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CG Success Story: तानों को बनाया ताकत! जूते-चप्पल सिलते की पढ़ाई, अब मेहर समाज के पहले असिस्टेंट प्रोफेसर बने पूर्णेन्द्र मिर्धा

Success Story: तुम चमड़े के जूते- सिलते हो, सफाई कामगार हो, अछूत हो, तुम पढ़- लिखकर क्या करोगे? इन्हीं तानों को सुनकर एकबारगी मुझे भी ऐसा लगा कि पढ़ाई का बस्ता को छोड़कर जूते- चप्पल सिलने के अपने पुश्तैनी काम में जुट जाऊं।

पूर्णेन्द्र कुमार मिर्धा (फोटो सोर्स- पत्रिका)
पूर्णेन्द्र कुमार मिर्धा (फोटो सोर्स- पत्रिका)

CG Success Story: तुम चमड़े के जूते- सिलते हो, सफाई कामगार हो, अछूत हो, तुम पढ़- लिखकर क्या करोगे? इन्हीं तानों को सुनकर एकबारगी मुझे भी ऐसा लगा कि पढ़ाई का बस्ता को छोड़कर जूते- चप्पल सिलने के अपने पुश्तैनी काम में जुट जाऊं। पर संत रविदास के उपदेशों को अपना आदर्श को मानकर मैंने शिक्षित होने का रास्ता पकड़ा। यह कहना था आरंग के रहने वाले पूर्णेन्द्र कुमार मिर्धा का। निम्न जाति, निर्धनता व असुविधा की सभी हदों को पारकर आखिरकार मैंने अपने उच्च शिक्षित होने के सपने को साकार किया।

पूर्णेन्द्र ने न सिर्फ अपने सपने को साकार किया, बल्कि अब वे शहीद महेंद्र कर्मा विश्वविद्यालय (बस्तर विवि) के पॉलिटिकल साइंस विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए चयनित हो गए हैं। अनुसूचित जाति के उम्मीदवार पूर्णेन्द्र ने बताया कि वे अपने रविदासिया मेहर समाज से प्रथम असिस्टेंट प्रोफेसर बने हैं। अब वे अपने समाज के युवाओं को शिक्षित कर उनके जीवन में उजियारा फैलाएंगे।

CG Success Story: दो बार नेट व सेट की परीक्षा उतीर्ण

रायपुर आकर दो- दो बार नेट व सेट की परीक्षा उतीर्ण की। इसके बाद एमफिल में दाखिला लिया। इस बीच आरंग में सामाजिक कार्य करने लगा। मोहल्ले में लाइब्रेरी खोलकर शिक्षा का प्रचार किया। इस दौरान बस्तर विश्वविद्यालय में रिक्त पदों की जानकारी मिली। मैंने अप्लाई किया। चयन समिति के सामने अपनी प्रस्तुति दी। आखिरकार पता चला है कि मेरा चयन असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए हुआ है। पूर्णेन्द्र ने बताया कि वे संत रविदास व स्वामी विवेकानंद के आदर्शों को मानते हैं।

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निर्धनता बनी रही शिक्षा में बाधक

आरंग में पूर्णेद्र का परिवारवाले चमड़े के जूते बनाने का काम करते हैं। कुछ सदस्य सफाई जैसे काम करते हैं। बचपन से ही मैंने भी सही सीखा। यहीं प्राथमिक, स्कूली व कालेज की शिक्षा हासिल की। जैसे तैसे रायपुर पहुंचे। यहां विवेकानंद आश्रम में रहकर एमए पास किया। इसके बाद रायगढ़ के एक निजी कालेज में शिक्षण किया। वेतन अत्यंत कम था, गुजारा नहीं हो रहा था।