उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति नायडू ने 60 से अधिक संसद सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित महाभियोग की अपील को खारिज करते हुए कहा कि चीफ जस्टिस के खिलाफ कदाचार के कोई सबूत नहीं मिले हैं। माना जा रहा है कि उपराष्ट्रपति के इस फैसले के विरुद्ध विपक्षी दल सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं।
यहां कांग्रेस ‘संविधान बचाने’ की बात कह रही, उधर बिहार सरकार ने दलितों का सफाया कर दिया उपराष्ट्रपति की विवेचना के अनुसार इस प्रस्ताव में एक तकनीकी वजह है। इसके मुताबिक विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर राज्य सभा की सात रिटायर किए हुए सांसदों ने हस्ताक्षर किये थे जो की महाभियोग की शर्तों की अनुसार गलत है। रविवार को उपराष्ट्रपति नायडू ने महाभियोग के मसले पर लोकसभा के पूर्व महासचिव और जाने माने संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप, पूर्व विधि सचिव पी के मल्होत्रा, पूर्व विधायी सचिव संजय सिंह और राज्यसभा सचिवालय के अधिकारियों से मुलाकात की थी। प्रथम दृष्टया चीफ जस्टिस पर किसी कदाचार का आरोप तय करने के लिए साक्ष्य नहीं है। अनियमितता से कदाचार तय नहीं होता। बता दें कि देश के इतिहास में आज तक किसी भी प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग नहीं लगाया गया है| नियम के मुताबिक जब इस तरह का कोई नोटिस दिया जाता है तो राज्यसभा सचिववालय दो बातों की जांच करता है, पहला- जिन सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं उसकी जांच और क्या इसमें नियमों का पालन किया गया है या नहीं|
सिब्बल बोले नहीं जाऊंगा सीजेआई दीपक मिश्रा की अदालत में, जानिए क्या है इसका राज क्यों खारिज हुआ महाभियोग -विपक्षी दलों के नोटिस में सात पार्टियों के 71 सांसदों के हस्ताक्षर थे। लेकिन हस्ताक्षर करने वाले सांसदों में से सात सांसद ऐसे हैं जो राज्यसभा से रिटायर हो चुके हैं।
– चीफ जस्टिस पर कदाचार साबित नहीं हुआ है।
– उपराष्ट्रपति को इस प्रस्ताव में कोई मेरिट नहीं दिखा यानी तकनीकी आधार पर इस प्रस्ताव को खारिज किया गया है।
– चीफ जस्टिस के ‘दुर्व्यवहार या नाकाबलियत’ के बारे में ठोस और विश्वसनीय जानकारी नहीं है।
– जानकारों से विचार विमर्श के बाद उपराष्ट्रपति ने पाया कि इस नोटिस में महाभियोग के लिए कोई मजबूत आधार नहीं है।