भूल कर भी कभी किसी का तिरस्कार मत करो
यह विचार नीमचौक स्थानक पर अ_ारह पाप के अंतर्गत 11 पाप द्वेष की प्रवचन माला को समाप्त करते हुए गुरुदेव प्रियदर्शन महाराज ने इस पाप की स्व-आलोचना करवाकर भविष्य में द्वेष न रखने की प्रार्थना करवाई।महाराज ने कहा कि हम द्वेष नहीं चाहते हैं, फिर द्वेष आता क्यों है। जब कोई हमारा तिरस्कार करता है तो हमें द्वेष आता है। जो आता है वह क्रोध होता है जो टीक जाता है और द्वेष होता है । पानी एक जगह इकट्टा रहे, जमा रहे तो सडऩ और बदबू करता है। द्वेष भी ऐसा ही है। घर में किसी को बार बार ताने मारोगे तिरस्कार करोगे तो सामने वाले के मन में आपके प्रति द्वेष बढ़ेगा। इसलिए भूल कर भी कभी किसी का तिरस्कार मत करो ।
यह विचार नीमचौक स्थानक पर अ_ारह पाप के अंतर्गत 11 पाप द्वेष की प्रवचन माला को समाप्त करते हुए गुरुदेव प्रियदर्शन महाराज ने इस पाप की स्व-आलोचना करवाकर भविष्य में द्वेष न रखने की प्रार्थना करवाई।महाराज ने कहा कि हम द्वेष नहीं चाहते हैं, फिर द्वेष आता क्यों है। जब कोई हमारा तिरस्कार करता है तो हमें द्वेष आता है। जो आता है वह क्रोध होता है जो टीक जाता है और द्वेष होता है । पानी एक जगह इकट्टा रहे, जमा रहे तो सडऩ और बदबू करता है। द्वेष भी ऐसा ही है। घर में किसी को बार बार ताने मारोगे तिरस्कार करोगे तो सामने वाले के मन में आपके प्रति द्वेष बढ़ेगा। इसलिए भूल कर भी कभी किसी का तिरस्कार मत करो ।
ये अभिगम पांच है
गुरुदेव सौम्य दर्शन महाराज ने 24 तीर्थंकर की प्रवचन माला के अंतर्गत 9वें तीर्थंकर सुविधी नाथ के गुणों का व्याख्यान करते हुए बताया की धर्म का हर कार्य विधिपूर्वक करना चाहिए । अभिगम अर्थात् भगवान् के समवसरण में या साधु-साध्वी के उपाश्रय (स्थानक) में जाते समय पालने योग्य नियम। ये अभिगम पांच है। सचित्त त्याग, अचित्त रख, उत्तरासंग कर जोड़। कर एकाग्र चित्त को, सब झंझटों को छोड़।
गुरुदेव सौम्य दर्शन महाराज ने 24 तीर्थंकर की प्रवचन माला के अंतर्गत 9वें तीर्थंकर सुविधी नाथ के गुणों का व्याख्यान करते हुए बताया की धर्म का हर कार्य विधिपूर्वक करना चाहिए । अभिगम अर्थात् भगवान् के समवसरण में या साधु-साध्वी के उपाश्रय (स्थानक) में जाते समय पालने योग्य नियम। ये अभिगम पांच है। सचित्त त्याग, अचित्त रख, उत्तरासंग कर जोड़। कर एकाग्र चित्त को, सब झंझटों को छोड़।