
सक्ति देवी अउ जसगीत के परंपरा
मधु अउ कैटभ नांव के दूझन राक्छस ह ब्रम्हा ल मारे बर गिन त आदिसक्ति ह चमत्कार करिस अउ राक्छस मन के वध कर दीस। ऐकर बाद दुरगा के पूजा सुरू होइस। पूजा परंपरा ह आदिकाल से चलत आवत हे। बेद-पुरान म घलो देवी के स्तुति करत नइ थकय। कतकोन जगा तो नवरात के मायनेच होगे हे दुरगा पूजा करइ ह।
छत्तीसगढ़ के भक्ति कवि परंपरा म राजा अमरसिंह के नांव घलो गर्व से ले जाथे। ये पहिली कवि रिहिस, बाद म हैहयवंस के राज-परंपरा म सासक (राजा) बनिस। ऐकर गीत हे- ‘ तीन लोक कस्ट हरनी भवानी, तुम हो जगत्पति रानी हो माय, कनक-रथ पर विमल बिराजे, स्वेत धजा फहरानी हो माय।’
कहिथें के रायपुर के पुरानी बस्ती म राजा अमरसिंह के महामाया भक्ति ल देखके वोकर सुरता म महामाया मंदिर के इस्थापना करे गे हावय। लंगुरवा के माध्यम म अमरसिंह ल सक्तिदेवी मिलिस।
ऐकरे सेती महामाया मंदिर म ‘वीर लंगुरवा’ के मूरति हावय। कवि ह लंगुरवा के बारे म कहे हावय - ‘आसन मारि सिंहासन बैठे, सिर पर छत्र तनानी हो माय, सिंह चढ़े रन गरजे भवानी, वीर लंगुरवा अगुवानी हो माय।’
देवी गीत म अब आधुनिकता आवत हे
लोगनमन म देवता कस चरित अउ राक्छसमन ल मारे के छमता मां दुरगा से मिले हावय, तेकर सेती माता सक्ति देबी के उपासना करत रहव। राजा अमरसिंह कहिथे- ‘तब महिसासुर दानव मारे, तब हम जानी भवानी हो माय, राजा अमरसिंह अरज करत हे, परसन होहू भवानी हो माय।’ कवि ओंकारदत्त ह लिखे हावय - ‘धन भाग ओंकारदत्त के, प्रतिदिन जस गीत गावेंव।’ ‘जब सिरी सितला सुनतेंव, तुम्हरे आगमन हो माय, आपन अजिर लिपाय, सुगंधित गुगुर कपूर जलातेंव हो माय।’ कहुं-कहुं ऐला चारो जुग म देवी कहे गे हे। देवी के स्तुति म जउन गीत गाए जाथे वोमा आजकाल भले आधुनिकता समा गे हे, फेर जन-जन म सरधा अउ बिसवास आजो हावय।
Published on:
04 Oct 2021 04:34 pm
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