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खून पतला करने सबसे महंगा इंजेक्शन जिला अस्पताल में मौजूद, लेकिन अब तक मात्र 4 ही लगे

सागर. खून पतला करने सबसे महंगा 40 हजार रुपए का इंजेक्शन भी जिला अस्पताल में मौजूद है लेकिन अब तक मात्र 4 इंजेक्शन ही लगाए गए हैं। जबकि रोज आते 2-3 हार्ट मरीजों के लिए जरूरत पडऩे पर महंगे इंजेक्शन के फार्मूला के ही सस्ते इंजेक्शन लगाए जाते हैं। इसमें प्रबंधन का तर्क रहता है […]

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सागर

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Murari Soni

Jun 13, 2024

सागर. खून पतला करने सबसे महंगा 40 हजार रुपए का इंजेक्शन भी जिला अस्पताल में मौजूद है लेकिन अब तक मात्र 4 इंजेक्शन ही लगाए गए हैं। जबकि रोज आते 2-3 हार्ट मरीजों के लिए जरूरत पडऩे पर महंगे इंजेक्शन के फार्मूला के ही सस्ते इंजेक्शन लगाए जाते हैं। इसमें प्रबंधन का तर्क रहता है कि बजट निश्चित है महंगे इंजेक्शन से सिर्फ कुछ ही जानें बचाई जा सकतीं हैं लेकिन इसी बजट में कई मरीजों को तत्काल राहत पहुंचाई जा सकती है। दोनों इंजेक्शन में फर्क इतना है कि महंगे इंजेक्शन में मरीज की जान बचाने का प्रतिशत 80 प्रतिशत तक रहता है जबकि सस्ते में 70 प्रतिशत।विगत वर्ष पहली बार तत्कालीन सिविल सर्जन डॉ. ज्योति चौहान ने जिला अस्पताल में 40-40 हजार रुपए के दो महंगे इंजेक्शन खरीदी थे ताकि गरीबों को भी हार्ट अटैक के समय जिला अस्पताल में वह इलाज मिल सके जो कि प्राइवेट अस्पताल में मिलता है। जिसमें से एक इंजेक्शन एक गरीब मरीज को लगाया गया था और दूसरा स्टोर में था। करीब 8 माह तक दूसरा इंजेक्शन इस्तेमाल नहीं हुआ। करीब चार माह पहले दूसरा इंजेक्शन भी गंभीर स्थिति में आए एक मरीज को लगाया गया। स्टॉक खत्म हो गया तो विगत माह जिला अस्पताल प्रबंधन ने 4 और सेनेक्टीप्लेस इंजेक्शन नाम के महंगे इंजेक्शन खरीदे, उसमें से भी अब 2 इंजेक्शन लगाए गए हैं। दो अन्य का स्टॉक अभी बाकी है।

हार्ट अटैक के मरीजों की मासिक स्थिति-

60-90 मरीज जिला अस्पताल में पहुंचते हैं।

100-120 मरीज बीएमसी के।

200 से अधिक निजी अस्पताल में।

1500-2500 रुपए के इंजेक्शन की खपत ज्यादा-

प्रबंधन की मानें तो जिला अस्पताल में माह में करीब 60-90 मरीज हार्ट की समस्या को लेकर जिला अस्पताल पहुंचते हैं। गंभीर केस में मरीज को एस्पेटॉकाइनेज नाम का इंजेक्शन दिया जाता है। यह इंजेक्शन 40 हजार रुपए का तो नहीं होता है लेकिन फार्मूला लगभग वही होता है। अन्य कंपनियों के भी कई नाम के इंजेक्शन आते हैं, जो कि ब्लड पतला करते हैं। सस्ते इंजेक्शन में फर्क सिर्फ इतना है कि इनमें डॉक्टर्स को मरीज की केयर ज्यादा करनी पड़ती है। लेकिन फिर भी इनमें जान बचाने का प्रतिशत महंगे इंजेक्शन से मात्र 10 प्रतिशत कम ही होता है।

सीएससी-पीएसपी सेंटर पर ईसीजी मशीन भी नहीं-

सरकारी अस्पतालों में हार्ट के मरीजों का समुचित उपचार नहीं हैं। मेडिकल कॉलेज होने के बाद भी यहां से हार्ट के मरीज शहर के निजी अस्पतालों में रेफर किए जाते हैं। ब्लॉकों में हालात और भी खराब हैं जहां सीएससी-पीएसपी सेंटर पर ईसीजी मशीन भी नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि इसकी जानकारी सरकार को न हो। बैठकों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी ईसीजी मशीनों की मांग उठ चुकी है।-

मैंने दो इंजेक्शन खरीदी थे, उसकी खपत की जानकारी भी ली थी और कहा था कि इन महंगे इंजेक्शन को भी जिला अस्पताल प्रबंधन खरीदकर स्टॉक में रखे ताकि जरूरत होने पर मरीज की जान बचाई जा सके। अभी स्टॉक की क्या स्थिति है जानकारी लेती हूं।

डॉ. ज्योति चौहान, क्षेत्रीय संचालक स्वास्थ्य सेवाएं।

-विगत वर्ष खरीदे गए दोनों इंजेक्शन लगा दिए गए हैं, हालही में 4 और इंजेक्शन खरीदे थे उसमें से भी 2 लगा दिए गए हैं। जरूरत के लिए 2 महंगे इंजेक्शन रखे हैं। इसके अलावा खून पतला करने वाले अन्य कंपनियों के इंजेक्शन मरीजों को लगातार लगाए जा रहे हैं। उसका स्टॉक भी पर्याप्त है। बजट निर्धारित रहता है इसलिए महंगे इंजेक्शन सीमित रखते हैं।

डॉ. अभिषेक ठाकुर, आरएमओ जिला अस्पताल।