उनके बारे में एक बात यह भी साफ है कि राजनीतिक जरूरतों के हिसाब से वो सख्त कदम उठाने में पीछ नहीं रहतीं। इस तरह के कई फैसले उन्होंने पहले भी ले चुकी हैं। यही कारण है कि एक राजनेता के रूप में उनकी पहचान एक सख्त महिला और अपने निर्णयों ये चौकाने वाली राजनेत्री की है। उसी नेतृत्व का परिचय उन्होंने एक बार फिर दिया है। आपको बता दें कि पीएम मोदी की सरकार बनने और यूपी विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के बार पार्टी के ही कई नेता उन पर आरोप लगा चुके हैं कि बसपा भी अब कांग्रेस, सपा, राजद, डीएमके, शिरोमणि अकालीदल व अन्य दलों की तरह एक परिवार की पार्टी बनकर रह गई है।
पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने उन पर परिवार के सदस्यों को संरक्षण देने का भी आरोप लगा चुके हैं। कई नेता पार्टी से अलग हो गए। इन आरोपों की वजह से उनकी छवि दलित समाज में बट्टा लगा है। दूसरी तरफ कुछ राजनीतिक विश्लेषक उनके इस कदम को मजबूरी में उठाया गया कदम मानते हैं। माना जा रहा है कि एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में उनकी स्थिति एक क्षेत्रीय दलों से भी कमजोर हो चुकी है। इस बात को ध्यान में दखते हुए उन्होंने कड़े फैसले लिए हैं। ताकि कैडर वोट बैंक को और टूटने से बचाया जा सके। इस बात को ध्यान में रख्ते हुए उन्होंने राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान संविधान में बड़ा बदलाव किया है। इस बदलाव के बाद अब बहन जी का कोई भी रिश्तेदार चुनाव नहीं लड़ सकता। इस बात की घोषणा भी उन्होंने खुद की है। इस दिशा में एक और बड़ा कदम उठाते हुए उन्होंने अपने भाई आनंद कुमार को उपाध्यक्ष पद से हटा दिया है।
मायावती ने यह फैसला उन तमाम पार्टियों के आरोपों के बाद लिया है, जिसमें बीएसपी सुप्रीमो पर अपने भाई को संरक्षण देने और परिवारवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाया था। इन आरोपों के बाद मायावती को पता चल गया है कि परिवारवाद पर जोर देने से उनके नेतृत्व को खतरा हो सकता है साथ ही दलित समाज का अहित होना तय है। इससे पार पाने के लिए उन्होंने ये कदम उठाए हैं।