सुषमा बताती हैं कि विंध्य में तीन तरह के लोकगीत गाए जाते हैं। पहला संस्कार परख गीत होता है, जो जन्म से लेकर वैवाहिक आयोजन एवं अन्य उत्सव से जुड़े संस्कारों में गाए जाते हैं। इसमें सोहर, बधाई, अंजुरी, बिआह, नहछू, परछन, गारी, कन्यादान, बरुआ सहित अन्य शामिल हैं। वहीं दूसरा ऋतुपरख लोकगीत है जो मौसम के अनुसार गाया जाता है। जैसे इनदिनों होली का सीजन है तो फगुआ गाया जाता है। सावन के महीने में कजली और हिन्दुली गाए जाते हैं। नवरात्र के दिनों में भगत गाई जाती है। इसी तरह जाति परख गीत भी हैं। जिसमें आदिवासियों द्वारा शैला, कोलदहका, यादवों के लिए अहिरहाई सहित अन्य गीत शामिल हैं।
रीवा राजघराने के महाराजा रघुराज सिंह ने भी लोक संस्कृति को बचाने के लिए प्रयास किया था। उन्होंने बड़ी संख्या में बघेली लोकगीत लिखे थे। सुषमा बताती हैं कि बनरा लोकगीत वह भी महाराजा के लिखे हुए गाती हैं, जिन्हें काफी पसंद किया जाता है। इसके अलावा अन्य कई लोगों ने भी प्रयास किया लेकिन बढ़ती आधुनिकता ने इस पर प्रभाव डाला था। अब सोशल मीडिया के जमाने में एक बार फिर बघेली लोक संस्कृति को नया मुकाम मिल रहा है।