
उतावले उत्साही व्यक्ति से बड़ा परिणाम निकलने की आशा नहीं रखनी चाहिए- सरदार पटेल
हमारे देश की मिट्टी में कुछ अनूठा है तभी तो कठिन बाधाओं के बावजूद हमेसा महान आत्माओं का निवास स्थान रहा है। जब वक्त कठिन दौर से गुजर रहा होता है तो कायर बहाना ढूढ़ते है जबकि बहादुर साहसी व्यक्ति उसका रास्ता खोजते हैं। बोलते समय कभी भी मर्यादा का साथ नही छोड़ना चाहिए, गालिया देना तो बुजदिलो की निशानी है। ज्यादा बोलने से कोई फायदा नही होता है बल्कि सबकी नजरों में अपना ही नुकसान होता है, हमारे जीवन की डोर तो ईश्वर के हाथ में है इसलिए चिंता की कोई बात नही हो सकती है। अविश्वास भय का कारण होता है, हमे अपमान सहना भी सीखना चाहिए।
शत्रु का लोहा चाहे कितना भी गर्म क्यों न हो जाये पर हथौड़ा तो ठंडा रहकर ही अपना काम कर देते हैं। मेरी यही इच्छा है की अपना देश भारत एक अच्छा उत्पादक बने जीससे कोई भूखा न हो और न ही अन्न के लिए किसी को आसू बहाना पड़े। ऐसे बच्चे जो मुझे अपना साथ दे सकते हैं अक्सर मैं उनके साथ हंसी मजाक करते रहता हूं, यह मुझे बहुत अच्छा लगता है। जब तक इन्सान अपने अंदर के बच्चे की भावना को जिन्दा रख सकता है तबतक उसका जीवन अंधकारमय छाया से दूर रह सकता है। यह सत्य है की पानी में जो लोग तैरना जानते हैं वही डूबते है मगर किनारे खड़े वाले नही, लेकिन ऐसे लोग कभी तैरना भी नही जान पाते हैं। उतावले उत्साही व्यक्ति से बड़ा परिणाम निकलने की आशा नही रखनी चाहिए। जीवन में सबकुछ एक दिन में तो नही हो जाता है।
अगर आपके पास शक्ति में कमी है तो फिर आपके विश्वास का कोई काम नही, क्यूकी महान कार्यो के लिए शक्ति और विश्वास दोनों का होना जरुरी है। जिसका कोई भी मित्र न हो उसका भी मुझे मित्र् बन जाना मेरे स्वाभाव में है। आपकी अच्छाई आपके मार्ग में बाधक बन सकते है इसलिए आप अपनी आखो को गुस्से से लाल कर सकते है लेकिन अन्नाय का मजबूत हाथो से सामना करना चाहिए। यदि हम अपनी हजारो की दौलत गवा भी दे तो हमे मुस्कुराते रहना चाहिए और हमे सत्य और ईश्वर अपर विश्वास रखना चाहिए। इन्सान जितना सम्मान करने योग्य है उतना ही सम्मान करना चाहिए उससे अधिक नही करना चाहिए क्यूकी उससे अधिक उसके नीचे गिरने का डर रहता है।
हमारे देश में अनेक धर्म, अनेक भाषाए भी है लेकिन हमारी संस्कृति एक ही है। मान सम्मान किसी के देने से नहीं बल्कि अपनी योग्यता के अनुसार ही मिलता है। हर भारतीय का प्रथम कर्त्यव्य है की वह अपने देश की आजादी का अनुभव करें की उसका देश स्वतंत्र है और हमे इस आजादी की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। हमें यह भूल जाना चाहिए की हम सिख है, जाट है या राजपूत है, हमे तो बस इतना रखना चाहिए की हम सबसे पहले भारतीय है जिसके पास इस देश के प्रति अधिकार और कर्तव्य दोनों है। यदि सत्य के मार्ग पर चलना है तो बुरे आचरण का त्याग भी आवश्यक है क्यूकी बिना चरित्र निर्माण के राष्ट्रनिर्माण नही हो सकता।
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Updated on:
01 Nov 2019 10:49 am
Published on:
31 Oct 2019 05:46 pm
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