
जानिये कौन थे जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी और उनसे जुड़ी रोचक बातें
महावीर स्वामी को वर्धमान भी कहते है।वह जैन धर्म के 24वे और अंतिम तीर्थंकर थे। जैन धर्म में तीर्थंकर एक सर्वज्ञानी गुरु होता है जो धर्म का पाठ पढाता है तथा पुनर्जन्म और स्थानांतरगमन के बीच पुल का निर्माण करता है। ब्रह्मांडीय समय चक्र के हर अर्ध भाग में 24 तीर्थंकर हुए। महावीर स्वामी अवसरपाणी के अंतिम तीर्थंकर थे।
कौन थे स्वामी महावीर स्वामी
महावीर का जन्म शाही परिवार में हुआ और बाद में घर छोडकर आध्यात्म की खोज में घर छोडकर चले गये और साधू बन गये।12 साल की कठोर तपस्या के बाद महावीर स्वामी सर्वज्ञानी बने और 72 वर्ष की उम्र में मोक्ष को प्राप्त हो गये। उन्होंने जैन धर्म के सिद्धांतो को पुरे भारत में फैलाया।
भारतीय पंचांग की मानें तो चैत्र मास के शुक्लपक्ष की त्रयोदशी तिथि को भगवान महावीर ने जन्म लिया था।भगवान महावीर की मां का नाम त्रिशला देवी और पिता सिद्धार्थ थे। वह ज्ञातृ वंशीय क्षत्रिए थे। उनका गोत्र काश्यप था। सिंह राशि में जन्में महवीर का वर्ण सुवर्ण था।
जैन धर्म को 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी कार्तिक अमावस्या को दीपावली के दिन बिहारशरीफ़ से 8 किमी दक्षिण-पूर्व पावापुरी निर्वाण( मृत्यु) प्राप्त किया था।।भगवान महावीर का बचपन का नाम 'वर्धमान' था।
पिता ने दिया था वर्धमान नाम
जन्मोत्सव के बाद ज्योतिषों द्वारा चक्रवर्ती राजा बनने की घोषणा करने के बाद उनके कई किस्से इस बात को सच साबित करते पाए गए। उनके जन्म से पूर्व ही कुंडलपुर के वैभव और संपन्नता की ख्याति दिन दूनी और रात चौगुनी बढ़ती गई।
अत: महाराजा सिद्धार्थ ने उनका जन्म नाम 'वर्द्धमान' रख दिया। चौबीसों घंटे लगने वाली दर्शनार्थियों की भीड़ ने राजपाट की सारी मयार्दाएं ढहा दीं। इस प्रकार वर्द्धमान ने लोगों में यह संदेश प्रेरित किया कि उनके घर के द्वार सभी के लिए हमेशा खुले रहेंगे। वर्द्धमान ने यह सिद्ध कर दिखाया।
Updated on:
17 Apr 2019 01:09 pm
Published on:
17 Apr 2019 01:08 pm
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