
pradosh vrat
JyeshthTrayodashi Date: पंचांग के अनुसार जून महीने के पहले दिन ही ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी पड़ रही है, इस तेरस को ही भगवान शिव और माता पार्वती की पाक्षिक पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है। इससे दोनों की कृपा प्राप्त होती है और घर में सुख समृद्धि बढ़ती है। इस दिन अमृत सर्वोत्तम मुहूर्त भी बन रहा है। यह शाम 7.14 से रात 8.30 बजे तक रहेगा।
त्रयोदशी तिथि का आरंभः 1 जून 1.39 पीएम से
त्रयोदशी तिथि का समापनः 2 जून 12.48 पीएम तक
गुरु प्रदोष व्रत पूजा का समयः 7.12 पीएम से 9.22 पीएम तक
गुरु प्रदोष व्रत का महत्व
प्रयागराज के आचार्य प्रदीप पाण्डेय का कहना है कि प्रदोष व्रत रखने वाले भक्त पर भगवान शिव की विशेष कृपा होती है। प्रदोष काल में शिव और शिवा की पूजा कल्याणकारी होती है। आचार्य पाण्डेय के अनुसार गुरु प्रदोष व्रत रखने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। इसके अलावा धन, संपत्ति, संतान, सुख आदि की प्राप्ति होती है। इससे ग्रह दोष से भी छुटकारा मिलता है। मान्यता है कि गुरु प्रदोष व्रत रखने से 100 गायों के दान के बराबर फल मिलता है। वहीं इसकी कथा सुनने से ऐश्वर्य और विजय का वरदान मिलता है।
गुरु प्रदोष पूजा विधि (Guru Pradosh Puja Vidhi)
1. आचार्य पाण्डेय के अनुसार गुरु प्रदोष व्रत के दिन सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहनें और भगवान का ध्यान कर व्रत का संकल्प लें।
2. इसके बाद पूरा दिन व्रत रहें और शाम के समय शुभ मुहूर्त में शिव मंदिर जाकर या घर पर ही भगवान भोलेनाथ की पूजा करें।
3. शिवलिंग को गंगाजल और गाय के दूध से अभिषेक करें, उसके बाद भोलेनाथ को सफेद चंदन का लेप लगाएं।
4. भगवान भोलेनाथ को अक्षत, बेलपत्र, भांग, धतूरा, शमी का पत्ता चढ़ाएं और सफेद फूल, शहद, भस्म, शक्कर अर्पित करें।
5. पूजा के समय ओम नमः शिवाय मंत्र का जाप करते रहें। इसके बाद शिव चालीसा, गुरु प्रदोष व्रत कथा का पाठ करें।
6. घी का दीपक जलाएं और शिव जी की आरती करें।
7. पूजा संपन्न होने पर क्षमा जरूर मांगनी चाहिए। साथ ही शिवजी के सामने अपनी मनोकामना रखें।
8. अगले दिन सुबह स्नान आदि के बाद फिर से भोलेनाथ की पूजा करें। फिर सूर्योदय के बाद पारण करें।
ये भी पढ़ेंः
गुरु प्रदोष व्रत कथा (Guru Pradosh Vrat)
इस व्रत की कथा सूतजी ने मनुष्यों को बताई थी। इसके अनुसार एक बार देव दानव संग्राम छिड़ गया। इसमें देवराज इंद्र की सेना असुरराज वृत्तासुर की सेना पर भारी पड़ी। देवताओं ने दैत्य सेना को बुरी तरह से हरा दिया। इससे दानवराज वृत्तासुर अत्यंत क्रोधित हो गया और युद्ध भूमि में स्वयं उतर आया।
वृत्तासुर ने आसुरी माया से विकराल रूप धारण कर लिया। इससे देवता भयभीत हो गए और समस्या के समाधान के लिए गुरु बृहस्पति की शरण में पहुंचे। इस पर गुरु बृहस्पति ने वृत्तासुर की कहानी सुनाई। उन्होंने बताया कि वृत्तासुर किसी समय चित्ररथ नाम का राजा था। एक बार वह अपने विमान से कैलाश पर्वत चला गया। वहां शिवजी के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान देखकर उपहासपूर्वक बोला- हे प्रभो! मोह-माया में फंसे होने के कारण हम स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं, देवलोक में भी ऐसा दृष्टिगोचर नहीं हुआ कि स्त्री आलिंगनबद्ध हो सभा में बैठे। चित्ररथ का यह व्यंग्य सुनकर भगवान शिवशंकर हंसकर बोले- हे राजन! मेरा दृष्टिकोण अलग है। मैंने मृत्युदाता-कालकूट महाविष पीया है, फिर भी तुम साधारणजन की भांति मेरा उपहास उड़ाते हो।
इस बीच माता पार्वती क्रोधित हो गईं और चित्ररथ से कहा- अरे दुष्ट! तूने सर्वव्यापी महेश्वर के साथ ही मेरा भी उपहास उड़ाया है अतएव मैं तुझे वह शिक्षा दूंगी कि फिर तू ऐसे संतों के उपहास का दुस्साहस नहीं करेगा। अब तू दैत्य स्वरूप धारण कर विमान से नीचे गिर, मैं तुझे शाप देती हूं।
जगदम्बा भवानी के अभिशाप से चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त हुआ और त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न होकर वृत्तासुर बना। वह पराक्रमी और कर्मनिष्ठ है। गुरुदेव बृहस्पति आगे बोले- वृत्तासुर बाल्यकाल से ही शिवभक्त रहा है इसलिए हे इंद्र! तुम बृहस्पति प्रदोष व्रत कर शंकर भगवान को प्रसन्न करो। देवराज ने गुरु बृहस्पति की आज्ञा का पालन कर बृहस्पति प्रदोष व्रत किया। गुरु प्रदोष व्रत के प्रभाव से देवराज इंद्र ने शीघ्र ही वृत्तासुर पर विजय प्राप्त कर ली और देवलोक में शांति छा गई। अत: प्रदोष व्रत हर शिव भक्त को अवश्य करना चाहिए।
गुरु प्रदोष व्रत के दिन इन मंत्रों का जाप करना चाहिएः आचार्य प्रदीप पाण्डेय का कहना है कि वैसे तो भगवान शिव की पूजा के लिए कई मंत्र हैं, लेकिन कुछ खास मंत्रों के जाप से भगवान शिव शीघ्र कृपा करते हैं। इन्हें जानना चाहिए।
1. ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्।
2. ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्त्तये मह्यं मेधा प्रयच्छ स्वाहा।
3. ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय।
4. ॐ आशुतोषाय नमः।
5. ॐ पार्वतीपतये नमः।
6. ॐ नमो नीलकण्ठाय।
7. ॐ नमः शिवाय।
8. इं क्षं मं औं अं।
9. ऊर्ध्व भू फट्।
10. प्रौं ह्रीं ठः।
Updated on:
26 May 2023 04:59 pm
Published on:
26 May 2023 04:58 pm
बड़ी खबरें
View Allधर्म और अध्यात्म
धर्म/ज्योतिष
ट्रेंडिंग
