Plastic waste: पर्यावरण ( environment) को प्लास्टिक से बचाने के लिए किया जाएगा सड़कों का निर्माण तारकोल की जगह होगा इंडस्ट्रियल अपशिष्ट का इस्तेमाल
ग्लोबल वॉर्मिंग को कम करने के लिए वैज्ञानिकों ने किया प्रयोग, अब तारकोल नहीं कचरे से बनेगी सड़कें
नई दिल्ली। सड़कें बनाने में इस्तेमाल किए जाने वाले तारकोल से पर्यावरण में वायु प्रदुषण (airpollution) अधिक होता है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया ( austrelia ) ने तारकोल की जगह ऐसा अनोखा विकल्प खोज लिया है, जिससे एक नहीं बल्कि दो समस्याएं दूर हो जाएंगी। वैज्ञानिकों के अनुसार- प्लास्टिकplastic वह जटील समस्या है, जिससे निपटने के लिए कई तरह की योजनाएं बनाने के बाद भी हम उससे निपट नहीं पार रहें हैं। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया को एक प्रयोग ( experiment ) से सफलता मिली है। अगर यह प्रयोग आगे भी सफल रहा, तो इसे एक बड़ी उपलब्धि माना जाएगा। इससे ना केवल पर्यावरण कम दूषित होगा, बल्कि कम खर्च में बड़ा फायदा भी मिल सकेगा।
इंडस्ट्रियल अपशिष्ट से बनेगीं सड़कें ऑस्ट्रेलिया के सिडनीsidney शहर में पहली बार कोयले से चलने वाले बिजली केंद्रों और स्टील संयंत्रों की मदद से औद्योगिक कचरे का इस्तेमाल किया जाएगा। इस पहल से प्रदूषण में कमी आएगी और सड़कों के निर्माण के लिए कंक्रीट के उत्पादन से निकलने वाले ग्रीन हाउस गैसों green house gases का उत्सर्जन भी कम होगा।
सड़क बनाने में कंक्रीट का योगदान होता है 7% विभिन्न प्रकार के संसाधनों से निकलने वाला धुंआ ग्लोबल वॉर्मिंग global warming का एक बड़ा कारण बन गया है। गौरतलब है कि ग्लोबल वॉर्मिंग में ग्रीन हाउस गैस का बहुत बड़ा सहयोग होता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, सभी ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कंक्रीट का योगदान सात प्रतिशत होता है। आंकड़ों के मुताबिक 2018 में दुनिया भर में 4.1 अरब टन सीमेंट का उत्पादन हुआ जिसने 3.5 अरब टन कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) का योगदान दिया।
कंक्रीट उत्पादन से मिल रहा है ग्रीन हाउस गैस को बढ़ावा वैज्ञानिकों के अनुसार- यह प्रयोग सफल हुआ, तो एक साथ कई समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है। घरों से निकलने वाला कचरा ही नहीं बल्कि इंडस्ट्रियल कचरा भी जल को प्रदूषित करता है। इससे पानी में रहने वाले जीवों पर बुरा असर पड़ता है। साथ ही साथ इससे हमारे स्वस्थ पर भी बुरा असर पड़ता है। अगर इसका इस्तेमाल सड़क बनाने में होता है तो वाटर पॉल्यूशन से बचा जा सकता है। इसके अलावा कंक्रीट का इस्तेमाल कम होगा। जिससे ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में भी कमी आएगी।