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छत्तीसगढ़ के 6 वीर सपूत, जिन्होंने आजादी के यज्ञ में दी आहुति

छत्तीसगढ़ के वीर सपूत जिन्होंने आजादी के महायज्ञ में अपना योगदान देकर हो गए अमर...

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छत्तीसगढ़ के 6 वीर सपूत, जिन्होंने आजादी के यज्ञ में दी आहुति

छत्तीसगढ़ के 6 वीर सपूत, जिन्होंने आजादी के यज्ञ में दी आहुति

शहीद वीर नारायण सिंह

500 बंदूकधारियों की बनाई सेना : छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद क्रांतिवीर नारायण सिंह की तलवारबाजी के आगे अंग्रेज सैनिक पस्त थे। 1795 में सोनाखान के जमीदार परिवार में जन्मे नारायण सिंह का परिवार परोपकारी प्रवृत्ति होने के कारण लोकप्रिय था। पिता की मृत्यु के बाद 1830 में नारायण सिंह जमीदार बने। 1856 में छत्तीसगढ़ भीषण सूखे की चपेट में रहा। गांव के माखन व्यापारी का गोदाम अनाज से भरा रहा। जनता को भूखी देख नारायण सिंह ने माखन व्यापारी के गोदाम का ताला तोड़ दिया। 24 अक्टूबर1856 को नारायण सिंह को संबलपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। 28 अगस्त 1857 को वे अपने तीन साथियों के साथ जेल से भाग निकले। नारायण सिंह ने सोनाखान में 500 बंदूकधारियों की सेना बना ली। जबरदस्त मोर्चाबंदी की। काफी मुश्किलों के बाद अंग्रेजी सरकार ने नारायण सिंह को पकड़ लिया और 10 दिसंबर 1857 को उन्हें फांसी की सजा दी।

ठाकुर प्यारेलाल सिंह

37 दिनों तक की थी हड़ताल: छत्तीसगढ़ में एक कहावत अक्सर कहा-सुना जाता है- 'गरीबों का सहारा है, वही ठाकुर हमारा है'। राजनांदगांव के दैहान गांव में 21 दिसंबर 1891 को जन्मे ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने 1920 में मिल मजदूरों के हितोंं को लेकर 37 दिनों की हड़ताल की थी, जो तब तक की देश की सबसे लंबी हड़ताल थी। अंग्रेजी हुकूमत को मांगे माननी पड़ी थी। इसीलिए यह कहावत प्रचलित हुआ। सन 1915 में प्यारेलाल जी ने दुर्ग में वकालत आरम्भ की थी पर सन 1920 में जब नागपुर अधिवेशन में कांग्रेस ने असहयोग आन्दोलन छेडऩे की घोषणा की तो उन्होंने अपनी वकालत छोड़ दी और जिलेभर में असहयोग आन्दोलन का प्रचार करने निकल पड़े। असहयोग आंदोलन, झंडा सत्याग्रह, बहिष्कार आंदोलन जैसे तमाम आंदोलनों में छत्तीसगढ़ से अग्रणी भूमिका निभाने वाले गरीबों के मसीहा ठाकुर का 22 अक्टूबर 1956 को निधन हो गया।

डॉ. खूबचंद बघेल

छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वप्न दृष्टा थे : डॉ. खूबचंद बघेल का जन्म रायपुर जिले के ग्राम पथरी में 19 जुलाई सन् 1900 ईस्वी में हुआ था। छात्र जीवन में ही देश सेवा के कार्य में जुड़े रहे देशभक्तिएवं राष्ट्रीयता की भावना ने हृदय में जगह बना लिया था। सन् 1921-22 के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर डाक्टरी की पढ़ाई छोड़ आंदोलन का प्रचार-प्रसार रायपुर जिले के गांवों में घूम-घूमकर किया।1931 में 'जंगल सत्याग्रह' में भाग लेकर साथियों सहित जेल गए। 1932 में देशी वस्त्र बहिष्कार आंदोलन में पुन: जेल गए। उन्होंने आजादी के आंदोलन में सक्रिय योगदान देकर एवं तत्कालीन भारत में चल रहे राजनैतिक, सामाजिक परिवर्तन तथा आर्थिक मुक्ति आंदोलन में हिस्सा लेकर इतिहास रचा है। छत्तीसगढ़ राज्य जो अस्तित्व में 1 नवम्बर 2000 से आया है, उसके प्रथम स्वप्न दृष्टा थे। छत्तीसगढ़ के दलित नेताओं के साथ मिलकर शैक्षणिक, सामाजिक, राजनैतिक स्तर में सुधार के लिए काम किए।

सेठ शिवदास डागा

आनरेरी मजिस्ट्रेट का पद त्यागा: सेठ शिवदास डागा 22 नवंबर1885 को राजस्थान के बीकानेर में जन्मे थे। उनके पितामह व्यवसाय के लिए यहां आए थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा रायपुर में हुई और यहीं रह गए। 1920 में अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें ऑनरेरी मजिस्ट्रेट का महत्वपूर्ण पद दिया। उसी वर्ष महात्मा गांधी रायपुर आए। गांधी से मिलने के बाद सेठ डागा ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने की ठान ली। मजिस्ट्रेट का पद त्याग दिया। 1923 में उन्हें जेल में डाल दिया गया। जेल से छूटे तो फिर आंदोलनों में हिस्सा लिया। महात्मा गांधी के सानिध्य के प्रभाव से उन्होंने रायपुर में हरिजन छात्रावास की स्थापना की। उस समय बालिकाओं की शिक्षा नहीं के बराबर थी। अत: बालिकाओं की शिक्षा के ओर प्रेरित करने के लिए आरंग में अपनी पत्नी छोटीबाई डागा के नाम से शाला की स्थापना की। भारत छोड़ो आंदोलन जैसे कई आंदोलनों में हिस्सा लेने वाले सेठ शिवदास डागा का निधन 10 जून 1952 को हुआ।

महंत लक्ष्मी नारायण दास

रायपुर में शुरू किया गणेशोत्सव: महात्मा गांधी ने 11 मार्च 1930 को दांडी यात्रा की थी, तो पंडित रविशंकर शुक्ला के साथ नमक कानून तोडऩे में महंत लक्ष्मीनारायण दास की भी खास भूमिका थी। वे धार्मिक क्षेत्र में जितनी सक्रियता से भाग लेते थे उतनी ही सक्रियता स्वाधीनता आंदोलन में भी वे दिखाने लगे। महंत की अगुवाई में ही यहां 1932 में विदेशी वस्त्रों की होलियां जलाई गई थीं। जनजागरण के लिए तिलक ने सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत की, लेकिन जुलूस की परंपरा यहां 12 सितंबर 1935 को हुआ। रायपुर के उस पहले जुलूस की लंबाई थी डेढ़ किलोमीटर। इस जुलूस में महंत के साथ पं. शुक्ला, ठाकुर प्यारेलाल, खूबचंद बघेल आदि कई सेनानीं थे। सन् 1936 में गांधी चौक में कांग्रेस भवन बनाया गया। इस भवन को बनाने के लिए महंतजी के नेतृत्व में छेरछेरा मांग कर धन एकत्र किया गया था। धन एकत्रित करने वालों की सूची आज भी कांग्रेस भवन में लगी है।

पं. वामनराव बलीराम लाखे

सहकारी आंदोलन के अगुवा थे : 17 सितंबर 1872 को रायपुर में जन्मे वामनराव गरीब थे, किन्तु कठिन परिश्रमी थे। 1904 में कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद वकालत करने लगे। 1913 से उन्होंने सहकारिता के क्षेत्र को बढ़ावा देते हुए आजादी के आंदोलन को साथ देना शुरू किया। वे भी कई बार जेल गए। बताया जाता है कि 1915 के आसपास छत्तीसगढ़ मेंं राजनीतिक चेतना फैलाने में पं. लाखे का महत्वपूर्ण योगदान था। अपना सारा जीवन वे राष्ट्रीय आंदोलनों और सहकारी संगठनों में बिताया।1913 में उन्होंने रायपुर में सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक की स्थापना की, जबकि 1915 में बलौदाबाजार में किसान को-ऑपरेटिव राइस मिल की स्थापना की। अंग्रेजी शासन ने किसानों की सेवाओं के लिए 1916 में 'साहबÓ की उपाधि दी थी। 1920 में 'साहब' की पदवी त्याग करके असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। 21 अगस्त1948 को पं. वामनराव लाखे का निधन हुआ।