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गुलाब कोठारी: एक ही खेत में कभी अच्छी फसल तो कभी सूखा हो जाता है…

स्त्री देह से आगे विषय पर संवाद करते हुए राजस्थान पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने महिलाओं के अस्तित्व और दिव्यता पर व्यापक दृष्टिकोण डाला

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dr. Gulab Kothari

राजस्थान पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ( Photo - Patrika )

संबलपुर. मां का कोई दूसरा नाम हो नहीं सकता। मां की कोई उम्र नहीं होती। मां की कोई आकृति नहीं होती। मां एक भावना भी खाली नहीं है। उसके अलावा भी बहुत कुछ है मां। स्त्री देह से आगे विषय पर संवाद करते हुए राजस्थान पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने ये बातें कहीं। महिलाओं के अस्तित्व और दिव्यता पर उन्होंने व्यापक दृष्टिकोण रखा। संबलपुर का दुर्गा मंगलम हॉल इस कार्यक्रम का साक्षी बना। राजस्थान पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी की परिचर्चा स्त्री देह से आगे में शामिल होने बड़ी संख्या में महिलाएं आई थीं।

अलग-अलग समाजों और समूहों का प्रतिनिधित्व करने वाली इन महिलाओं ने ही कार्यक्रम का आयोजन किया था। गुलाब कोठारी ने पत्रिका समूूह के बारे में बताते हुए कहा कि जनहित के मुद्दों के लिए हम सरकार से भी लड़ जाते हैं। हम अपने पाठकों को भगवान मानतेे हैं। ब्रह्म मुहूर्त में अखबार पाठकों के घरों में जाता है, जैसे मंदिर में प्रवेश करता है। अखबार पूजा की थाली है। खबरों के माध्यम से लोगों के दिलों में प्रवेश करता है। शिक्षा और संस्कार पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि शिक्षा एकपक्षीय हो गई है। अभी शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ कमाई रह गया है, परिवार पालना हो गया है।

कैसे अच्छी कमाई करें, यह रह गया है। इससे देश-दुनिया को नुकसान हो रहा है। उसमें भी महिलाओं को सबसे ज्यादा नुकसान है। इस शिक्षा के बदले हम क्या खो रहे हैं, इसका मूल्यांकन नहीं हो रहा है। मोबाइल और इंटरनेट हमें अपनी संस्कृति से दूर ले जा रहा है। संस्कृति का मतलब हमारी आत्मा से है। शिक्षा शरीर को दी जा रही है। आज की पढ़ाई ने इतना भ्रमित कर दिया है कि हम अपनी शक्तियों से वंचित हो रहे हैं।

शरीर ही मेरी मां

स्त्री और पुरुष पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि शरीर ही हमारी मां है। मां का दूसरा कोई नाम नहीं हो सकता। मां एक भावना भी खाली नहीं है। उसके अलावा भी बहुत कुछ है मां का। पर यह जो शरीर है हमारा, यह हमारी मां है। उसको उसकी मां से मिला, उसको उसकी मां से मिला। हम जो भी देख सकते हैं और आगे भी जितनी संतानें होंगी, वह मां का ही शरीर होगा। यह शरीर मां से आपका होकर मिला है। मां के अलावा क्या है इस शरीर में? हर पुरुष में आधी नारी है और हर नारी में आधा पुरुष।

आज लड़कों के विकास में किसी तरह की मर्यादा नहीं होती। वह क्या करता है, कोई बात नहीं´। शरीर का आधा भाग स्वछंद होकर विकसित हो रहा है तो आधा अप्रशिक्षित रह जा रहा है। अपरिपक्व रह जाता है। लड़की को ईश्वर जब जन्म देता है, तो उसे मां के भाव देकर भेजता है। छोटे भाई-बहनों की देखभाल लड़की मां की तरह ही करती है। उसके लिए परिवार ही सब कुछ है। भगवान से भी वह अपने लिए कुछ नहीं मांगती। मां एक देवी की तरह त्रिकालदर्शी होती है। भगवान को भी भगवान मां ही बनाती है।

कन्यादान का महत्व

कन्या के पास पिता का बीज नहीं आता, इसलिए वह अकेली सृष्टि करता नहीं बन पाती। इसलिए उसको पुरुष के साथ जुडऩा पड़ता है। यह जुगल सृष्टि कहलाती है। कन्यादान में उसका जो हिस्सा है, स्त्री के शुक्रांश का ब्रह्मांड का जो हिस्सा है, वह पिता के पास रुका हुआ है। मंत्रों की सहायता से वह दूल्हे के हृदय में प्रतिष्ठित किया जाता है। दूल्हे की जो आत्मा है, दामाद की उस आत्मा के साथ वह अपने उस आत्मा के अंश को प्रतिष्ठित कर रहा है। अब वहां दोनों एक हो गए और हमको पता है कि जीवात्मा के साथ सात पीढिय़ों का रिश्ता जुड़ा रहता है।

सवालों के जवाब से मिला नया दृष्टिकोण

परिचर्चा के बाद सवाल-जवाब का सिलसिला शुरू हुआ। शारदा अग्रवाल ने जनहित और समाजहित पर प्रकाश डालने का आग्रह किया। इस पर प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने उदाहरण देते हुए बताया कि सरकार ने मीडिया पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की। जनता की आवाज को दबाने के लिए नया कानून लेकर आए। इस पर राजस्थान पत्रिका ने खबरों के माध्यम से आवाज उठाई। सुप्रीम कोर्ट तक गए। सरकार को कानून वापस लेना पड़ा। इसी तरह एक सवाल बच्चों को लेकर आया। एक मां के दो या तीन संतान होते हैं लेकिन सभी का स्वभाव अलग-अलग क्यों होता है।

इस पर गुलाब कोठारी ने बताया कि एक ही खेत में कभी अच्छी फसल होती है तो कभी सूखा पड़ता है। जब बच्चा तैयार हो रहा है उस वक्त आप किस परिस्थिति में चल रही थी। आपके चारों तरफ वातावरण कैसा था, उसके पास किस तरह की सूचनाएं पहुंच रही थी। जैसे आप सुनाते हो गर्भवती थी तो अनुजनों के पास सारी सूचना आई तो वह सब चीजें भी पेट में चली गई।

मां पेड़ की तरह है

मां भी एक बीज है। पिता के बीज को बड़ा करती है मां। शरीर ही पेड़ बन रहा है। इस शरीर में ही आम लगेगा नया। शरीर तो मां है, लेकिन इसके भीतर पिता भी चल रहे हैं और तब तक चलेंगे जब तक नया आम नहीं लग जाएगा। कोई भी बीज दुनिया का अपना फल नहीं खा सकता। ये मां का भी स्वभाव है। मां जमीन में गड़ा हुआ बीज है। खुद के लिए कभी नहीं जीती है। वो पेड़ बन गई। आम कौन खाता है? छाया कौन खाता है? उसमें घोंसले कौन बनाता है उसको कोई मतलब नहीं है। उसे किसी से कुछ नहीं चाहिए। उसका एक ही सपना है कि मैं पेड़ बनूं। मां के अलावा किसी को पता नहीं पड़ता कि आप कौन सा शरीर छोड़कर इस घर में लौटे हैं।