
GI Tag to Dubraj Rice : राजा दशरथ ने संतान प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ कराया था। इसमें खीर का भोग चढ़ा था। जिस चावल का इस्तेमाल कर इसे बनाया गया, वह धमतरी का दुबराज था। तीनों रानियों ने इसी खीर को खाकर राम-लक्ष्मण समेत चारों भाइयों को जन्म दिया था। धमतरी जिले का दुबराज अपने औषधीय गुणों और खुशबू के चलते दुनियाभर में मशहूर है। नगरी ब्लॉक में खेती होने से इसे पिछले साल नगरी दुबराज नाम से जीआई टैग मिला है।
नवंबर 2019 में नगरी की मां दुर्गा स्व सहायता समूह ने इंदिरा गांधी कृषि विवि की मदद से इसके लिए आवेदन किया था। इसमें सिहावा के श्रृंगी ऋषि आश्रम का एक पत्र भी लगाया गया था। इसमें जिक्र है कि श्रृंगी ऋषि के आश्रम में दुबराज चावल की खिचड़ी का प्रसाद चढ़ता था। आश्रम के मुख्य पुजारी ईश्वर दास वैष्णव बताते हैं, श्रृंगी ऋषि अपने साथ दुबराज चावल लेकर अयोध्या गए थे।
नगरी...
इसी चावल से खीर बनी, जिसे यज्ञ के दौरान चढ़ाया गया। यज्ञ से अग्निदेव प्रकट हुए और राजा दशरथ की तीनों रानियों को खीर खाने के लिए दिया। इसी के परिणामस्वरूप रानियां गर्भवती हुईं और भगवान राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न का जन्म हुआ।
कृषि विश्वविद्यालय ने जीई टैग दिलवाने में मदद की
रायपुर स्थित इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने नगरी के दुबराज को जीआई टैग दिलवाने में मदद की। जीआई रजिस्ट्री विभाग की ओर से जो भी सवाल पूछे गए, उसका जवाब कृषि वैज्ञानिक और पौध प्रजनन एवं अनुवांशिकी विभागाध्यक्ष डॉ. दीपक शर्मा ने दिया। आवेदन के साथ ही एक प्रमाण पत्र भी जमा किया गया है, जिसमें श्रृंगी ऋषि और दुबराज चावल का जिक्र है।
महेंद्र गिरि पर्वत के आसपास होती है खेती
श्री श्रृंगी ऋषि विकास समिति के अध्यक्ष शैलेंद्र धेनुसेवक बताते हैं, सिहावा में स्थित महेंद्रगिरि पर्वत में कई दुर्लभ औषधीय पौधे हैं। इन्हीं की तलाश में कई राज्यों के वैध यहां आते हैं। ईश्वर दास वैष्णव बताते हैं, क्षेत्र में ऐसी मान्यता है कि बारिश के दौरान महेंद्र गिरि पर्वत के औषधीय पौधे के तत्व पानी के साथ नीचे खेतों में आ जाते हैं। इससे क्षेत्र के आसपास के खेतों में जिस दुबराज चावल की खेती होती है, उसमें भी औषधीय गुण आ जाते हैं। ये बीमारियों को बचाने में सहायक हैं। मोहित करने वाली खुशबू इसकी विशेषता है।
श्रृंगी ऋषि को निमंत्रण देने आए थे राजा दशरथ
श्रृंगी ऋषि आश्रम के मुख्य पुजारी ईश्वर दास वैष्णव बताते हैं, वाल्मीकि रामायण में जिक्र मिलता है कि हिरण जैसे सींग होने के कारण श्रृंगी ऋषि का यह नाम पड़ा। उनके पिता मांडक ऋषि ने उन्हें दंडकारण्य में तप करने भेजा था। वे महेंद्रगिरि पर्वत जो वर्तमान में धमतरी जिले के नगरी ब्लॉक के सिहावा में है, वहां जनकल्याण के लिए जप-तप करने लगे।
उनकी पत्नी शांता थीं, जो राजा दशरथ की पुत्री थीं। पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ करवाने अयोध्या के राजा दशरथ महेंद्रगिरि पर्वत याचक बनकर आए। वशिष्ठ ऋषि ने उन्हें यहां भेजा था। उनके निमंत्रण पर श्रृंगी ऋषि अयोध्या जाने तैयार हो गए। ईश्वर दास बताते हैं कि यज्ञ के लिए श्रृंगी ऋषि अपने साथ दुबराज चावल ले गए थे।
Published on:
15 Jan 2024 12:28 pm
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