मुख्य न्यायाधीश प्रस्तावित नए राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के शिलान्यास समारोह और हाईकोर्ट के नए परिसर के उद्घाटन में बोल रहे थे। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि उम्मीद है कि नए हाईकोर्ट परिसर की स्थापना इलाहाबाद बार को फिर से सक्रिय करेगी और लंबित मामलों के शीघ्र निपटाने में सुविधा होगी।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने इलाहाबाद हाईकोर्ट को व्यापक मानदंड निर्धारित करने पर विचार करने के लिए नोटिस जारी किया था। यह उन मामलों पर था जिन पर जमानत देते समय इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा विचार किया जा सकता है। न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की खंडपीठ ने अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद की इस दलील को ध्यान में रखा कि लगभग 7400 अपराधी 10 साल से अधिक समय से जेल में बंद है और कुछ ऐसे अपराधी हैं जो गरीब हैं और उनके पास मुकदमा लडऩे के लिए आवश्यक संसाधन नहीं हैं।
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मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इलाहाबाद बार और बेंच ने देश के कुछ सबसे पुराने कानूनी मुकदमों का निपटान किया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट बार के योगदान का उल्लेख करते हुए कहा, उन्होंने कहा इस बार ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम और हमारे संविधान के प्रारूपण में एक अमिट छाप छोड़ी है। उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जगमोहनलाल सिन्हा के 1975 के फैसले का संदर्भ दिया, जिसके परिणामस्वरूप भारत की पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को लोकसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया था, जिसके बाद आपातकाल का दौर शुरू हुआ था। उन्होंने कहा यह बहुत साहस का निर्णय था। सीजेआई ने संविधान सभा के पहले अध्यक्ष डॉ सच्चिदानंद सिन्हा, पंडित मोतीलाल नेहरू, सर तेज बहादुर सप्रू और पुरुषोत्तम दास टंडन जैसे कानूनी दिग्गजों का भी उल्लेख किया, जो इलाहाबाद बार के सभी सदस्य थे। कार्यक्रम में कानून मंत्री किरेन रिजिजू, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद, इलाहाबाद हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मुनीश्वर नाथ भंडारी और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
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