
#Patrika Campaign गोवंश बाधित कर रहा यातायात, बच्चों- वृद्धजनों का गुजरना ही मुश्किल
लक्ष्मणसिंह राठौड़ @ राजसमंद
शहर के गली, मोहल्ले से लेकर मुख्य सड़क तक चौतरफा मंडराता गोवंश। आजकल इधर से उधर भटकते इन गोवंश को आवारा कहा जाने लगा है। आवारा वह होता है, जिसका खुद का घर हो, फिर भी बाहर घूमता है। गाय को मां का दर्जा देने वाला समाज ही आज आवारा कहकर गोवंश से मुंह मोड़ रहा, जो चिंताजनक है। संस्कृति की दुहाई देते कुछ लोग इस मूक जीव से प्रेम करते हैं और उसकी रक्षा को वो अपना धर्म समझते हैं, मगर आज ऐसे लोग कम हंै। तभी तो कल की गोमाता आवारा मवेशी हो गई। सवाल यह भी उठता है कि आखिर आवारा कौन है, गाय या वह पशुपालक जिसने उसे सड़क पर छोड़ दिया अथवा वह जो गाय को भटकते देखकर भी अनदेखा कर रहा है? शर्म की बात ये है कि फेसबुक, ट्विटर पर संस्कृति की बात करने वाले अक्सर इस बेहद महत्वपूर्ण मुद्दे पर चुप्पी साधे दिखते हैं, वरना क्या ये हो सकता है कि इस जीव की व्यथा कोई ना देख या सुन सके ? गाय को मां का मान मत दो, कोई दिक्कतनहीं, लेकिन उस पर आवारा का घृणित आरोप जड़कर मखौल तो ना उड़ाया जाए। परिवार के सुख समृद्धि की प्रतीक रही गाय आज कूड़े के ढेर में कचरा और प्लास्टिक की थैलियां खाते हुए सड़कों पर भटक रही है, जिससे न सिर्फ शहर की यातायात व्यवस्था प्रभावित हो रही है बल्कि, वृद्धजन- बच्चों का अकेले गुजरना ही मुश्किल हो गया है। (Patrika Campaign - Come together to Rajsamand city development)
सड़क पर मवेशी, हर पल हादसे का खतरा
नकारात्मक पहलू : फाइलों में दब गई गोशाला योजना
राजसमंद. शहर में सड़क पर विचरण करने वाले मवेशियों की तादाद दिनोंदिन बढ़ती जा रही है, मगर नगरपरिषद से लेकर प्रशासन तक कोई गंभीर नहीं है। इस कारण फोरलेन से लेकर शहरी सड़कों पर भी वाहन चालकों का चलना बड़ा जोखिमभरा हो गया है। राजनगर में सेवाली से लेकर रामेश्वर महादेव, सेठ रंगलाल कॉलेज, पुलिस लाइन, चुंगीनाका, आरके अस्पताल, सोमनाथ चौराहा, जेके सर्कल, गोमाता सर्कल तक चौतरफा मवेशियों का जमावड़ा हर वक्त लगा रहता है। यही स्थिति कांकरोली थाने से लेकर विवेकानंद चौराहा, मुखर्जी चौराहा, जेके मोड़ से लेकर व्यस्ततम बाजार चौपाटी, नया बाजार, पुरानी सब्जी मंडी, पुराना बस स्टैंड, पालीवाल मार्केट, भगवानदास मार्केट, जलचक्की तक है। इन क्षेत्रोंमें बहुत ज्यादा गोवंश इधर से उधर भटकता रहता है, जिसकी वजह से खासतौर पर वाहन चालकों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। आए दिन हादसे होने के बावजूद पुलिस, परिवहन, प्रशासन द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा, जिसका खमियाजा वाहन चालकों को हादसे के रूप में भुगतना पड़ रहा है।
पशुपालक बेपरवाह
शहर के पशुपालक ही गोवंश को घर के खुंटे से छोड़ देते हैं। इसी वजह से मवेशी सड़कों से लेकर फोरलेन पर बेतरतीब विचरण करते रहते हैं। कई बार बीच सड़क में ही मवेशी समूह के रूप में बैठ जाते हैं और हादसे का कारण बनते हैं।
काइन हाउस है और न ही गोशाला खोली
राजसमंद शहर में बेतरतीब घूमते मवेशियों के लिए नगरपरिषद के पास काइन हाउस ही नहीं है। निकाय की सख्ती के अभाव में पशुपालक भी गंभीर नहीं है। साल- दो साल में एक दो कार्रवाई के अलावा कभी स्थायी समाधान के प्रयास नहीं किए गए। अब प्रत्येक मवेशी की टैगिंग करके उन्हें सूचीबद्ध करने की उपखंड अधिकारी सुशील कुमार की पहल अच्छी है, मगर यह योजना साकार हो, तभी इसके सार्थक परिणाम आ पाएंगे। प्रारंभिक तौर पर सभी मवेशियों के सिंग व गले में रेडियम लगाए गए, मगर ज्यादातर मवेशियों के रेडियम हट गए हैं। अब अंतिम व सफल कार्रवाई यही होगी कि इन सभी मवेशियों को पकड़कर काइन हाउस में बंद रखें और फिर जुर्माना वसूलकर उन्हें छोड़ा जाए। एसडीएम की सख्ती के बावजूद नगरपरिषद उदासीन है।
असहाय गाय की सेवा के लिए हर वक्त तैयार, एम्बुलेंस का भी प्रबंध
अच्छा पहलू : गोसवा का अनूठा जज्बा
राजसमंद. घटना, दुर्घटना में घायल गाय को तत्काल रेस्क्यू कर अस्पताल पहुंचाने, उसके उपचार के बाद नियमित सेवा को लेकर भी कई युवा तैयार हंै। गोसेवा का दंभ भरने वाले संगठनों के प्रतिनिधि भले ही निष्क्रीय हो गए, मगर कुछ युवा नि:स्वार्थ भाव से गायों की सेवा में जुटे हुए हैं। राजसमंद शहर के साथ जिले में कहीं भी गाय बीमार, नि:शक्त है, तो तत्काल उसे ले जाने के लिए एम्बुलेंस पहुंच जाती है। शहर के आसोटिया में श्री द्वाराकाधीश मंदिर की श्री द्वारकेश गोशाला है, जहां सीमित क्षमता होते हुए भी नगरपरिषद, पशुपालन विभाग, प्रशासन या स्वंसेवकों द्वारा ले जाई जाने वाले गोवंश को भी आसानी से प्रवेश दिला देते हैं। शहर में सोनू पालीवाल, हितेष पुरोहित, दीपक छीपा, देवीलाल कुमावत, तिजेंद्र शर्मा के साथ एक दर्जन से ज्यादा युवाओं की टोली है, जो गोसेवा के लिए हर वक्त तैयार रहती है। असहाय, बीमार या हादसे में घायल गाय दिखे, तो कोई भी व्यक्ति मोबाइल 97727-11909 पर कॉल कर सकते हैं। इसी तरह अपंग या किसी अन्य बीमारी से ग्रसित गाय को रखने के लिए सियाणा में कामधेनु गोशाला में खास प्रबंध है, जहां धर्मेन्द्र गुर्जर के साथ कई समाजजन गोसेवा में जुटे हुए हैं।
गायों के लिए विशेष एम्बुलेंस की व्यवस्था
सियाणा गोशाला द्वारा जिले में कहीं भी नि:शक्त, बीमार या अंगभंग वाली गाय के इलाज व सेवा के लिए तत्काल गोशाला ले जाने के लिए एम्बुलेंस की व्यवस्था है। इस तरह कहीं भी किसी को ऐसी गाय दिखाई दे, तो तत्काल हेल्पलाइन 99832-02766 पर कॉल कर सकते हैं। तत्काल सियाणा से एम्बुलेंस मौके पर पहुंच जाएगी और उस गाय को गोशाला ले जाया जाएगा, जहां उसके उपचार के साथ रहने, खाने-पीने का सारा प्रबंध है। गोशाला में करीब पांच सौ से ज्यादा गायों की सेवा की जा रही है।
वाकिफ सब है, मगर समाधान कोई नहीं करता
शहर की स्थिति दिन प्रतिदिन बड़ी दयनीय होती जा रही है। गोपालक जब तक गाय दूध देती है, तब तक अपने पास रखते हैं। फिर उसे भूखे मरने के लिए लावारिस छोड़ देते हैं। यही हालात बछड़ों की है। पहले बैल के रूप में खेती और अन्य कार्यों में काम आते थे, अब अनुपयोगी होने से इन्हें भटकने के लिये छोड़ दिया जाता है। पूरे शहर में गोवंश इधर-उधर भटकने को मजबूर हैं। इनके कारण शहर की यातायात व्यवस्था भी चरमरा गई है। आए दिन दुर्घटनाएं होती रहती है और कई लोग गंभीर घायल हो रहे हैं, तो कुछ असमय ही काल के ग्रास बन गए हैं। गोवंश भी घायल हो रहे हैं, पर उनकी परवाह कौन करे? अक्सर यातायात पुलिसकर्मी इन्हें खदेड़ते नजर आते हैं। उपखण्ड अधिकारी सुशील कुमार ने ऐसे मवेशियों को काइन हाउस व गोशालाओं में पहुंचाने की पहल की थी, पर वह योजना भी अब तक साकार रूप नहीं ले पाई। इस ओर न प्रशासन गंभीर है और न ही गोपालक व आम नागरिक।
नीलेश पालीवाल, अधिवक्ता व शहरवासी राजसमंद
वाकिफ सब है, मगर समाधान कोई नहीं करता
गाय के शरीर में 33 करोड़ देवी- देवताओंं के निवास की मान्यता है। ऐसे में गोमाता की सेवा से सभी देवता प्रसन्न रहते हैं। गोसेवा करने से घर में रोग, दोष, व्याधि पीड़ा आदि का निवारण होता है। प्रत्येक मनुष्य को नियमित रूप सेे गोसेवा करनी चाहिए।
मंगलमुखी आमेटा, महंत एवं संरक्षक मारुतिनंदन दत्तात्रेय संस्थान राजसमंद
प्रशासन को ही करना होगा स्थायी समाधान
गोशाला का मुख्य ध्येय ही गोसेवा है, मगर उनकी भी अपनी अपनी क्षमता है। उससे ज्यादा गोवंश का पालन न तो उनके बस में है और न ही आर्थिक रूप से सक्षम। इसलिए नगरपरिषद को ही स्थायी गोशाला खोलनी चाहिए, ताकि शहर में विचरण करने वाले मवेशियों से स्वत: ही राहत मिल जाए। वैसे 80 फीसदी मवेशी पालतू ही है।
जगदीशचंद्र लड्ढा, जिलाध्यक्ष गोशाला समिति
Published on:
09 Dec 2019 12:07 pm
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