मां के सम्मान के लिए हर एक दिन कम पड़ जाए
सतना. साहित्यकार अनिल अयान श्रीवास्तव का कहना है कि मां का तो हर दिन है। क्योंकि, उन्होंने हमें जन्म दिया है। जो मां अपने जीवन को खतरे में डालकर बच्चों को जन्म दे उससे अधिक शक्तिशाली कोई नहीं। मेरे नाना के लेखक होने के बाद मेरा भी लेखन के क्षेत्र में होना मेरे मां के लिए गर्व का क्षण है। वो मेरे इसलिए महान कि उन्होंने इस विधा से जोडऩे में उनका पूरा सहयोग किया। उनके द्वारा मेरी प्रकाशित आलेख, रचनाएं और संपादित की पत्रिकाओं को खाली समय में बाचना भी यह बताता है कि उन्हें मेरे साहित्यिक कामों से संतुष्टि है। शुरुआती दौर में देररात, सुबह कवि सम्मेलनों से लौटने पर दरवाजा खोलना, कविता करने या संगोष्ठियों में सिरकत करने में कुछ न कहकर भी एक प्रकार का मनोबल देना मां का सहयोग ही था। घर में मेरी टेबल से उड़ी पड़ी कागजों में लिखी रचनाओं को पढ़कर संभालकर सुरक्षित टेबल क्लाथ के नीचे दबाकर रख देना भी मां का साहित्य के लिए सहयोग है। मेरे घर में जहां सब मेरे कागज घिसने को समय की बर्बादी मानते हैं, वहीं मां इस बात की संतुष्टि दर्शाती हंै कि मैं ठीक ठाक थोड़ा बहुत लिखने लगा हूं। इन सबके लिए उनको यह अहसास कराने का दिन है कि उनका मेरी नजर मं हमेशा सम्मानित स्थान है। यह दिन अहसास कराने से महत्वपूर्ण मां की उपस्थिति को अहसास करने का दिन है।
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