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#hallabol:आरटीआइ के तहत नहीं मिलती विकास कार्यों के तरीकों की जानकारी

ट्रांसपरेंसी मेंटेन के लिए सरकार को काम का तरीका भी बताना चाहिए

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ट्रांसपरेंसी मेंटेन के लिए सरकार को काम का तरीका भी बताना चाहिए

आरटीआइ के तहत नहीं मिलती विकास कार्यों के तरीकों की जानकारी

ट्रांसपरेंसी मेंटेन के लिए सरकार को काम का तरीका भी बताना चाहिए

रायपुर . ड गर्वनेंस, डिजिटल इंडिया और ट्रांसपरेंसी की बात करने वाली सरकारें अपने विकास कार्यों को चीख-चीखकर बताती हैं लेकिन उसी काम को करने का क्या तरीका है ये बताने से क्यों कतरा रही हैं। छत्तीसगढ़ के मंत्रियों के काम करने के तरीकों को गोपनीयता का हवाला देकर नहीं बताया जाता है। इसी टॉपिक पर पत्रिका के सोशल मीडिया पर हुए लाइव प्रोग्राम हल्लाबोल में आए पैनालिस्ट ने अपनी बात कही।
गोपनीयता का हवाला देकर नहीं बताया जाता
उच्चन्यायल में प्रैक्टिस कर रहे एडवोकेट अखंड प्रताप पाण्डेय ने कहा कि शपथ लेते वक्त मिनिस्टर गोपनीयता की शपथ लेते हैं। कई एेसे काम होते हैं जो कॉंफिडेंसियल होते हैं लेकिन काम हो जाने के बाद उस काम को कैसे किया गया ये तो बताया जा सकता है। लेकिन यहां काम तो दिखाते हैं लेकिन उस काम को करने का क्या तरीका था ये नही बताते। एेसे ही किसी कार्य सम्मन होने के बाद मैंने जब सूचना के अधिकार के तहत जानकारी लेनी चाही लेकिन गोपनीयता का हवाला देते हुए मुझे उसके बारे में नहीं बताया गया। ये तो मेरे अभिव्यक्ति की आजादी का हनन है और इसलिए मैंने इसी मैटर पर पीआइएल लगाई है।

सरकार चाहे तो महिला को पुरुष घोषित कर सकती है
मैटस यूनिवर्सिटी में कानून एचओडी अनिन्य तिवारी ने कहा कि गवरमेंट ये नहीं बोल सकती की हम जानकारी नहीं देंगे। ये अभिव्यक्ति की आजादी का हनन है। प्रजातंत्र में राजतंत्र भी होता है जहां कुछ विषयों को रखा जाता है। लेकिन उनके बारे में भी सरकारों को दूसरे तरीकों से जनता को बताना चाहिए। गवर्नेंस में ट्रांसपरेंसी होगी तो जनता का विश्वास बना रहेगा। बेशक सरकारें अपने-आप में बहुत पॉवरफुल होती हैं। वो चाहे तो पुरुष को महिला और महिला को पुरुष घोषित कर सकती हैं। लेकिन आरटीआइ के तहत घोषित करने की प्रक्रिया क्या थी ये बताना ही होगा। अपने हर कार्य को ब्योरा देना ही होता है ये अनिवार्य है।

...तो ट्रीटमेंट जरूरी होता है
लॉ स्टूडेंट दिव्यपाल लोधी ने कहा कि जब देश के बाकी राज्यों में आरटीआइ के तहत मंत्रियों के काम की जानकारी उपलब्ध कराने का नियम है तो छत्तीसगढ़ में क्यों नहीं। किसी भी कार्य को करने के लिए तीन सिस्टम बनाए गए हैं विधायिका, कार्यपलिका और न्यायपालिका। अगर किसी भी आर्गन को फंग्शनिंग में प्रॉबलम होती है तो उसके ठीक होने के लिए ट्रीटमेंट करवाना अनिवार्य होता है। सरकार जानकारी देने में आना-कानी करेगी तो कानून के पास जाना ही पड़ेगा।

सहूलियत के हिसाब से नियम बना रखे हैं : कानून के छात्र ऋषभ शर्मा ने कहा कि करप्शन करने के ये तरीके हैं जो सरकारों ने अपनी सहूलियत के हिसाब से बना रखे हैं। मेरा ये मानना है कि करप्शन और कमीशन एक-दूसरे के पूरक होते हैं और करप्शन को छुपाने के लिए सूचना के अधिकार के तहर जानकारी नहीं दी जा रही है।
ट्रांसपरेंसी रखना अनिवार्य है : लॉ स्टूडेंट ए साइ श्रीनिवास ने कहा कि ये सरकार पर एक क्वेश्चन मार्क है कि अठारह वर्षों के बाद भी आम जनता को अपने काम करने का तरीका बता पाने में असमर्थ है। एेसे में विकास कार्य चाहे कितने भी किए गए हों लेकिन प्रश्न ये उठता है कि कही ये सभी काम पूर्व में आए मामले २जी, बोफोर्स, अगस्ता, जैसे तो नही निकलेंगे। इस लिए ट्रांसपरेंसी रखना अनिवार्य है।