सतना. भारतीय जनता पार्टी ने विधानसभा चुनावों के लिए अपनी दूसरी सूची के जरिए बड़ा धमाका किया है। जिले की सबसे प्रतिष्ठापूर्ण सीट सतना में अपने सबसे बड़े चेहरे चार बार के सांसद गणेश सिंह को चुनावी रणभूमि पर ला खड़ा किया है, तो लगातार कयासों में रहने वाली मैहर सीट पर बागी अंदाज धारण कर चुके नारायण त्रिपाठी को किनारे करते हुए कांग्रेस से पार्टी में आए श्रीकांत चतुर्वेदी पर दांव लगाया है। पूरा जिला इन दोनों प्रत्याशियों की घोषणा से हतप्रभ है।
गणेश ने 2003 से शुरू की सियासी पारी गणेश सिंह ने भाजपा में अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत उमा भारती के कार्यकाल में 2003 से शुरू की थी। 2004 में लोकसभा के लिए भाजपा ने उन पर दांव लगाया था। इसमें जीत हासिल करने के बाद लगातार चार बार से सांसद बनते आए। अब एक बार फिर भाजपा ने उन पर विधानसभा सीट के लिए दांव लगाया है। भाजपा में आने से पहले वे 2000 में जिला पंचायत अध्यक्ष बने और इसके पहले 1995 में जिला परिषद के सदस्य रहे। सांसद गणेश सिंह सतना जिले में भाजपा का सबसे बड़ा चेहरा माने जाते हैं। ऐसे में उन्हें विधानसभा में लाने के पीछे के समीकरण को लेकर अब कयासों का बाजार गर्म हो गया है।
अंतर्कलह का फैक्टर भाजपा ने हालांकि टिकटों के आधार के बारे में कुछ नहीं कहा है, लेकिन जिस तरीके से उन्हें टिकट दिया गया है, उसके पीछे की वजह यह मानी जा रही कि अभी तक जो भी दावेदार रहे हैं, टिकट पाने की स्थिति में अंतर्कलह की स्थिति काफी बन जाती। सांसद को लाना इस स्थिति को संभालने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन यह देखना होगा कि सांसद गणेश सिंह को प्रत्याशी बनाने से क्या अंतर्कलह समाप्त हो जाएगी? विशेषकर इसलिए कि पूर्व विधायक शंकरलाल तिवारी, पूर्व जिला सहकारी बैंक अध्यक्ष शिवा चतुर्वेदी और महापौर योगेश ताम्रकार भी इस सीट पर अपना भविष्य देख रहे थे।
श्रीकांत की कांग्रेस से हुई थी राजनीति की शुरुआत भाजपा ने विधानसभा चुनाव 2023 के लिए मैहर से श्रीकांत चतुर्वेदी को प्रत्याशी बनाया है। इनके राजनैतिक कॅरियर की शुरुआत कांग्रेसनीत छात्र संगठन से हुई और युवक कांग्रेस से मैहर का चेहरा रहे हैं, लेकिन बड़ा झटका 2003 में तब लगा जब इन्हें कांग्रेस से टिकट नहीं मिला। इसके बाद इन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैहर से चुनाव लड़ा था। इस बीच इन्होंने जनपद की भी राजनीति की। बाद में भाजपा का दामन थाम लिया। जब भाजपा ने जब 2018 में इन्हें टिकट नहीं दिया तो ये वापस कांग्रेस में चले गए। उन्होंने चुनाव भी लड़ा, लेकिन भाजपा के नारायण त्रिपाठी से हार गए। इस बीच ज्योतिरादित्य खेमे के माने जाने वाले श्रीकांत ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी बदल देने पर उनके साथ भाजपा में आ गए। हालांकि इस बार भी काफी ऊहापोह की स्थिति टिकट को लेकर चल रही थी। अब भाजपा ने नारायण त्रिपाठी को भाजपा से टिकट न देकर श्रीकांत चतुर्वेदी को भाजपा प्रत्याशी बना दिया है।
अंतर्कलह का फैक्टर राजनीतिक समीकरणों को अगर देखें तो 2018 के चुनाव के बाद से यहां जीत के बाद भी भाजपा से ज्यादा नारायण त्रिपाठी का कद ज्यादा बढ़ता चला गया। कमलनाथ सरकार गिरने के दौरान जिस तरीके का घटनाक्रम हुआ और नारायण ने जो कदम उठाए थे, उससे मैहर की पुरानी मांग जिला बनाने की लगभग सामने आ गई थी। ऐसे में नारायण का कद और बड़ा हुआ था। मैहर को जिला घोषित करने और अपनी पार्टी विन्ध्य जनता पार्टी बनाने जैसे कई मुद्दों पर नारायण भाजपा के लिए किरकिरी पैदा कर रहे थे। मैहर को जिला घोषित किए जाने के बाद उनकी ओर से श्रेय में कमलनाथ को भी जोड़ा जाना भी भाजपा को रास नहीं आया। नारायण को टिकट से वंचित करने के पीछे यह बहुत बड़ा कारण माना जा रहा है।
रत्नाकर के बगावती सुर सतना सीट से दावेदारी कर रहे सहकारी बैंक के पूर्व अध्यक्ष व भाजपा के पूर्व जिला उपाध्यक्ष पं रत्नाकर चतुर्वेदी ने सांसद को टिकट की घोषणा होते ही बगावती तेवर अपना लिए हैं। टिकट वितरण को पार्टी की मनमानी कदम बताते हुए कहा कि कोराना में घर से निकल कर जनता की सेवा हमने की। पार्टी ने सतना के कार्यकर्ताओं के साथ न्याय नहीं किया। यदि जनता का आशीर्वाद मिला तो चुनाव भी लडूंगा।
बोले शंकर, निर्णय मानना बाध्यता विधानसभा सीट से तीन बार भाजपा से विधायक रह चुके और इस बार टिकट की दावेदारी कर रहे पूर्व विधायक शंकरलाल तिवारी ने कहा कि केन्द्रीय नेतृत्व ने पूरे प्रदेश में सांसदों को टिकट दी है। यह पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व का निर्णय है। हम सब इस निर्णय को मानने के लिए बाध्य हैं। जिसे नहीं मानना वंह बगावत करे। कोई दूसरा रास्ता नहीं है ।