खाद्य पदार्थों के बढ़े दाम से खाद्य विभाग को कोई मतलब नहीं
कभी आवक कम होने की वजह से खाद्य सामान के दाम बढ़ दिए जा रहे हैं तो कभी
किसी अन्य कारण का हवाला देते हुए दाम बढ़ा कर बेचे जा रहे हैं, लेकिन
खाद्य विभाग के अधिकारी कुर्सी से हिलने का नाम ही नहीं लेते।
Food Department does not have any sense due to high prices of food items
रायगढ़. खाद्य विभाग की कार्यप्रणाली को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं। इसके पीछे कारण यह है कि कभी आवक कम होने की वजह से खाद्य सामान के दाम बढ़ दिए जा रहे हैं तो कभी किसी अन्य कारण का हवाला देते हुए दाम बढ़ा कर बेचे जा रहे हैं, लेकिन खाद्य विभाग के अधिकारी कुर्सी से हिलने का नाम ही नहीं लेते। वहीं जब उच्चाधिकरयों से मामले की जांच करने का निर्देश आता है तो वे कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति ही करते हैं। विभाग की इस निष्क्रियता से लोगों की जेब हलकी हो रही है।
खाद्य पदार्थों के दामों को लेकर एक साल पीछे जाए तो अचानक से दाल के दाम में वृद्धि हो गई थी। इस समय कुछ तो आवक की कमी थी। वहीं कुछ जमाखोरी का मामला भी था। कुछ दिन के अंतराल में ही दाल में दाम 100 से 180 तक पहुंच गया, लेकिन खाद्य विभाग के अधिकारियों को कोई फर्क नहीं पड़ा। खाद्य विभाग के अधिकारियों के हाथ-पांव तब हिले जब खाद्य सचिवालय से उन्हें निर्देश आया। इस निर्देश के बाद भी कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खाना पूर्ति ही की गई।
इसी तरह की स्थिति प्याज के दामों पर भी रही। पिछले साल ही प्याज की कीमत में उछाल आया था। प्याज की कीमत बढऩे के पीछे भी वजह यहीं बताई गई कि आवक कम होने से प्याज के दाम बढ़े हैं, लेकिन इसकी सच्चाई भी 10 फीसदी थी। इसके पीछे मुख्य वजह जमाखोरी ही थी। मौजूदा समय में पान गुटखा की कीमत में तेजी से वृद्धि हुई है। इसके पीछे व्यापारी जीएसटी लागू होने का हवाला दे रहे है।
खास बात यह है कि जीएसटी लागू होने के बाद इनके दामों में वृद्धि होना वाजिब है। वहीं दर वृद्धि करने के बाद नए प्रिंट रेट भी आने चाहिए, लेकिन पुराने दर पर ही जीएसटी का हवाला देते हुए बाजार में सामान अनाप-सनाप कीमत पर बेजे जा रहे हैं।
इसी तरह की स्थिति मौजूदा समय में टमाटर के दर पर भी है, लेकिन खाद्य विभाग के अधिकारी टमाटर हमारे कार्य क्षेत्र में नहीं आने की बात कहते हुए पल्ला झाड़ रहे हैं, जबकि पान-गुटखा के मामले में विभाग के अधिकारी अपना हाथ-पांव नहीं हिला रहे हैं। किसी प्रकार की कार्रवाई को लेकर सिर्फ उच्च अधिकारियों के आदेश का इंतजार किया जा रहा है।
स्थानीय किसानों के लिए नहीं प्लेटफार्म- वाजिब कीमत नहीं मिलने से हमेशा ही किसानों को निराशा होती है। इसमें चाहे टमाटर की बात करे या फिर प्याज की। टमाटर की खेती करने वाले किसानों को वाजिक कीमत नहीं मिलने की वजह से टमाटर सड़क पर फेंकना पड़ता है। यह स्थिति छह माह पहले ही देखी जा चुकी है। वहीं प्याज के किसानों को प्याज बिक्री के लिए प्लेटफार्म नहीं उपलब्ध करवाया जा सका। इस दिशा में खाद्य विभाग का प्रयास भी शून्य ही है।
सिलेंडर लेने में लोगों के छूटते हैं पसीने- वहीं खाद्य विभाग के गैस सिलेंडर की मानीटरिंग पर नजर दौड़ाए तो इसमें भी विभाग का ऐसा कोई कार्य नहीं है, जिसे सराहनीय कहा सके। जिला मुख्यालय में संचालित रायगढ़ गैस एजेंसी के उपभोक्ताओं बिना पसीना बहाए गैस सिलेंडर नहीं मिलता। कई बार तो स्थिति यहां तक निर्मित हो चुकी है कि उपभोक्ताओं को कलेक्टर बंगला तक का घेराव करना पड़ा। इसके बाद कुछ दिन तक तो स्थिति ठीक रहती है, फिर से स्थिति जस की तस हो जाती है।
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