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कश्मीर: नेशनल कॉन्फ्रेंस के कार्यक्रम में लगे ‘आजादी’ के नारे, देशद्रोह का केस दर्ज

यह कार्यक्रम जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस की ओर से आयोजित किया गया था, जिसका उद्देश्य धारा धारा 35-ए का समर्थन करना था।

नई दिल्लीAug 28, 2018 / 01:32 pm

Mohit sharma

National Conference

कश्मीर: नेशनल कॉन्फ्रेंस के कार्यक्रम में लगे ‘आजादी’ के नारे, देशद्रोह का केस दर्ज

नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में संविधान की धारा 35-A पर सुनवाई को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। सोमवार को मामले में सुनवाई से पहले जहां कश्मीर के कई इलाकों में धरना-प्रदर्शन और झड़पें हुई, वहीं को राज्य के पुंछ जिले में एक कार्यक्रम के दौरान ‘आजादी’ समर्थक नारेबाजी हुई। इस नारेबाजी के चलते पुलिस ने पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज किया है। आपको बता दें कि यह कार्यक्रम जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस की ओर से आयोजित किया गया था, जिसका उद्देश्य धारा धारा 35-ए का समर्थन करना था।

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पुलिस के अनुसार सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई से पहले नेशनल कॉन्फ्रेंस विधायक जावेद अहमद राणा के नेतृत्व मेंधर तहसील में प्रदर्शन किया गया था। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट में धारा 35-ए की सुनवाई का विरोध किया गया था। एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि धारा 35-ए के समर्थन इकट्ठा लोगें में से कुछ ने आजादी समर्थक नारे लगाए। इस घटना के बाद रैली में शामिल अज्ञात लोगों के खिलाफ रनबीर पैनल कोड की धारा 124A (राजद्रोह) और 120B (आपराधिक साजिश) के तहत मामला दर्ज कर लिया गया। हालांकि अभी तक किसी की रफ्तारी नहीं हो पाई है।

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क्या है धारा 35-ए

आपको बता दें कि धारा 35-ए का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 370 के अंतर्गत किया गया है। एक ओर जहां अनुच्छेद 370 कश्मीर के विशेष राज्य स्टेट सब्जेक्ट कोड का दर्जा देता है, वहीं धारा 35—ए राज्य सरकार को उसके मूल निवासियों को परिभाषित करने की आजादी देता है। 35-ए के अंतर्गत जम्मू—कश्मीर से बाहर का कोई भी शख्स वहां पर प्रोपर्टी नहीं खरीद सकता है। इसके साथ ही अगर यहां की कोई लड़की किसी बाहरी युवक से शादी करती है, तो उसके बच्चों को जम्मू—कश्मीर में संपत्ति के अधिकार से वंचित होना पड़ेगा। मतलब वो अपने नाम पर यहां कोई संपत्ति नहीं रख पाएंगे। इस कानून की एक खासियत यह भी है कि इसको संसद से पास नहीं किया गया था, बल्कि यह एक प्रेजिडेंशियल प्रावधान था, जिसको 14 मई 1954 में तत्कालीन राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने एक आदेश पारित कर लागू कर दिया था। राज्य में यह इस कानून का ही परिणाम कि बंटवारे के समय पाकिस्तान से आए लाखों शरणार्थियों को अभी तक भारत की नागरिकता नहीं मिल पाई है।

 

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