
Chhattisgarh में मिली प्राचीन शहर की संरचना व 2000 साल पुराने सिक्के, कुषाण सभ्यता से है नाता
रायपुर. देश को प्राचीन सभ्यता (ancient civilizations) और संस्कृति से रूबरू कराने संस्कृति और पुरातत्व विभाग (Archeology Department) द्वारा की जा रही खुदाई से जमराव गांव में विभिन्न रहस्यों से पर्दा उठते जा रहा है। अभी तक विभाग को यहां पर प्राचीन कालीन शहर का स्ट्रक्चर मिला है। खुदाई में मिलने वाले मिट्टी के बर्तन, माला व अन्य सामग्रियों के अवशेष इसे सातवाहन एवं कुषाण कालीन सभ्यता से जोडकऱ देखा जा रहा है।
स्थिति को जानने के लिए पत्रिका की टीम राजधानी से पाटन के गांव जमराव में पहुंची। जहां मजदूर विशेषज्ञों की टीम खुदाई कर रही थी। यह स्थान जहां खुदाई की जा रही है, खारून नदी के तट पर बसा है। जहां लगभग 5 से 6 फीट तक की खुदाई हो चुकी है। मौके से अभी तक मिट्टी के बर्तनों के अवशेष, धातुओं से निर्मित मालाओं के टुकड़े और सिक्कों जैसी कई सामग्रियां निकली हैं। विशेषज्ञ इसे प्रारंभ से द्वितीस ईशा के मध्य का बता रहे थे।
खारून नदी के तट पर इस तरह से बसाहट को देखते हुए इसे प्राचीन, व्यापारिक और सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने की बात कही जा रही है। हालांकि अभी विभाग द्वारा अधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि परीक्षण के बाद कहने की बात कही गई है।
छत्तीसगढ़ शासन के पुरातात्विक सलाहकार अरूण कुमार शर्मा ने बताया कि यह सभ्यता सातवाहन और कुषाण काल के सभ्यता की है। खुदाई में मिलने वाली वस्तुओं का परीक्षण किया जा रहा है। मिलने वाली वस्तुएं संभवत: 1500 से 2000 साल पुरानी प्रतीत हो रही है। खुदाई पूरी हो जाने के बाद कई रहस्यों से पर्दा उठेगा। जो समाज को एक नई सभ्यता से रूबरू कराएगा।
संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के संचालक अनिल कुमार साहू ने बताया कि जमराव में खुदाई चल रही है। जिसमें प्राचीन काल के शहर के स्ट्रक्चर को देखकर लग रहा है कि यह क्षेत्र व्यपारिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था। कुछ वस्तुएं अभी मिली है। जिसे वैज्ञानिक जांच एवं परीक्षण के लिए भेजा जाएगा। जिसके बाद ही इसकी स्थिति का पता चल पाएगा।
छत्तीसगढ़ से कुछ ही दूरी पर स्थित आरंग के पास रींवा में पुरातत्व विभाग ने खुदाई का काम शुरू किया है। सूत्रों की माने तो यहां खुदाई के दौरान मौर्य काल और सोमवंशी काल के अवशेष मिलने की संभावना है। यहां खुदाई के दौरान पुरातत्व विभाग को 1800 साल पुरानी ईंटें मिली हैं।
रींवा उत्खनन निदेशक पद्मश्री सम्मान प्राप्त डॉ अरूण कुमार शर्मा के निर्देशन में विभाग द्वारा इस स्थल का सर्वेक्षण किया गया है। यहां मौर्य काल में बसाहट आरंभ हो चुका था तथा सोमवंशी शासकों के काल में यहां विहार तथा मंदिरों का निर्माण कराया होगा। इस खुदाई में लोक पूजा के स्तूपों के मिलने की संभावनाएं भी जताई जा रही हैं।
मौर्य राजवंश प्राचीन भारत का एक शक्तिशाली एवं महान राजवंश क्षत्रिय वंश था। इसने 137 वर्ष में भारत में राज किया। इसकी स्थापना का श्रेय चंद्रगुप्त मौर्य को और उनके मंत्री कौटिल्य को दिया जाता है। जिन्होने नंद वंश के सम्राट को पराजित किया था। मौर्य सम्राज्य के विस्तार एवं उसके शक्तिशाली बनाने का श्रेय सम्राट अशोक को जाता है।
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Published on:
16 Jun 2019 07:30 am
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