की तारीफ होती है और इसी वजह से कार्य भी हो जाते हैं। यह तो हुई रोजमर्रा की जिंदगी की बात। इसी से समझ लीजिए रोज़ेदार की जिंदगी की बात। जब अदब करने से कोई शख्स खुश होकर मेहरबान हो जाता है तब अल्लाह (ईश्वर) का अदब किया जाए यानी उसको आदर दिया जाए तो वह कितना खुश होकर मेहरबान होगा, इसका न तो अनुमान लगाया जा सकता है, न सीमा बताई जा सकती है। परहेजगारी से रोज़ा रखकर जब रोज़ेदार अल्लाह का अदब करता है यानी इबादत करता है तो अल्लाह अपने बंदे के इस जज्बे से खुश होता है और ऐसे में रोज़ेदार बंदा अल्लाह से फजल की तलब करता है तो दुआ कुबूल हो जाती है। दरअसल, अल्लाह का डर ही फजल देता है। पवित्र कुरआन में जिक्र है, 'अल्लाह से डरो! बेशक अल्लाह को तुम्हारे सब कामों की खबर है।