
Residential colony in Raipur:बुलडोजर चला तो मिलीभगत पर से पर्दा हटा
सरकारी पदों पर बैठे अधिकारी-कर्मचारियों से उनकी गहरी पैठ थी। यही वजह है कि कई शिकायतें होने और खबरें छपने के बाद भी समय रहते कार्रवाई नहीं की गई। जमीन पर 40 मकानों को तोड़ा गया है। ऐसे लोग अब भटक रहे हैं। उनकी जमा पूंजी भी चली गई।
दलालों के गैंग में शामिल एक व्यक्ति ने बताया कि सरकारी और आबादी रकबे की जमीन बेचने से जो पैसा मिलता था, वह बंटता था। चूंकि कौशल्या विहार के डेवलपमेंट की वजह से चारों तरफ चौड़ी सडक़ें बन चुकी थी, इसलिए जमीन के रेट भी बढ़ गए थे, लेकिन जमीन सरकारी रकबे में दर्ज थी, इसलिए दलालों की गैंग लोगों को हजार 1200 वर्गफीट का भूखंड 5 से 6 लाख रुपए में बेचने में दो से तीन सालों से सक्रिय थे।
लिखित शिकायतें तत्कालीन जोन कमिश्नर कमिश्नर दिनेश कोसरिया और कार्यपालन अभियंता शिब्बू पटेल से की गई थी। कई बार आरडीए और राजस्व अधिकारियों से भी शिकायतें की गई, लेकिन समय रहते कोई कार्रवाई नहीं की गई। इस वजह से जमीन बेचने और मकान बनाने वालों के हौंसले बुलंद थे। क्योंकि ऊपर से नीचे तक पूरा कारोबार मिलीभगत से चला है। सवाल उठ रहे हैं कि ऐसे लोगों की जांच प्रशासन कराएगा या नहीं, क्योंकि 25 एकड़ जमीन को टुकड़े-टुकड़े में बेचने और मकान बनाने का काम रातों रात नहीं हुआ है। शिकायतों के बावजूद समय रहते कार्रवाई क्यों नहीं की? इस पूरे मामले में कितनी वसूली हुई है। जबकि सरकारी जमीन बेचने और निर्माण कराने के खेल की शिकायतें चर्चित स्वागत विहार के संचालक मंडल ने भी निगम मुख्यालय के नगर निवेशक विभाग के अधिकारियों से की थी।
दरअसल, जिस जगह को बेचने और उस पर मकान बनवाने का खेल जारी था, वह जगह आरडीए के सेक्टर-11ए और चर्चित स्वागत विहार से लगी हुई है। यह क्षेत्र नगर निगम के जोन 10 में आता है। जहां तेजी से चल रहे निर्माण की शिकायतें फोटोग्राफ समेत जोन के कार्यपालन अभियंता से भी की गई थी। इस पर उन्होंने जोन के अमले को मौके पर भेजा भी, परंतु रोक नहीं लगाई। वह अमला लौट गया। इस पूरे मामले की खबर पत्रिका में प्रमुखता से प्रकाशित की गई। तब जिम्मेदारों का तर्क था कि जिस जगह को बेचने और मकानों का निर्माण चल रहा है, वह जमीन कौशल्या माता विहार के प्लान से अलग है।
सेक्टर11ए से लगी हुई भाटापारा बस्ती है, जो आरडीए के लेआउट से अलग रखी गई थी। इसी बस्ती के करीब 25-26 एकड़ जमीन खाली पड़ी हुई थी। जिसे टुकड़ों में 3 लाख से लेकर 6 लाख रुपए में दलालों ने बेचा और आबादी जमीन का रिकॉर्ड दिखाकर लोगों से मकान बनवाते रहे। वे लोगों को भरोसा देते थे कि कभी तोडफ़ोड़ नहीं होगी। इस तरीके से कम से कम 50 से 60 लाख का हिसाब- किताब बराबर किया। पत्रिका पड़ताल में नाम भी सामने आया कि वह व्यक्ति बिक्रीनामा करता था और उसके साथी लंबे समय से बेचने में सक्रिय थे। इस पूरे मामले में कुछ दलालों के नाम भी सामने आ रहे हैं। जिनके खिलाफ जोन 10 और आरडीए के अधिकारी एफआईआर कराने जैसी कार्रवाई से पीछे हट रहे हैं।
शिकायतें मिलने पर नगर निवेशक विभाग की टीम भेजकर रिपोर्ट मांगी गई थी। उस दौरान 15 से 20 मकान बने थे। तोडफ़ोड़ की कार्रवाई जिला प्रशासन के सख्ती निर्देश पर की गई है।
Published on:
19 May 2025 06:43 pm
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