना लिया और माधवनल को पकड़ने के लिए सिपाहियों को भेज दिया। इस बात की जानकारी जब माधवनल को चली तो वह भागकर उज्जैन पहुंच गया।

उज्जैन नगरी पहुंचने के बाद माधवनल ने राजा विक्रमादित्य को सारी घटना बताई। इसके बाद राजा विक्रमादित्य ने माधवनल का साथ दिया और माधवनल को प्यार दिलाने के लिए कामाख्या नगरी पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण में पूरा राज्य तहस-नहस हो गया और माधवनल के हाथों मदनादित्य मारा गया।

इसके बाद राजा विक्रमादित्य दोनों के प्रेमी परीक्षा लेनी चाही। राजा विक्रमादित्य ने कामकंदला से कह दिया कि माधवनल युद्ध में मारा गया। राजा विक्रमादित्य के मुंह से इस बात को सुनकर कामकंदला यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाई और तलाब में कुदकर उसने जान दे दी। जब इस बात की जानकारी माधवनल को हुई तो उसने भी प्राण त्याग दिए।

इस घटना के बाद राजा विक्रमादित्य को बहुत अफसोस हुआ और अंदर से वे पूरी तरह टूट गए। इसके बाद राजा विक्रमादित्य ने मां बगलामुखी की पूजा करने के बाद उन्होंने मां से क्षमा मांगी और प्राण त्यागने चल दिए। बताया जाता है कि इस घटना के बाद मां प्रकट हुईं और राजा विक्रमादित्य को ऐसा करने से रोका। इसके बाद राजा विक्रमादित्य ने मां से वर मांगा कि इस प्रेमी जोड़े के लिए यहां पर जागृत रूप में प्रतिष्ठित होना होगा। इसके बाद मां ने तथास्तु कहकर यहां पर जागृत रूप में प्रतिष्ठित हो गईं।


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