दो माह में कर सकते हैं दावा
इस संबंध में सिद्धांत मोहंती ने बताया कि भले ही मासूम के परिजनों ने उसे झूले में छोड़ दिया है, लेकिन एक-दो दिन में उनका अगर बच्चे के प्रति मन भी बदल जाएगा तो संस्था उन्हें बच्ची को नहीं सौंप सकती। इसके लिए संबंधित माता-पिता को दावा करना पड़ेगा। इसके बाद संस्था उन्हें बाल कल्याण समिति भेजेगी, जहां से परिवार न्यायालय में केस फाइल किया जाएगा। इसके बाद न्यायालय के आदेशानुसार बच्ची के माता-पिता का डीएनए टेस्ट होगा। इस तरह लंबी प्रक्रिया के बाद ही बच्ची उसके माता-पिता को मिलेगी। अगर बच्ची के माता-पिता उसे पाने के लिए दो माह से अतिरिक्त समय लगाएंगे तो फिर बाद में दावा नहीं कर पाएंगे।
खुले में न फेंकें झूला में छोड़ें
मातृनिलियम के संचालक मोहंती ने ऐसे माता-पिता से आग्रह किया है कि किसी भी परिस्थिति में वे अपनी मासूम को खुले में न फेंकें। इससे जिगर का टुकड़ा किसी जानवर का शिकार बन सकता है। सरकार की योजना के तहत मातृनिलियम, सखी सेंटर व अन्य स्थानों में शिशु पालना केन्द्र लगाया गया है। यहांं वे अपने बच्चे को छोड़ सकते हैं। वे इसकी चिंता न करें कि बच्चे को छोडऩे के बाद कोई उसे देख पाएगा या नहीं। क्योंकि हर झूले में एक मशीन लगी होती है, जिसमें बच्चे या बच्ची को रखते ही बजर बजना शुरू हो जाता है। इससे संस्था के अधिकारी-कर्मचारी समझ जाते हैं कोई नन्हा मेहमान आया है। मोहंती ने आगे बताया कि मातृनिलियम में ऐसे 6 मासूम बच्चियां आ चुकी हैं, जिन्हें संस्था ने सुरक्षित रखा है।