सेंटर बनता तो रीढ़ के ऑपरेशन जिला अस्पताल में ही हो जाते सागर. बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल का मर्जर भले ही न हुआ हो, लेकिन 10 माह पहले आए मर्जर के निर्देशों ने 2.87 करोड़ से बनने वाले स्टेट स्पाइनल इंजरी सेंटर पर ग्रहण लगा दिया है। मप्र शासन ने मर्जर के निर्देश […]
सेंटर बनता तो रीढ़ के ऑपरेशन जिला अस्पताल में ही हो जाते
सागर. बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल का मर्जर भले ही न हुआ हो, लेकिन 10 माह पहले आए मर्जर के निर्देशों ने 2.87 करोड़ से बनने वाले स्टेट स्पाइनल इंजरी सेंटर पर ग्रहण लगा दिया है। मप्र शासन ने मर्जर के निर्देश दिए तो केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग ने उक्त राशि वापस ले ली है, जिसे पुन: स्वीकृत कराना अब मुश्किल दिख रहा है। सागर में यदि यह सेंटर बनता, तो संभागभर के रीढ़ की हड्डी के उन मरीजों को फायदा होता, जो पेड़, कुआं में गिरने, सड़क दुर्घटना में घायल होते हैं। मरीजों को भोपाल-जबलपुर रेफर नहीं करना पड़ता।
बीते वर्ष सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय ने मप्र व राजस्थान में दो जगह स्टेट स्पाइनल इंजरी सेंटर खोलने की वित्तीय सहायता मंजूर की थी। मप्र में यह सेंटर सागर जिला अस्पताल में बनना था, क्योंकि सागर में फोरलेन, स्टेट हाइवे और अन्य हादसों के सैकड़ों मरीज हर माह भोपाल-जबलपुर रेफर हो रहे थे और निशक्तों के ऑपरेशन की भी यहां व्यवस्था नहीं थी।
डॉक्टर्स के मुताबिक यदि क्षतिग्रस्त हुई रीढ़ की स्पाइनल कॉड का 6 घंटे के अंदर इलाज नहीं हुआ, तो मरीज के हाथ-पैर पैरालिसिस के शिकार हो जाते हैं। सागर से भोपाल 180 और जबलपुर 160 किमी दूर है और मरीज का निर्धारित समय पर ऑपरेशन होना नामुमकिन ही होता है, क्योंकि हादसे के 1-2 घंटे बाद ही वह जिला अस्पताल पहुंचता है।
सागर, दमोह, छतरपुर, टीकमगढ़ जिलों के सरकारी अस्पताल और बीएमसी से हर दिन 2-5 मरीज भोपाल-जबलपुर रेफर होते हैं। स्थानीय स्तर पर इलाज न होने के कारण मरीजों को पैरालिसिस हो जाता है, कई मरीजों की जान चली जाती है। कई ऐसे उदाहरण हैं, जहां रीढ़ में फ्रैक्चर होने और समय पर इलाज न होने पर वे दिव्यांग हो चुके हैं।
स्टेट स्पाइनल सेंटर बनाने के लिए जिला अस्पताल में पहले से ही ऑर्थोपेडिक सर्जन व विशेषज्ञ मौजूद थे, वार्ड के लिए जगह की भी कमी नहीं थी, लेकिन इंस्ट्रूमेंट , मशीन, ऑपरेटिव माइक्रोस्कोप की व्यवस्थाएं करनी थीं। सेंटर बनता तो मरीजों को 6 माह तक रुकने की व्यवस्था होती। भोपाल-जबलपुर रेफर होने वाले मरीजों को फ्री में इलाज मिल जाता, साथ ही उनका लाखों रुपए भी खर्च होने से बच जाता।
-राशि वापस जरूर हो गई है लेकिन अब हम पत्राचार कर रहे हैं, ताकि सेंटर का फंड फिर से मिले और मशीनरी आ सकें। हमारे पास प्रशिक्षित स्टाफ पहले से है, इंफ्रास्ट्रक्चर व सर्जरी के उपकरण व मशीनरी नहीं है।
- डॉ. अभिषेक ठाकुर, आरएमओ जिला अस्पताल।