
आयुक्त बृजेश रॉय के मुंह पर स्याही पोतता भाजपा आईटी सैल के जिला संयोजक भरत दवे
राजसमंद. राणा राजसिंह मार्ग का नाम बदलकर आचार्य महाश्रमण अहिंसा मार्ग किए जाने को लेकर चला आ रहा विवाद शुक्रवार शाम अचानक उस वक्त उग्र हो गया, जब नगर परिषद आयुक्त बृजेश रॉय पर स्याही फेंक दी गई। इस घटना ने न सिर्फ प्रशासनिक हलकों में हलचल मचा दी, बल्कि इसका असर अगले दिन कांकरोली थाने, शहर की सड़कों, नगर परिषद कर्मचारियों के आंदोलन और राजनीतिक मंचों तक साफ दिखाई दिया। पूरा राजसमंद दो दिनों तक इसी घटनाक्रम के इर्द-गिर्द घूमता रहा।
शुक्रवार शाम करीब साढ़े चार बजे नगर परिषद सभापति अशोक टाक और आयुक्त बृजेश रॉय बालकृष्ण स्टेडियम में चल रहे निर्माण कार्य का निरीक्षण करने पहुंचे थे। इसी दौरान तीन-चार युवक मौके पर पहुंचे। इनमें भरत दवे, जो सांसद महिमा कुमारी मेवाड़ के मीडिया सेल और भाजपा आईटी सेल का जिला संयोजक बताया गया है, ने आयुक्त के वाहन से उतरते ही राणा राजसिंह मार्ग का नाम बदलने का विरोध किया। इसी बीच पीछे से आए एक अन्य युवक ने आयुक्त बृजेश रॉय पर स्याही की बोतल फेंक दी। मौके का फायदा उठाते हुए भरत दवे ने भी आयुक्त के चेहरे पर स्याही पोत दी। अचानक हुए इस घटनाक्रम से माहौल तनावपूर्ण हो गया। स्याही फेंकने वाला युवक मौके से फरार हो गया, जबकि भरत दवे को वहां मौजूद लोगों ने पकड़ लिया। इस दौरान उसके साथ मारपीट भी हुई और कपड़ेफाड़ दिए गए। घटनाक्रम में सभापति अशोक टाक पर भी स्याही के छींटे पड़ गए। सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और हालात संभाले। भरत दवे को हिरासत में लेकर कांकरोली थाने ले जाया गया।
घटना के दौरान भरत दवे ने सभापति अशोक टाक से कहा कि मार्ग का नाम बदलने से पहले आयुक्त को जानकारी दी गई थी, इसके बावजूद जानबूझकर नाम बदला गया, जो उसके अनुसार गैर-संवैधानिक है। सभापति टाक ने जवाब में कहा कि पूरी प्रक्रिया नियमों के तहत अपनाई गई है। दोनों के बीच हुई इस बहस ने मौके पर मौजूद लोगों का गुस्सा और भड़का दिया।
आयुक्त पर स्याही फेंके जाने की घटना से नगर परिषद के अधिकारी-कर्मचारी आक्रोशित हो गए। शुक्रवार देर शाम और शनिवार को कर्मचारियों ने विरोधस्वरूप शहर की मुख्य सड़कों की रोड लाइटें बंद कर दीं। इससे राजसमंद के कई प्रमुख मार्ग अंधेरे में डूब गए। शनिवार को ऑटो टिपर नहीं चले और कचरा संग्रहण प्रभावित रहा, जिससे आमजन को परेशानी का सामना करना पड़ा। कर्मचारी नारेबाजी करते हुए रैली के रूप में कांकरोली थाने पहुंचे और आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की।
शनिवार को कांकरोली थाना पूरे दिन गहमागहमी और तनाव का केंद्र बना रहा। सुबह से ही भरत दवे के समर्थक थाने पहुंचने लगे। जब उन्हें यह जानकारी मिली कि शिकायत देने के बावजूद मामला दर्ज नहीं किया गया है, तो आक्रोश और बढ़ गया। समर्थकों ने थानाधिकारी से तीखी बहस करते हुए सवाल उठाए और पुलिस पर कथित राजनीतिक दबाव में कार्रवाई नहीं करने के आरोप लगाए। स्थिति बिगड़ने की आशंका को देखते हुए पहले पुलिस उपाधीक्षक नेत्रपाल सिंह थाने पहुंचे। बाद में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक महेंद्र पारीक भी मौके पर आए। अतिरिक्त जाब्ता तैनात किया गया और प्रतिनिधिमंडल से बातचीत की गई। आश्वासन के बाद दोपहर करीब ढाई बजे भरत दवे को पुलिस सुरक्षा के बीच एसडीएम के समक्ष पेश किया गया, जहां से उसे एक लाख रुपये के जमानती मुचलके पर रिहा कर दिया गया।
इस पूरे घटनाक्रम के बीच राजनीति भी खुलकर सामने आ गई। शनिवार को जिला व नगर कांग्रेस कमेटी ने स्याही कांड के विरोध में प्रदर्शन किया। कांग्रेस नेताओं ने आरोप लगाया कि सभापति, आयुक्त और परिषद कर्मचारियों पर हमला किया गया, गाली-गलौज और मारपीट की गई। आरोपियों पर जातिसूचक गालियां देने का भी आरोप लगाया गया।
कांग्रेस ने जिला कलक्टर और पुलिस अधीक्षक को ज्ञापन सौंपते हुए आरोपियों की शीघ्र गिरफ्तारी और कठोर कार्रवाई की मांग की। चेतावनी दी गई कि कार्रवाई नहीं हुई तो आंदोलन और तेज किया जाएगा।
इधर नगर परिषद के अधिकारी और कर्मचारी भी अलग-अलग संगठनों के बैनर तले कलक्ट्रेट पहुंचे। अखिल राजस्थान सफाई मजदूर कांग्रेस और राजस्थान नगर पालिका कर्मचारी फेडरेशन के नेतृत्व में कर्मचारियों ने कलक्टर और एसपी को ज्ञापन सौंपकर आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की।
पूरा विवाद 30 नवंबर को शुरू हुआ, जब प्रज्ञा विहार की ओर जाने वाले मार्ग का नाम आचार्य महाश्रमण अहिंसा मार्ग रखा गया। इस शिलालेख का लोकार्पण आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में विधायक दीप्ति माहेश्वरी द्वारा किया गया। इसी स्थान पर पहले से राणा राजसिंह के नाम की पट्टिका लगी हुई थी, जिसे हटाकर नया नामकरण किया गया। इस पर आपत्ति जताते हुए कुछ संगठनों और जनप्रतिनिधियों ने विरोध शुरू कर दिया। पहले भी नगर परिषद में तालाबंदी हुई और सभापति अशोक टाक का घेराव किया गया। मामला बढ़ने पर जिला कलक्टर अरुण हसीजा ने आयुक्त से तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी।
आयुक्त की रिपोर्ट के बाद कलक्टर ने सर्वसमाज के प्रतिनिधियों से वार्ता की। प्रतिनिधियों ने बताया कि इस सड़क का नामकरण करीब 20 वर्ष पहले, 10 अक्टूबर 2005 को राजसमंद शहर के संस्थापक महाराणा राजसिंह के नाम पर किया जा चुका था। 30 नवंबर 2025 को जब उसी सड़क का पुनः नामकरण किया गया, तो मेवाड़ राजपरिवार, सांसद महिमा कुमारी मेवाड़ और नाथद्वारा विधायक विश्वराज सिंह मेवाड़ ने कड़ी आपत्ति जताई। बैठक में कलक्टर ने अधिकारियों की तथ्यात्मक भूल मानते हुए मामले के निस्तारण का आश्वासन दिया था।
वर्ष 2005 के तत्कालीन सभापति महेश पालीवाल ने भी मौजूदा परिषद के निर्णय पर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि 2005 में रोड नामकरण की पूरी विधिक प्रक्रिया अपनाई गई थी, 50 लाख रुपये की लागत से सड़क बनी थी और प्रमुख जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी में महाराणा राजसिंह का शिलालेख लगाया गया था। नगर परिषद के रिकॉर्ड में इसकी पूरी जानकारी मौजूद है, फिर बिना विधिक प्रक्रिया के शिलालेख हटाना गंभीर सवाल खड़े करता है।
स्याही कांड से शुरू हुआ यह विवाद अब प्रशासन, कर्मचारियों, राजनीतिक दलों और समाज के विभिन्न वर्गों तक फैल चुका है। एक ओर आरोपी को जमानत मिल चुकी है, दूसरी ओर कर्मचारियों और राजनीतिक संगठनों की कार्रवाई की मांग जारी है। फिलहाल शहर में शांति बनाए रखने के लिए पुलिस और प्रशासन अलर्ट मोड पर है, जबकि सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि राणा राजसिंह मार्ग नामकरण विवाद का अंतिम समाधान किस दिशा में जाता है।
Published on:
21 Dec 2025 12:20 pm
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