World Soil Day: प्रदेश के अलावा दूसरे राज्यों के किसान भी मृदा परीक्षण किट से जांच रहे अपनी जमीन की सेहत- कृषि विवि ने 4 निजी कंपनियों को तकनीक बेची, किट मिलना अब होगा और आसान
World Soil Day: रायपुर। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का प्रयोग प्रदेश के अलावा दूसरे राज्यों के किसानों के लिए भी फायदेमंद हो रहा है। विवि के वैज्ञानिकों द्वारा बनाई गई मिट्टी परीक्षण किट को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल रही है। विवि की किट प्रदेश के अलावा अन्य राज्यों के किसानों को मिले, इसलिए विवि प्रबंधन ने 4 निजी कंपनी को अपनी तकनीक बेची है। तकनीक बेचने के पीछे विवि प्रबंधन का मानना है कि वे डिमांड के अनुसार किट नहीं बना पा रहे थे। कंपनी तकनीक के आधार पर किट बनाएगी, तो आसानी से डिमांड के अनुसार वो किसानों को मिल सकेगी। वर्तमान में कृषि विवि में तैयार किया गया मृदा किट मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के किसान इस्तेमाल कर अपनी जमीन की सेहत सुधार रहे हैं।
प्रबंधन ने तय किया था 1600 रुपए शुल्क
विवि प्रबंधन के अनुसार वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई मिट्टी जांचने वाले किट किसानों को 1600 रुपए में दी जा रही थी। किट के साथ मिट्टी जांचने वाला केमिकल दिया जा रहा था। किट किसान जब खरीदता था, तो उसे मिट्टी जांचने का प्रशिक्षण कृ़षि वैज्ञानिकों द्वारा दिया जाता है और मैन्यूअल बुक दी जाती है, ताकि आवश्यकता पड़ने पर उससे देखकर सीख सके। इस किट का फायदा, किसानों को यह मिलता है कि वो बिना किसी लैब पहुंचे, खुद के खेत पर खड़े होकर अपनी खेत की मिट्टी की गुणवत्ता देख सकते हैं। रिपोर्ट के आधार पर खाद-यूरिया का इस्तेमाल करके किसान अपनी खेतों की मिट्टी की क्षमता को उत्कृष्ठ कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।
दो साल में तैयार किया था किट
विवि प्रबंधन के अनुसार पूर्व कुलपति और मृदा वैज्ञानिक डॉ. एसके. पाटिल के नेतृत्व में इस किट को विकसित किया गया है। डॉ. एलके. श्रीवास्तव, डॉ. वीएन. मिश्रा और डॉ. आरओ दास ने कई दिनों तक इस पर रिसर्च किया। एक्सपर्ट ने बताया कि इसे तैयार करने में करीब डेढ़ से दो साल का समय लगा। इसके बाद पेटेंट और स्टडी की प्रक्रिया में चार साल लग गए। तकनीक के मामले में कृषि विवि का यह पहला पेटेंट है। अफसरों का कहना है कि मिट्टी से संबंधित बेसिक जानकारी के लिए प्रयोगशाला पर निर्भरता कम होगी।
अब तक 10 हजार से ज्यादा किसान ले चुके फायदा
विवि के वैज्ञानिकों के अनुसार अब तक किट को प्रदेश और दूसरे राज्यों के 10 हजार से ज्यादा किसान खरीद चुके हैं। मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री को सेमिनार में किट के बारे में जानकारी दी गई, जिसके बाद उन्होंने मध्य प्रंदेश में संचालित कृषि विश्वविद्यालयों के प्रबंधन से इस किट का निर्माण कराया। निजी कंपनी को तकनीक बेचने के बाद विवि प्रबंधन ने किट का निर्माण बंद कर दिया है। निर्माण बंद करने के बाद भी प्रदेश और दूसरे राज्यों के किसान कृषि विवि में संपर्क करके किट और उससे जुड़े केमिकल की जानकारी ले रहे हैं।
तत्कालीन कुलपति के नेतृत्व में इस किट का निर्माण किया गया था। किट पेटेंट 2016 में मिला था और उसके बाद हमने उत्पादन शुरू कर सप्लाई देना शुरू किया था। छत्तीसगढ़ के अलावा मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के किसान किट का इस्तेमाल कर रहे हैं। हमने किट का प्रोडक्शन बंद कर दिया, फिर भी कई किसान संपर्क में हैं।
- डॉ. एलके श्रीवास्तव, वैज्ञानिक, इंदिरा गांधी कृषि विवि